Experiences of satsangis अज्ज तों बाद हत्थ नीं लौणा, हुण एह बच्चा साडा है… -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी रकम सिंह पुत्र कंवरपाल सिंह गांव झिटकरी, तहसील सरधना जिला मेरठ(उत्तर प्रदेश) से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई रहमत का वर्णन करता है:-
मैं बचपन से ही बीमार रहता था। मुझे बुखार में दौरे पड़ते थे जोकि बहुत ही खतरनाक बीमारी थी। मेरे माता-पिता जी ने अनेक वैद्य-हकीमों, डॉक्टरों से मेरा इलाज करवाया, इसमें काफी पैसा खर्च कर दिया, किंतु यह बीमारी ठीक नहीं हुई।
मैं इस हालात में खुद की बीमारी व परिवार की तंगी के चलते बहुत परेशान रहने लगा था।
क्योंकि जब दौरा पड़ता था तो मेरा शरीर बिलकुल मृतप्राय:
हो जाता था। जब मैं 15 वर्ष का हुआ तो मुझे अंदर ही अंदर एक अजीब सा अहसास हुआ और रोज प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान! मैं तुझे ढूंढता-ढूंढता थक गया हूं। किंतु आप मुझे नहीं मिले। प्रभु आप ही मेरे दु:खों का हरण कर सकते हो। उन्हीं दिनों एक हकीम हमारे घर पर आया। उसने कहा कि मैं इस बीमारी का इलाज कर सकता हूं। उसने कुछ जड़ी-बुटियां लाने को कहा। यह जड़ी-बुटियां शाह सतनाम जी बरनावा आश्रम से थोड़ा पहले हरा गांव के जंगलों में पाई जाती है। मैं यह बूटी लाने के लिए घर से चल पड़ा, रास्ते में सरधना कस्बे से पहले मैंने देखा कि एक डेरा प्रेमी दूसरे व्यक्ति को कह रहा था कि बरनावा आश्रम में ऐसे संत-महात्मा आए हुए हैं जिनके दर्शन मात्र से ही सब रोग कट जाते हैं और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मैंने उनसे उत्सुकतावश पूछा कि बरनावा आश्रम कहां है, क्योंकि मैं पहली बार इस एरिया में आया था। उन्होंने मुझे बरनावा जाने वाला रास्ता बता दिया।
इत्तेफाक से वह जड़ी-बूटी तक पहुंचने का रास्ता भी यही था। मैंने सोचा कि यह औषधि तो आश्रम से वापसी के दौरान ही ले लूंगा, पहले गुरु जी के दर्शन कर आऊं। मैं सीधा डेरा सच्चा सौदा के बरनावा आश्रम में जा पहुंचा। वहां पूज्य सतगुरु जी स्टेज पर विराजमान थे। सत्संग का कार्यक्रम चल रहा था। मैंने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के दर्शन किए, सत्संग सुना और उसी दिन नाम की अनमोल दात भी हासिल कर ली। नाम लेने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मैं बिलकुल हल्का सा हो गया हूं। जैसे मेरे मन के उपर से कोई बोझ उतर गया हो।
मुझे असीम शांति, खुशी व सुकून महसूस हुआ। मुझे ऐसा लगा कि जिस युक्ति की मुझे तलाश थी, आज वो मिल गई है। यदि भगवान नाम की कोई चीज है तो वह यहां है, वरना भगवान होता ही नहीं। अब मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं तो ठीक हो गया हूं, दवाई की जरूरत ही नहीं है। मैं बहुत खुशी-खुशी अपने घर आ गया। मेरी इंतजार कर रहे उस हकीम ने मुझसे पूछा- बेटा! दवाई नहंी लाए। मैंने कहा कि मैं जो दवाई लेकर आया हूं, वह दिखने में नहीं आती। अब मैं बिलकुल ठीक हूं। हकीम मेरी बातें सुनकर मेरे माता-पिता से कहने लगा कि लगता है इसे ओपरी हो गई है, मैं इसका इलाज करता हूं। मैं प्लंग पर बैठ गया। उसने नीचे बैठकर दीपक जलाकर कुछ मंत्र पढ़कर मेरी तरफ फूंक मारी। उसने कुछ देर और मंत्र पढ़े, फिर मेरे माता-पिता से कहने लगा कि मुझे माफ कर दो, मुझे अपनी फीस वगैरा भी नहीं चाहिए। इसके पास तो ऐसी दिव्य शक्ति है कि वहां तक मेरे मंत्र-तंत्र नहीं जाते।
वह हकीम चला गया। मैं लगातार सुमिरन करने लगा। मुझे नाम की खुमारी चढ़ती जा रही थी। इसके बाद मुझे कभी भी दौरा नहीं पड़ा। मुझे पूर्ण गुरु के रूप में खुद भगवान मिल गए और भयानक बीमारी से छुटकारा भी हो गया। अपने प्यारे सतगुरु से इतना ज्यादा लगाव हो गया कि यदि कोई मेरे सतगुरु की बात करता तो मैं भी उससे सारी बातें सांझी करने लगता। यदि कोई दूसरे तरीके से बात करता तो मैं उसकी बात को टालने के लिए हां-हां कहता रहता, कोई सीधा जवाब नहीं देता।
मेरे ऐसे व्यवहार को देखकर पिता जी को यह भ्रम हो गया कि इसमें कोई ओपरी का चक्र है। उन्होंने मुझे शहतूत के डंडे से पीटना शुरू कर दिया कि मैं निकालता हूं इसके भूत। मेरी माता जी ने उनको रोकना चाहा तो भी वे नहीं रूके। वे लगातार मेरी पिटाई करते रहे, आखिर डंडा भी टूट गया। किंतु मेरे पर उस पिटाई का कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। उसी दरमियान घर के बाहर गली में मेरे छोटे चाचा जी आ गए। उन्होंने देखा तो सामने सफेद कपड़ों में लंबा-ऊंचा कद में एक अजनबी हाथ में डंगोरी लिए खड़ा था, उसकी सफेद दाड़ी थी।
यह अजनबी पूरे गुस्से में था, जिसे देखकर मेरे चाचा जी की अचानक चीख निकल गई। यह सुनकर मेरे पिता जी भी बाहर गली की और दौड़ पड़े, उन्हें भी उस महापुरुष के दर्शन हुए जो पूरे जोश से कह रहे थे कि ‘अज्ज मार लै जिन्ना मारना है, अज्ज तों बाद हत्थ नहीं लौणा, हुण ऐह बच्चा साडा है। ’ यह सुनते ही वे डर के मारे वापिस घर के अंदर आ गए। पिता जी ने मेरी माता को बताया कि ऐसे-ऐसे बहुत ही लंबा-तगड़ा सरदार बाहर खड़ा है, इसको मारने से मना कर रहा है। जब मेरी माता जी ने बाहर आकर देखा तो वहां कुछ भी दिखाई नहंी दिया। परंतु उनको अहसास हो गया था कि ये तो मेरे बच्चे के गुरु जी हैं, क्योंकि मैंने माता जी को गुरु जी के बारे में सब कुछ बता रखा था।
मेरे माता-पिता जी ने देखा कि बच्चा तो बेहोश पड़ा है, कहीं मर तो नहीं गया। उन्होंने मेरे कपड़े उतार कर शरीर को देखा तो पूरे बदन पर कहीं कोई निशान नहीं था और ना ही मुझे कोई दर्द महसूस हो रहा था। यह देखकर उन्होंने मुझे अपनी छाती से लगा लिया। फिर अगले सत्संग पर ही उन्होंने नाम ले लिया और गांव से भी नामलेने वाले लोगों को ट्रेक्टर-ट्राली में भरकर लाए। लोगों में इस बात की बहुत चर्चा हुई कि सत्संग में आने से फलां आदमी के लड़के की बीमारी ठीक हो गई। सतगुरु जी के चरण-कमलों में यही प्रार्थना है कि हमारे परिवार की सेवा-सुमिरन करते हुए आपजी के चरणों में ओढ़ निभ जाए।