अनहद साकार रूप धार आया 56वें पावन अवतार दिवस 15 अगस्त पर विशेष
धर्म, संस्कृति, मानवता की रक्षा हेतू मालिक के अवतार संत-महापुरुष समय-समय पर सृष्टि पर अवतार धारण करते आए हैं। सृष्टि कभी भी मालिक के ऐसे सच्चे संतों, रूहानी फकीरों से खाली नहीं होती। संत, गुरु, पीर-फकीर समस्त जीव-जगत का सहारा बन कर आते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया व काल-कर्म के प्रभाव में बहकर डावांडोल तथा विषय-विकारों के भंवर में फंसी जीवात्मा को संत-जन मनोबल प्रदान कर उनसे उबार लेते हैं। परमपिता परमेश्वर का यह परोपकारी सिलसिला सदियों से बदस्तूर चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा। दुनिया में काल-कर्म के सड़ते-बलते भट्ठ से मालिक के प्यारे संत, गुरु, पीर-फकीर ही जीव-जगत को अपने रहमो-करम से बचाते हैं। ‘संत न आते (होते) जगत में, तो जल मरता संसार।’
संतों का आगमन सृष्टि के लिए हमेशा सुखकरी होता है। इतिहास गवाह है, आदिकाल से ही जब-जब भी गुरु मुर्शिदे-कामिल के रूप में वो अनहद परमपिता परमात्मा ने अपना निज स्वरूप देकर अपने संतों को सृष्टि कल्याण के लिए संसार में भेजा, त्रिलोकी में भी तथा त्रिलोकी के पार दोनों जहान में उनकी जय-जयकार हुई और हमेशा जय-जयकार होती है। जब-जब भी परमात्मा स्वरूप ऐसे संतों का आगमन होता है, या खुशी का ऐसा पर्व आता है, अधिकारी रूहें मालिक के गुण गीत गाती नहीं थकती। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। इस पवित्र रूहानी कड़ी के अंतर्गत पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का विस्तारपूर्वक वर्णन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में मिलता है। आप जी डेरा सच्चा सौदा के बतौर तीसरे गुरु संत डॉ. एमएसजी के शुभ नाम से करोड़ों डेरा श्रद्धालुओं के दिलों में बसते हैं।
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पावन जीवन झलक:
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां राजस्थान के जिला श्री गंगानगर, तहसील सूरतगढ़ के एक अति पवित्र गांव श्री गुरुसर मोडिया के रहने वाले हैं। आप जी के पूजनीय पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी गांव के बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक और आदरणीय नम्बरदार थे। धन्य-धन्य अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां जिनकी पवित्र कोख से सतगुरु जी ने अवतार धारण किया, बहुत ही दयालु व परोपकारी स्वभाव की हैं। 15 अगस्त 1967 का वो अति पाक-पवित्र दिन, जिस दिन को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अवतार धारण किया, वो दिन सुनहरी अक्षरों में इतिहास में अंकित है। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते हैं। आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान हैं। आप जी की महानता को सिद्ध करती अनेकों दिलचस्प घटनाएं हैं, जो आप जी के जन्म के साथ जुड़ी हुई हैं।
संत बाबा त्रिवैणी दास जी का गांव में बहुत ज्यादा मान-सम्मान था। पूजनीय बापू जी का उनके साथ बहुत ज्यादा स्रेह व सहचार था। लगभग 18 वर्ष बीत गए थे, लेकिन कोई संतान नहीं हुई थी। कभी-कभी बहुत ज्यादा गमगीन अवस्था में पूजनीय बापू जी अपने अंदर की इस पीड़ा को संत बाबा त्रिवैणी दास जी के सामने बता दिया करते कि इतने बड़े खानदान का एक वारिस तो होना चाहिए। संत बाबा को उस परमेश्वर की भक्ति के बल पर अपने अंतर हृदय में बहुत ज्ञान था। वह पूजनीय बापू जी की आंतरिक स्थिति से भली-भांति परिचित थे। वे मुस्कुराते हुए पूजनीय बापू जी को भरपूर हौसला देते कि नम्बरदार जी, आप धीरज रखिए। आप जी के घर कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं, साक्षात् ईश्वर स्वरूप जन्म लेगा।
दिल छोटा मत कीजिए, वो जरूर आएगा। और इस प्रकार प्रभु की अपार कृपा से पूज्य गुरु जी ने अपने पूज्य माता-पिता जी के यहां 18 वर्ष बाद अवतार धारण किया। पूज्य गुरु जी के अवतार धारण करने पर संत बाबा त्रिवैणी दास जी ने पूज्य बापू जी को ढेर सारी बधाइयां दी और यह भी बताया कि परमपिता परमेश्वर ने आप जी के घर स्वयं अवतार धारण किया है और यह भी बताया कि ये आपके यहां मात्र 23 वर्ष तक ही रहेंगे। इसके बाद अपने उद्देश्य पूर्ति यानि ईश्वरीय कार्य भाव जीवों व समाज उद्धार के लिए चले जाएंगे। उनके पास, जिन्होंने इन्हें आपके यहां आपका लाडला बनाकर भेजा है। आप जी पूज्य माता-पिता के बहुत लाडले हैं, खासकर पूजनीय बापू जी तो आप जी को एक पल भी अपने से दूर नहीं करना चाहते थे।
नूरी रब्बी बचपन:
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां भगवान स्वरूप धरती पर पधारे। आप जी के नूरी बचपन की अनेकों अद्भुत घटनाएं वर्णनीय हैं। आपजी को ईश्वरी अवतार कहने या लिखने में जरा भी संशय और संकोच नहीं है।
आयु मात्र चार वर्ष, पूजनीय बापू नम्बर सरदार मग्घर सिंह जी आप जी को अपने कंधों पर बैठाकर खेत में जा रहे थे। अचानक आप जी ने वहीं पास ही एक खेत की तरफ उंगली का इशारा करके पूजनीय बापू जी से कहा कि इधर अपने खलिहान थे। सुनकर पूज्य बापू जी भी एकदम आश्चर्यचकित थे। सांझे खलिहान तो वाकई वहीं हुआ करते थे, लेकिन वह बहुत अरसा पहले ही बात थी। यानि पूज्य गुरु जी के जन्म से भी कई वर्ष पहले की बात थी। फिर तुरंत संत बाबा त्रिवैणी दास जी के वचन भी याद आ गए कि आपके घर स्वयं भगवान स्वरूप आए हैं।
पूजनीय बापू जी अपनी कुछ जमीन हर वर्ष ठेके पर दिया करते थे। इस बार जब वही ठेकेदार पूजनीय बापू जी से अगले साल के लिए ठेके की बात कर रहे थे, तो आप जी ने (उसी बाल्यावस्था में) अपने पूज्य बापू जी से उस जमीन पर खुद काश्त करने को कहा। इस पर ठेकेदार भाइयों ने पूज्य बापू जी से आग्रह किया कि आप जी जमीन नहीं देंगे तो हम खाएंगे क्या? हम तो भूखे मर जाएंगे। तो पूज्य गुरु जी ने अपनी दूसरी साईड वाली जमीन का ठेका उन्हें देने को पूजनीय बापू जी से कहा और पूजनीय बापू जी ने स्वयं भी उन्हें कहा कि ‘काका ठीक कहता है, आप वो वाली जमीन ठेके पर ले लो।’ वास्तव में पूजनीय बापू जी ने अपने अनुभवों में अपने लाडले के अंदर ईश्वरीय झलक को महसूस कर लिया था और इसलिए अपने लाडले की हर बात पर अपनी सहमति जताया करते थे।
इस हकीकत का राज भी संत बाबा त्रिवैणी दास जी ने शुरु में ही उन्हें बता दिया था। उस वर्ष पूजनीय बापू जी ने अपनी उस जमीन पर चने की बिजाई करवाई। कुदरत का भाणा, उस वर्ष बारिश भी अच्छी हुई और उस बरानी जमीन पर उस वर्ष चने की भरपूर फसल हुई। ईश्वरीय माया को प्रत्यक्ष में निहार कर पूजनीय बापू जी का विश्वास अपने लाडले में और भी दृढ़ हो गया। नूरी बचपन की एक और दिलचस्प घटना है। यहां जो कुछ भी वर्णन किया जा रहा है, यह किसी किस्से या कहानियों का हिस्सा नहीं, बल्कि सौ प्रतिशत वास्तविकता, सच्ची घटनाएं हैं और श्री गुरुसर मोडिया में हर समकालीन शख्स इन घटनाओं की ठोक कर हामी भरता है।
पहला टक लगाया:
उन दिनों गांव में बरसाती पानी को एक बड़े आकार की पक्की डिग्गी में संग्रहित करने की चर्चा चली। बुजुर्गों का सुझाव सराहनीय था। सभी ने इस बात पर सहमति जताई। अपने इस उद्देश्य की स्वीकृति लेने या यूं कह लीजिए कि संत जी के वचन करवाने के लिए, ताकि इतना बड़ा कार्य निर्विघ्न, सफलतापूर्वक पूरा हो, गांव के मुखिया लोग संत-बाबा त्रिवैणीदास जी से मिले। गांव के समस्त लोगों का संत जी में दृढ़ विश्वास था, क्योंकि वह जो कुछ भी कहते या करते, सारे गांव के हित में होता था।
संत-बाबा उनके इस फैसले से बहुत खुश थे। उन्होंने डिग्गी की खुदाई करने का जहां मुहूर्त (तिथि, वार, समय) बताया, वहीं यह भी कहा कि डिग्गी खुदाई के कार्य का शुभारंभ नम्बरदार साहब के बेटे (पूज्य गुरु जी) से पहला टक लगवा कर करेंगे। वैसे तो सबकी सौ प्रतिशत सहमति थी, सत्यवचन कहा, लेकिन हो सकता है 2-4 व्यक्तियों ने शायद अपने मते अनुसार कहा हो कि वह तो अभी नन्हा बालक है, कस्सी-फावड़ा कैसे उठा पाएंगे। लेकिन संत-बाबा ने जोर देकर अपने वचनों को दृढ़ता से कहा कि पहला टक तो आपां नम्बरदार के बेटे से ही लगवाएंगे।
संत बाबा के मार्गदर्शन में सारी कार्यवाही सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। गांव में खुशी का माहौल था। प्रचलित प्रथा अनुसार खुशी के इस मौके पर गांववासियों द्वारा सांझे तौर पर मीठे चावल आदि का यज्ञ किया गया, मीठे चावल सारे गांव में बांटे यानि खिलाए गए। संत-बाबा ने यह भी वचन गांव वालों को किए कि इस डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं होगा, चाहे कितना भी उपयोग होता रहे। संत-बाबा ने दृढ़ता से गांव वालों से कहा कि इस डिग्गी का मुहूर्त आपां ने एक ऐसे महापुरुष, रब्बी शख्सियत से करवाया है, जिसकी महान हस्ती का पता समय आने पर सबको मालूम पड़ेगा। ये हैं पूज्य गुरु जी के रब्बी नूरी बचपन की कुछेक सच्चाईयां। और भी अनेक ऐसी अद्भुत व दिलचस्प घटनाएं वर्णनीय हैं, जो आप श्री गुरुसर मोडिया के परम आदरणीय गांव वासियों से मिलकर जान सकते हैं।
सतगुरु जी ने अपने पास बैठाकर दिया गुरुमंत्र:
25 मार्च साल 1973 का दिन था। पूज्य गुरु जी अपने पूजनीय बापू जी के साथ पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-शब्द, गुरुमंत्र लेने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में पहुंचे थे। उस दिन नाम देने का प्रोग्राम शाह मस्ताना जी धाम के तेरावास व सचखंड हाल के बीच वाले पंडाल में रखा गया था। आप जी अपने पूजनीय बापू जी के साथ नाम लेने वालों में पीछे ही बैठ गए।
जब पूजनीय परमपिता जी नाम-दान देने के लिए पंडाल में पधारे तो आप जी को आवाज देकर, ‘काका, आप आगे आकर बैठो।’ और इस तरह अपने पास बैठाकर नाम-गुरुमंत्र प्रदान किया। इस प्रकार आप जी ने 5-6 वर्ष की आयु में अपने पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से 25 मार्च 1973 को नाम-गुरुमंत्र की दात प्राप्त की। पूजनीय परमपिता जी ने नाम-शब्द, गुरुमंत्र के बहाने अपने भावी उत्तराधिकारी को पा लिया। इस सच्चाई का सारी दुनिया को 23 सितम्बर 1990 को तब पता चला, जब पूजनीय परमपिता जी ने आप जी को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गद्दीनशीन किया।
पूज्य गुरु जी कर्मठता की मिसाल है:
अब थोड़ा पूज्य गुरु जी की कर्मठता पर भी नजरसानी कीजिए। यह बात तो हम पहले ही बता चुके हैं कि पूज्य गुरु जी का जन्म बहुत ही बड़े लैंडलॉर्ड परिवार में हुआ है। आप जी ने मात्र 7-8 वर्ष की आयु में ही पूजनीय बापू जी के इतने बड़े जमींदारा कार्य को पूर्ण तौर पर ही संभाल लिया था। राजस्थान के इस एरिया में जब से नहरों का उद्गम हुआ, नहर आई, तो आप जी ने अपने सख्त परिश्रम से अपनी पूरी की पूरी सौ एकड़ से भी ज्यादा जमीन में पानी लगता कर दिया। जबकि पहले केवल 20 एकड़ में ही पानी लगता था।
ट्रैक्टर भी आप जी ने तभी 7-8 वर्ष की उम्र में चलाना शुरु कर दिया था। चाहे ड्राइवर सीट पर बैठे आप जी के पांव कलच, ब्रेक पर नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन आप जी ने अपनी जमीन पर जितनी सख्त मेहनत की, इस वास्तविकता को सभी गांववासी भी अच्छे से जानते हैं और यह भी सभी जानते हैं कि जब से आप जी ने पूजनीय बापू जी के कृषि कार्यों को अपने हाथ में लिया था, फसल भी दोगुनी-चौगुनी और आमदन भी दौगुनी-चौगुनी होती है। क्योंकि खेतीबाड़ी का सारा कार्य आप जी स्वयं किया करते थे, भले ही पूजनीय बापू जी के कितने ही सीरी-सांझी और नौकर आदि भी थे।
इसी तरह यहां आश्रम में भी पूज्य गुरु जी हर तरह का अपना कृषि-कार्य स्वयं करते हैं। आप जी के सख्त परिश्रम व प्रेरणा से ही आश्रम डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम की जमीनों पर कौन-सा ऐसा फल, सब्जियां या अन्य फसलें हैं, जो पूज्य गुरु जी ने यहां के रेत के टीलों में न उगाई हों। सेब जैसे फल, अखरोट, बादाम जैसे मेवे (ड्राईफ्रूट) भी पूज्य गुरु जी ने खुद की मेहनत से इतना ज्यादा तापमान होते हुए भी यहां की जमीनों से लिए हैं। एक ही समय में, एक ही जगह से तरह-तरह के फल और तेरह-तेरह सब्जियों की पैदावार लेना किसी अचम्भे से कम नहीं है। इस प्रकार पूज्य गुरु जी स्वयं कर्मठता की मिसाल खुद आप हैं।
मानवता भलाई कार्यों की मिसाल:
जैसे-जैसे पूज्य गुरु जी उम्र के पड़ाव में आगे बढ़ते गए, मानव व समाज हितैषी कार्यों का दायरा भी विशाल से और विशाल होता गया। विशेषकर डेरा सच्चा सौदा में अपने गुरगद्दी पर विराजमान होने के बाद आप जी के मानवता हितैषी कार्य तीव्र गति से बढ़ते ही चले गए हैं।
डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह:
दिनांक 23 सितम्बर 1990 को सच्चे दाता रहबर परमपिता जी ने आप जी को डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान किया और किसी तरह का कोई शंका-भ्रम भी किसी के अंदर नहीं रहने दिया। गुरगद्दी रस्म की कानूनी परिक्रिया (वसीयत) पूजनीय परमपिता जी ने उससे कई दिन पहले ही तैयार करवा ली थी और गुरगद्दी बख्शिश का दिन, तारीख, समय आदि भी पहले से ही निश्चित कर लिया था।
अपनी वसीयत में पूजनीय परमपिता जी ने जिन भी जिम्मेवार सेवादारों की ड्यूटी लगाई थी, उन्हें विशेष तौर पर यह लिखवाने का सख्त आदेश फरमाया कि ‘आज से ही’ डेरा सच्चा सौदा की जमीन-जायदाद, साध-संगत की सेवा-संभाल आदि हर जिम्मेवारी…, और दोबारा फिर से जोर देकर यह लिखवाने का आदेश फरमाया कि ये सब कुछ ‘आज से ही’ इनका (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का) है। जब स्वयं पूजनीय बेपरवाह जी खुद अपनी वसीयत में यह सब लिखवा रहे हैं कि आज से ही डेरा सच्चा सौदा और डेरा सच्चा सौदा का सबकुछ इनका (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का) है, तो कोई किंतु-परंतु का सवाल ही नहीं हो सकता।
गुरगद्दी पर विराजमान होने के बाद पूजनीय गुरु जी ने रूहानी व मानवता भलाई के कार्यों की डेरा सच्चा सौदा में मानो सैलाब ला दिया हो। एक तरफ जहां कुल मालिक परमपिता परमात्मा का रूहानी कारवां पूज्य गुरु जी के पावन मार्ग-दर्शन में दिन दौगुनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ता चला गया, तो वहीं दूसरी ओर डेरा सच्चा सौदा साध-संगत के उत्साह व पूर्ण सहयोग से विश्व स्तरीय भलाई कार्य करके बच्चे-बच्चे के मन में घर कर गया। दुनिया का कौन-सा ऐसा शख्स है, जो आज पूज्य गुरु जी द्वारा संचालित 157 मानवता भलाई के कार्यों से वाकिफ न हो, जो आज डेरा सच्चा सौदा की साढे छह करोड़ से भी ज्यादा साध-संगत द्वारा बढ़चढ़ कर किए जा रहे हैं।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र 56वं अवतार दिवस 15 अगस्त की सारी सृष्टि को लख-लख बधाई हो जी।