स्मार्ट फोन के खतरों से बचें
मोबाइल फोन व इंटरनेट ने दुनिया का नक्शा ही पलट कर रख दिया है। हजारों मील की दूरी पर बसे किसी अपने से बात करने का मन हो तो बस बटन दबाइए और एक दूसरे से जुड़ जाइए। किसी को कहीं भी कैच करना यूं बहुत आसान हो गया है। इसी तरह घर बैठे आप अपने बहुत से जरूरी काम मोबाइल की सहायता से निपटा सकते हैं, न पेट्रोल का खर्च, न जाने की जहमत, न लाइनों में लगने की मुसीबत।
क्या गांव क्या शहर, यह हर किसी के जीवन का हिस्सा बन चुका है लेकिन हर चीज की हमें कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। सैल फोन के केस में भी ऐसा ही है। रिश्तों में आती दूरियां, सेहत पर बुरा असर, क्वालिटी आफ लाइफ का गिरता स्तर, खासकर बच्चों के लिए यह एक खतरनाक खिलौना बन चुका है जबकि बच्चों में इसके प्रति दीवानगी बढ़ती ही जा रही है।
नई जनरेशन सेल फोन की इतनी गुलाम हो चुकी है कि अगर इसे लाइफस्टाइल एडिक्शन कहा जाए तो गलत न होगा।
मनोवैज्ञानिक के अनुसार अगर दिन में कई घंटे सेलफोन का प्रयोग किया जाए तो इससे प्रयोगकर्ता में कुछ साइकोलॉजिकल डिस्आर्डर विकसित हो जाते हैं। मोबाइल एडिक्शन से सेल्फ एस्टीम में कमी आती है। उन्हें सामाजिक रिश्ते विकसित करने में प्राब्लम आती है। वे फोन के बिना बहुत हैल्पलैस महसूूस करते हैं। किसी भी काम में फोकस करना मुश्किल होता है।
फोन खोने का अर्थ होता है अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा गंवा देना। बात करते-करते अचानक बैटरी का खत्म हो जाना और उसके बाद सारा दिन बेचैन रहना या उसे चार्ज करने की कोशिश में लगे रहना बहुत देर तक घंटी न बजे तो बार-बार फोन उठाकर चेक करना कि कहीं वह स्विच आफ तो नहीं हो गया है। बैठे बैठे कई बार यह आभास होना कि घंटी बज रही है, इसी को नोमोफोबिया कहते हैं। साइकोलॉजिकल प्राब्लम के साथ शरीर पर भी इस एडिक्शन का कम बुरा असर नहीं पड़ता यथा।
- सिर की त्वचा पर जलन, लालिमा-फुंसियां, खुजली, सिहरन व चकते।
- थकान अनिद्रा, चक्कर आना, कानों में आवाज आना या घंटियां बजना।
- प्रतिक्रि या देने में वक्त लगना।
- एकाग्रता में कमी, सिर दर्द का कारण बन सकती है, एक स्टडी के अनुसार इससे ब्रेन टयूमर तक हो सकता है।
- पाचनतंत्र में गड़बड़ी, उबकाई, धड़कन बढ़ना, हाथ पैर में कंपन, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में जकड़न, स्ट्रोक, पेरालिसिस।
- श्वेत रक्त कणों की संख्या कम होना इससे अस्थमा हो सकता है।
- आंखों का कैंसर, दृष्टिपटल क्षतिग्रस्त होना।
यह सब एक लिमिट क्र ास करने पर हो सकता हे। तो देखा आपने टेक्नालॉजी का ये करिश्मा सिर्फ मौजें ही नहीं कराता बल्कि मौत का पैगाम भी ला सकता है। आप मोबाइल बिल्कुल यूज न करें, यह आज संभव नहीं। इसकी जरूरत भी नहीं।
बस आप इसके खतरों से सावधान रहते हुए कुछ बातों का ख्याल रखें। वे बातें हैं:-
- मोबाइल को वायब्रेशन मोड में न रखें।
- सेलफोन का प्रयोग गाने सुनने, मूवी देखने या गेम्स खेलने के लिए न करें।
- मोबाइल में रेडिएशन अवरोधी कवर लगवाएं।
- रात को सोते समय या दिन में भी सेलफोन सिर के पास न रखें।
- सेलफोन पर अधिक देर बात न करें। यह जरूरी बातचीत के लिए है, गपशप के लिए नहीं।
एक अध्ययन के अनुसार अधिक समय तक मोबाइल फोन को कान पर लगाये रहने से उससे निकलने वाली इलैक्ट्रिक मेगनेटिक वेव्जÞ मस्तिष्क के टिश्यूज पर असर डालती हैं। रिपोर्ट में बच्चों के लिए खास हिदायत दी गई है कि सोलह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन का प्रयोग बहुत कम या बिल्कुल न करने देना ही उनके हक में बेहतर है।
वैज्ञानिक जो तथ्य पेश कर रहे हैं और बार-बार बता रहे हैं, उसके अनुसार मोबाइल फोन बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है। ब्रिटेन की एजेंसी ‘नेशनल रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड ने चेतावनी दी थी कि छोटे बच्चों को मोबाइल फोन से होने वाले हानिकारक प्रभावों से बचाना बहुत जरूरी है। यह बात हमारी उनके प्रति प्राथमिकताओं में होनी चाहिए।
उषा जैन ‘शीरीं’