हमेशा फलों का ताजा रस ही पीएं
प्रत्येक मनुष्य की यह अपेक्षा होती है कि वह सदा स्वस्थ जीवन व्यतीत करे और इसके लिए वह निरंतर प्रयत्नशील भी रहता है। यदि कभी वह किसी बीमारी से ग्रसित हो जाय तो वह चाहता है कि यथाशीघ्र ही उसका निवारण हो जाए। मनुष्य की इस अपेक्षा को सफल बनाने की शक्ति फलों और साग-सब्जियों के रसों में होती है किन्तु महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि रसों में स्थित महत्त्वपूर्ण तत्वों को प्राप्त कैसे किया जाए?
रस हमेशा ताजा होना चाहिए। रोग निवारण के लिए ताजा रसों का विशेष महत्त्व है। साग-सब्जी में स्थित ‘केरोटिन’ (प्रजीवक ‘ए’ का पूर्ण स्वरूप) हवा में स्थित प्राणवायु के प्रति अतिशय संवेदनशील होता है। उदाहरण के लिए यदि गाजर को छीलकर या कद्दूकस कर (घिसकर) रख दिया जाए तो लगभग 20-25 मिनट में ही उसमें स्थित अधिकांश प्रजीवक ‘ए’ हवा में उड़ जाते हैं।
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इसी प्रकार नींबू, संतरा, मौसमी आदि खट्टे-मीठे फल प्रजीवक ‘सी’ के स्रोत हैं किन्तु यदि एक महीने तक उनका संग्रह करके छोड़ा जाए तो उनमें निहित प्रजीवक ‘सी’ का लगभग 40 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाता है। फ्रिज में रखने पर भी यह हानि रोकी नहीं जा सकती।
फलों और साग-सब्जियों के छिलकों तथा रेशों में बहुमूल्य तत्व छिपे होते हैं। इसलिए रस निकालते समय यह देखना आवश्यक है कि ये रेशों और छिलकों के बराबर कुचले जा रहे हैं, पिल रहे हैं, पिस रहे हैं अथवा नहीं।
तैयार होने के बाद रस तुरन्त ही पी लेना चाहिए। रख छोड़ने से उसके मूल्यवान तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार दिन भर के लिए उपयोग में लिया जाने वाला रस एक बार में ही निकालकर रख देना भी उचित नहीं है। जब भी रस पीना हो, उसी समय रस ताजा निकाल लेना चाहिए।
टॉल यूनिवर्सिटी के सुप्रसिद्ध डॉ. रसेल चिटॅनडेन के अनुसार चेरी, सेब, बीट, लहसुन, मटर, पालक, गाजर, पत्तागोभी, फूलगोभी, प्याज और टमाटर के रस स्वास्थ्य की आरोग्यता को तो बनाए रखते ही हैं, साथ ही साथ सौन्दर्य को निखारने एवं बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होते हैं। इतना ही नहीं, रसाहार यौन शक्ति को भी बनाए रखने में रामबाण है।
रसपान करने की भी एक विशिष्ट पद्धति है। रस को एक सांस में ही गटागट नहंीं पीना चाहिए बल्कि चम्मच से या धीमे-धीमे घूंट-घूंट करके पीना चाहिए। ऐसा करने से रस के साथ लार भी मिल जाती है। लार में स्थित कुछ पाचक रस रस की शर्करा को पचाने में सहायक होते हैं। इस प्रकार पेट में पहुंचा हुआ रस 20-25 मिनटों में ही पच जाता है।
आरोग्य एवं रोगमुक्ति हेतु पिये जाने वाले रसों में स्वाद या रूचि के लिए कभी भी मिसरी, शक्कर, काली मिर्च या नमक नहीं डालना चाहिए। ऐसा करने से शरीर को तो हानि होती ही है, इसके अतिरिक्त रस के विभिन्न तत्वों पर भी इसका अनिष्ट प्रभाव पड़ता है। कदाचित् किसी एकाध साग-सब्जी का रस रूचिकर न लगे तो किसी अन्य फल (नींबू, संतरा आदि) के साथ उसका मिश्रण किया जा सकता है।
रसाहार का पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए इच्छुक लोगों के लिए डिब्बों में बंद किए हुए तैयार रस निरर्थक हैं क्योंकि इन रसों पर की गई प्रक्रिया और इनके संग्रह के कारण उनके प्राय: सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं। यही नहीं, उनमें कई हानिकारक रसायनों का भी मिश्रण होता है।
बाजार में बिकने वाले डिब्बे या बोतलों में पैक किए हुए रस ताजा हैं, यह दर्शाने वाले लेबल उनपर लगाए जाते हैं किन्तु इसका अर्थ केवल इतना ही है कि उस रस को ताजे फलों में से निकाला गया है। इस प्रकार ताजे फलों से निकाला गया रस भी संग्रह करने से अपने तत्वों को गँवा देता है। इसलिए हमें इस प्रकार के रसों को ताजा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
तैयार किए हुए अधिकांश रसों में चीनी, नमक और विविध प्रकार के अन्य रसायन मिश्रित होते हैं। फलस्वरूप रस का मूल रंग, स्वाद, गन्ध सुरक्षित रहते हैं और वह बिगड़ नहीं पाता। तैयार रसों में सामान्यत: बेन्जोइक एॅसिड सल्फ्यूरिक एॅसिड अथवा सॉर्विक एॅसिड का प्रयोग होता है। ये सभी रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
केवल दो उदाहरणों के द्वारा हमें यह जानकारी भी मिल जाएगी कि प्रजीवक समृद्धि की दृष्टि से ताजा रस तैयार मिलने वाले रस से बहुत अधिक भिन्न है। गाजर के ताजा निकाले हुए रस में प्रजीवक 8 मि.ग्रा. होते हैं जबकि उसके तैयार रस में यही प्रजीवक केवल 2 मि. ग्रा. होते हैं।
डिब्बों और बोतलों में पैक किए हुए रसों का सेवन करने से उनमें समाविष्ट रसायनों के कारण आंतों का उपदंश, मूत्रपिण्ड के रोग, दांतों की सड़न, कैन्सर, इत्यादि रोग होने की संभावना विशेष होती है, इसलिए हमेशा ऋतु के अनुसार सरलता से उपलब्ध फल या साग-सब्जी का ताजा रस निकालकर पिया जाए तो वह आरोग्य और रोगमुक्ति के लिए अत्यंत हितकारी सिद्ध होगा।
-आनंद कुमार अनंत