बच्चों के सामने मर्यादित रखें व्यवहार
बच्चे घर की शोभा होते हैं। उनकी शरारतें, शरारती हंसी व नादानियां माता-पिता और सगे-संबंधियों का मन मोह लेती हैं। बच्चे सरल मन से मन की बात बिना सोचे समझे सब के बीच बोल देते हैं तो उनको बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाता है परन्तु कभी-कभी बच्चे के मुख से निकली हुई छोटी सी बात माता-पिता के लिए परेशानी का कारण बन जाती है जिससे अभिभावक परेशान होकर बच्चे को मारते, पीटते हैं जो बाल-मन के लिए उचित नहीं है।
अधिक समझाना भी उनके सिर के ऊपर से निकालना ही होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि माता-पिता तो हर समय कुछ न कुछ बताते रहते हैं। किसी न किसी रूप में बच्चों की नादानियों के बारे में बच्चों को बताना भी आवश्यक होता है। थोड़ी सी अक्लमंदी से माता-पिता बच्चे की इन समस्याओं से स्वयं को शर्मिन्दा होने से बचा सकते हैं।
माता-पिता को चाहिए कि बच्चे चाहे छोटे हों या बड़े, कभी भी उनके सामने किसी संबंधी या जानपहचान वालों के बारे में नकारात्मक बात न करें। बच्चों के मन में शुरू से ही अनजाने में उन रिश्तों में एक दीवार सी बनती चली जाती है जिसे दूर करना माता-पिता के लिए मुश्किल हो जाता है।
यह सोच कर भी परिवार में ऐसी बात न करें कि बच्चे तो खेलने में मस्त हैं। उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि हम किसके बारे में बातें कर रहे हैं। उनकी उपस्थिति को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। बहुधा हम उनको नजर अंदाज करते हैं और वे कुछ आधी अधूरी बातें सुनने पर उनका गलत अर्थ निकाल लेते हैं जो माता-पिता के लिए भारी पड़ सकता है।
माता-पिता को विशेष ध्यान देना चाहिए कि जब कभी वे किसी समारोह या किसी के घर से आएं, रास्ते में वहां की कमियों पर चर्चा न करें। उनके खाने व व्यवहार आदि को सकारात्मक रूप दें। कभी नकारात्मक रूप न दें क्योंकि बच्चे भोलेपन में कभी उनके सामने आपके विचार बता दें जिससे आप को शर्मिंदगी उठानी पड़े।
बच्चों के सम्मुख कभी रिश्तेदारों की तुलना न करें, न ही कभी मायके और ससुराल के रिश्ते में अंतर झलकाएं। यदि कोई दूसरा किसी और के बारे में आपसे फोन पर या सामने बात कर रहा है और बच्चे सामने हैं तो आप उनके बारे में बच्चों के सामने अपने विचार न दें। यदि फोन पर बात हो रही है तो आप उन्हें समझा दें कि आप थोड़ी देर में बात करेगें या किसी काम का बहाना बना कर बात समाप्त करने का प्रयास करें।
बच्चों के सामने किसी की आर्थिक स्थिति के बारे में भी चर्चा न करें। बच्चा कभी यदि ठीक बात कह रहा हो तो उसे सबके सामने बेवकूफ या झूठा साबित न करें। आपके झूठा साबित करने पर बात बढ़ जायेगी और सामने वाला समझ ही जायेगा। किसी संबंधी, पड़ोसी, रिश्तेदार को कोई उपनाम देकर न बुलाएं। यदि बच्चों को समझ आ गया तो वे उनके सामने उसी नाम से पुकार सकते हैं जिससे आप को उनके आगे आंखें नीची करनी पड़ेंगी।
किसी की नकल आदि भी बच्चों के सामने न उतारें। कहीं बच्चे अपनी मासूमियत के नाते उन्हीें के सामने ही नकल उतारने लग जाएं जिन लोगों की नकल आप पीछे से उतारते हैं क्योंकि बच्चे स्वभाव में भोले होते हैं। उन्हें मुंहदेखा व्यवहार करना नहीं आता कि मुंह पर तो मीठे बन जायें और बाद में बुरा भला कहें।
पति-पत्नी को परिवार संबंधी बहस से बचना चाहिए। झूठ बोलना वैसे भी गलत आदत है। इस बात का ध्यान रखें कि स्वयं भी बच्चों के सामने अधिक झूठ का सहारा न लें। संयुक्त परिवार में रहते हुए बच्चों को स्वाभाविक ढंग से जीने का मौका दें। उन्हें मत समझाएं कि कौन बुरा है, कौन अच्छा। उनकी बातें सुनने की आदत भी न डालें। कभी बच्चा सुनकर कुछ बोलता है तो उसे समझाएं कि बड़ों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। यह गंदी आदत है। बच्चों को कभी इन बातों हेतु उत्साहित न करें।
बच्चों को अपना बचपन खुशी से जीने दें। उन पर अपनी पसंद न थोपें। बच्चों को अत्यधिक अनुशासन में न रखें। जबरदस्ती उन्हें किसी के आने पर साथ न रखें, न ही उन्हें वहां से जाने को कहें।
नीतू गुप्ता