Medical Lab Technology
मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी में बेहतर करियर
बॉयोलॉजी के स्टूडेंट्स की इच्छा होती है कि वह आगे चलकर डॉक्टर बनें, लेकिन ऐसा संभव नहीं है कि सभी स्टूडेंट ही डॉक्टर बन जाएं। ऐसी स्थिति में जो स्टूडेंट डॉक्टर नहीं बन पाते हैं, उनके लिए भी निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि मेडिकल में दूसरे ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां आज जॉब की अच्छी संभावनाएं हैं। हम बात कर रहे हैं मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी की। मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड निजी क्षेत्र के साथ-साथ सरकारी क्षेत्रों में भी खूब है। कॅरियर के लिहाज से इसे बेहतरीन क्षेत्र कहा जा सकता है।

कैसे होती है एंट्री-

लैब टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में कॅरियर बनाने के लिए कई रास्ते खुल गए हैं। आप इससे संबंधित कोर्स, जैसे- सर्टीफिकेट इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी (सीएमएलटी), बीएससी मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी (बीएससी एमएलटी), डिप्लोमा इन मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी (डीएमएलटी) जैसे कोर्स कर सकते हैं। आमतौर पर इस तरह के कोर्स 12वीं के बाद किए जा सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं में बॉयोलॉजी सब्जेक्ट होना जरूरी है।

डिप्लोमा कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है। वैसे, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी कोर्स कराने वाले संस्थानों की कमी नहीं है। बस, ऐसे इंस्टीट्यूट में एडमिशन लें, जहां अच्छे लैब उपकरण हों। इंस्टीट्यूट अच्छा होने से आप इस फील्ड की नई तकनीक और मशीनों से परिचित रहते हैं। वैसे, इस फील्ड में जॉब तो बीएससी या डिप्लोमा करके ही हासिल किया जा सकता है, लेकिन किसी अच्छे सब्जेक्ट का चुनाव कर पीजी कर लेने से आगे आॅप्शन बन जाते हैं और आपकी डिमांड एक स्पेशलिस्ट के रूप में होने लगती है।

मेडिकल लैब टेक्निशियन और टेक्नोलोजिस्ट-

इस फील्ड में दो तरह के प्रोफेशनल काम करते हैं-एक मेडिकल लैबोरेट्री टेक्निशियन और दूसरे मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट। दोनों का काम अलग-अलग होता है। मेडिकल टेक्निशियन का काम मुख्य तौर पर विभिन्न चीजों के सैंपल को टेस्ट करना होता है। हालांकि यह काम काफी जिम्मेदारी भरा होता है। जांच के दौरान थोड़ी सी गलती किसी व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकती है, क्योंकि डॉक्टर लैब रिपोर्ट के अनुसार ही इलाज और दवा लिखते हैं।

वैसे, तो लैब टेक्निशियन अपना काम स्वयं करते हैं, लेकिन लैब में सुपरवाइजर के रूप में उनके सीनियर भी होते हैं। आमतौर पर टेक्निशियन के काम को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- नमूना तैयार करना, जांच की मशीनों को आॅपरेट करना एवं उनका रखरखाव और जांच की रिपोर्ट तैयार करना। टेक्निशियन नमूना तैयार करने के बाद मशीनों के सहारे इसे टेस्ट करते हैं और एनालिसिस के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। स्पेशलाइज्ड उपकरणों और तकनीक का इस्तेमाल कर टेक्निशियन सारे टेस्ट करते हैं। इस तरह ये इलाज में अहम रोल रखते हैं।

मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट रोगी के खून की जांच, टीशू, माइक्रोआर्गनिज्म स्क्रीनिंग, केमिकल एनालिसिस और सेल काउंट से जुड़े परीक्षण को अंजाम देता है। ये बीमारी के होने या न होने संबंधी जरूरी साक्ष्य जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका काम भी जिम्मेदारी भरा होता है। ये ब्लड बैंकिंग, क्लीनिकल केमिस्ट्री, हेमाटोलॉजी, इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में काम करते हैं। इसके अलावा टेक्नोलॉजिस्ट साइटो टेक्नोलॉजी, फेलबोटॉमी, यूरिन एनालिसिस, काग्यूलेशन, पैरासीटोलॉजी और सेरोलॉजी सम्बंधी परीक्षण भी करते हैं।

पैरा मेडिकल के तहत आने वाले फील्ड-

पैरा मेडिकल सिर्फ नर्सिंग और अस्पताल के प्रशासनिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके दायरे में कई क्षेत्र, जैसे- मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, आॅपरेशन थियेटर टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और आॅक्यूपेशनल थेरेपी, कार्डियक टेक्नोलॉजी, डायलिसिस, रेनल डायलिसिस टेक्नोलॉजी, आॅर्थोटिक और प्रोस्थेटिक टेक्नोलॉजी, आॅप्टोमेट्री, फामेर्सी, रेडियोग्राफी-रेडियोथेरेपी, हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन-मैनेजमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड संचालन, आॅडियोलॉजी एंड स्पीच थेरेपी, डेंटल हाइजिन एंड डेंटल मैकेनिक, डेंटल सेरामिक टेक्नोलॉजी के अलावा, स्वास्थ्य-स्वच्छता निरीक्षण आदि आते हैं।

जॉब की संभावनाएं-

डीपीएमआई की प्रिंसिपल डॉक्टर अरूणा सिंह के मुताबिक, इस फील्ड में सरकारी और प्राइवेट दोनों सेक्टरों में काफी संभावनाएं हैं। सरकारी क्षेत्र में जॉब के आपको वैकेंसीज का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में ऐसी बात नहीं है। अगर आप चाहें, तो शुरूआती दौर में प्राइवेट लैब के साथ जुड़ कर काम कर सकते हैं। अगर बीएससी मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट हैं, तो अपनी लैब भी खोल सकते हैं। जॉब की स्थिति में हो सकता है कि आपको छोटी लैब में होने से सैलरी कम मिले। सरकारी क्षेत्र में आपको शुरूआत से ही अच्छी सैलरी मिलती है।

वैसे, ट्रेंड मेडिकल लैबोरेट्री टेक्निशियन को हॉस्पिटल, इमरजेंसी सेंटर, प्राइवेट लैबोरेट्री, ब्लड डोनर सेंटर और डॉक्टर के आॅफिस या क्लीनिक में से कहीं भी आसानी से काम मिल सकता है। एक्सपीरियंस और क्वालिफिकेशन के बाद टेक्निशियन भी टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर काम करना शुरू कर सकता है। अस्पतालों और लैबोरेट्री की संख्या लगातार बढ़ने से मेडिकल टेक्निशियन की मांग हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है।

वर्क एक्सपीरियंस के साथ टेक्नोलॉजिस्ट लैब या हॉस्पिटल में सुपरवाइजरी या मैनेजमेंट की पोस्ट तक पहुंच सकता है। ट्रैड टेक्नोलॉजिस्ट लैबोरेट्री मैनेजर, कंसल्टेंट, सुपरवाइजर, हैल्थकेयर एडमिनिस्ट्रेशन, हॉस्पिटल आउटरीच कॉर्डिनेशन, लैबोरेट्री इन्फर्मेशन सिस्टम एनालिस्ट, कंसल्टेंट, एजुकेशनल कंसल्टेंट, कॉर्डिनेटर, हैल्थ एंड सेफ्टी आॅफिसर के तौर पर भी काम कर सकता है। मेडिकल के क्षेत्र में प्रोडक्ट डिवेलपमेंट, मार्केटिंग, सेल्स, क्वॉलिटी इंश्योरेंस, एन्वायरनमेंट हेल्थ एंड इंश्योरेंस जैसे क्षेत्रों में भी मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड होती है।

सैलरी पैकेज-

इस फील्ड में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की शुरूआती सैलरी 10-15 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। अनुभव के बाद सैलरी बढ़ने के साथ-साथ अपनी लैब भी खोल सकते हैं।

प्रमुख संस्थान-

  • दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, दिल्ली
  • राजीव गांधी पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली
  • इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ पैरामेडिकल साइंसेज, लखनऊ
  • इंस्टीट्यूट आॅफ पैरामेडिकल टेक्नोलॉजी, दिल्ली
  • त्रिपुरा इंस्टीट्यूट आॅफ पैरामेडिकल साइंसेज, असम
  • पैरामेडिकल कॉलेज दुर्गापुर, वेस्ट बंगाल।
-साभार: नया इंडिया

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