Old Age -sachi shiksha hindi

…ताकि न सताए बुढ़ापे का डर

इस देह में बचपन और जवानी तो पता नहीं कब आकर चले जाते हैं लेकिन बुढ़ापा ऐसा है जो आकर जाता नहीं है। वह आकर ठहर जाता है। बुढ़ापा ही ऐसा है जो जवानी के रंग को बदरंग कर देता है। शक्ति को क्षीण कर देता है। आकर्षण को समाप्त कर देता है। इसलिए इस दु:ख-दर्द से बचने के लिए हम सावधान होते हैं।

हम चाहते हैं कि वृद्धावस्था आए ही नहीं किंतु बुढ़ापा तो आता ही है। हम जवान दिखने के लिए कितने ही बाल काले करें, सौंदर्य प्रसाधन अपनाएं, व्यायामशालाओं में जाएं, डाक्टरों की गोलियां खाएं किंतु बुढ़ापा तो आएगा ही। वह जीवन की गंगा का निश्चित पड़ाव है। वहां आना ही पड़ता है। जब बुढ़ापा आना सुनिश्चित है तो उस का डर कैसा? फिर तो उसके स्वागत की तैयारी हमें करनी चाहिए।

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Old Age बुढ़ापे का डर या मृत्यु का

यह डर बुढ़ापे की असहाय स्थिति का तो है ही किंतु इसमें मृत्यु का भय भी छिपा है। कैसी भी हालत हो, कोई मरना नहीं चाहता। मनुष्य मात्र नहीं, प्राणी मात्र अमर होना चाहता है। जीवन की यह अभिलाषा प्राकृतिक है। बुढ़ापा मृत्यु के पूर्व का पड़ाव है। मृत्यु के पूर्व वह आता है और हमें असहाय बना मृत्यु के पास ले जाता है।

बुढ़ापे का डर मृत्यु का डर भी हैं जो स्वाभाविक है किंतु अमर आज तक तो कोई हुआ नहीं। जाने कितने राजा-महाराजा और वैज्ञानिक बुढ़ापे को लांघ कर जवां बने रहने के लिए शोध करते रहे पर अंत में हार गए। हमारी राय में यह अच्छा ही हुआ। यदि मृत्यु न होती तो यह दुनिया कैसी होती-इसकी कल्पना कीजिए-आप कांप जाएंगे।

स्वागत कीजिए बुढ़ापे का

उपरोक्त स्थिति में खूब सोच विचार लीजिए। आप पाएंगे कि बुढ़ापे से बचने का कोई मार्ग नहीं है। वह तो आने वाला ही है। आप बाल काले कीजिए, डाक्टर की राय लीजिए, दवा खाइए पर उम्र रूपी नदी प्रतिक्षण बह रही है। वह रुकती नहीं है। उसमें प्रतिक्षण बदलाव आ रहा है और यह बदलाव बुढ़ापे तक चलेगा और अन्तिम विश्राम मृत्यु के रूप में ही है। हम एक दिन में वृद्ध नहीं होते।

वृद्ध होने की प्रक्रि या जन्म के साथ चलती है। जब-जब हम जन्म दिवस मनाते हैं हम जीवन की यात्रा का एक कदम पूर्ण कर चुके होते हैं। जन्म दिवस हमारी जीवन यात्रा का समीक्षा दिवस है। हमें इस दिन जीवन जिस रूप में है- उसका स्वागत करना चाहिए। वृद्ध होने से डरना मरने से डरना है, यह सोच कर वृद्धावस्था के स्वागत की तैयारी करनी चाहिए।
यदि हम मानसिक रूप से तैयार हुए तो वृद्धावस्था का आनंद हम उठा पाएंगे। Old Age करोड़ों स्त्राी-पुरूष बुढ़ापे का आनंद इसी दुनिया में उठा रहे हैं। उनके अनुभव उपलब्ध हैं। उनका लाभ उठाइए। बुढ़ापे के स्वागत की तैयारी कीजिए ताकि बुढ़ापे में भी उत्साह, उमंग और आनंद बना रहे।

वृद्धावस्था से बचने का एकमात्र उपाय है बचपना बचा कर रखना। हम बचपन में सीखते हैं। जवानी में अनुभव करते हैं और वृद्धावस्था में समझते हैं। यदि हम बचपन के गुण सीखने को बनाए रखें तो फिर आनंद ही आनंद है। सीखना कभी समाप्त नहीं होता। सोचिए बच्चा कैसे सीखता है। बच्चा खुली आंख से संसार देखता है। करोड़ों स्वप्न होते हैं उसकी आंखों में। वह कभी अहंकार में डूबता नहीं, ईर्ष्या-द्वेष जानता ही नहीं। वह केवल प्रेम की भाषा जानता है। वह रूठता है तो मनाना नहीं पड़ता। थोड़ी ही देर में वह पूर्ववत हो जाता है, भूल जाता है जो हुआ।

एकदम सरल हृदय होता है बचपन। हम भूल जाते हैं बचपन को, न हंसना जानते हैं, न मुस्कुराना जानते हैं। ताली पीटकर नाचने गाने का तो सवाल ही नहीं है इसलिए वृद्धावस्था हमारे पास चली आती है। हम बुढ़ापे का स्वागत नहीं कर पाते।

सदाचरण का प्रतीक है बुढ़ापा Old Age

बुढ़ापा आता नहीं, लाया जाता है। हर एक को बुढ़ापा नहीं आता। कुछ बचपन में ही चल देते हैं, कुछ जवानी में दुनिया छोड़ देते हैं, कुछ जवानी में ही बुढ़ापे को वरण कर लेते हैं। चालीस वर्ष के युवा भी खांसते-खंखारते बिस्तर पर करवट लेते दिखाई देते हैं।

अब यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि हमारी जीवन शैली ही हमारे जीवन की लंबाई का निर्धारण करती है। यदि हम शराब-गांजा-भांग या तंबाकू के राग रंग में डूबे रहेंगे, श्रम से जी चुराएंगे, फास्ट-फूड और बाजारू गरिष्ठ भोजन करेंगे तो जवानी में ही बुढ़ापा आ जाएगा। रोगग्रस्त होकर हम मृत्यु को प्राप्त होंगे, बुढ़ापा उम्र से आ ही नहीं सकेगा। वास्तव में बुढ़ापा आता नहीं है। वह तो हम आमंत्राण देकर उसे बुलाते हैं।

इसी तरह भोजन और विश्राम भी जीवन शैली के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए श्रीमद्भगवद गीता में भोजन और नींद को लेकर भी स्पष्ट व्याख्या की गई है और निर्देश है कि हमारा भोजन कैसा हो और हम कितनी नींद लें। वृद्धावस्था एक सफल जीवन शैली और सदाचरण का फल है। यह केवल प्राकृतिक घटना नहीं है।

जीवन में मनोरंजन भी आवश्यक है। मनोरंजन के नाम पर सिनेमा और टी.वी ही नहीं हैं। हमारे बच्चे भी खेलते-कूदते, हंसते-गाते हमारा मनोरंजन कर आनंद देते हैं। उनके साथ समय बिताना बुढ़ापे को भगाना है। विशेषज्ञ कहते हैं, यदि अपने साथ बचपन को रखेंगे तो कभी खुद को बूढ़ा महसूस नहीं करेंगे। यही है उत्साह, उमंग का रहस्य। साहित्यकार विद्या निवास मिश्र ‘परंपरा बंधन नहीं’ में लिखते हैं, ‘बुढ़ापा शरीर का उतना धर्म नहीं है जितना मन का।’ क्या हमारा यह अनुभव नहीं है? विचार कीजिए।

बुढ़ापे से डर कैसा? वह तो आना ही है। उसका आनंद लेने के लिए तैयारी कीजिए। साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा मृगनयनी में लिखते हैं कि काम करने वाला मरने के कुछ घंटे पूर्व ही बूढ़ा होता है, इसलिए सदाचरण कीजिए, अनुभव बांटिए। बुढ़ापे से डरिए मत। उसे आनंदमय बनाइए।
-सत्य नारायण भटनागर

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