भाई! तुम्हारा प्रेम ही हमें वापिस लेकर आया है -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी दीवान चंद पुत्र श्री निहाल चंद गांव खुईयां मलकाना तह. डबवाली जिला सरसा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंंह जी महाराज की गांव खुईयां मलकाना तथा पन्नीवाला की संगत पर एक अनोखी रहमत का वर्णन करता है:-
सन् 1980 से पहले की बात है। उन दिनों पूजनीय परमपिता जी एक गांव को एक ही सत्संग दिया करते थे। सरसा दरबार में मजलिस के बाद मैंने और गांव पन्नीवाला रूलदू के कविराज प्रेमी इन्द्र सिंह ने अपने गांवों के कुछ प्रेमियों को साथ लेकर पूजनीय परमपिता जी की हजूरी में प्रार्थना की कि हमारे गांव में अपने चरण टिकाओ जी और संगत को निहाल करो जी। पूजनीय परमपिता जी ने हमें फरमाया- ‘बेटा तुमने इस तरह करना, हम बुधवार सत्संग करके वापिस आएंगे, बारह बजे जी.टी. रोड़ पर नहर के पुल पर आ जाना।’ संगत खुश हो गई कि अर्ज मंजूर हो गई।
पूजनीय परमपिता जी ने इससे पहले भी नहर के पुल पर रुक कर इलाके की संगत को दर्शन दिए थे व खुशियां बख्शी थी। इस निश्चित दिन को गांव पन्नीवाला से लगभग चालीस सत्संगी भाई तथा बहनें भजन मंडली और सेवा समिति के लिए घर से तैयार की गई कुछ मिठाई व चाय-पानी का सामान लेकर दोपहर बारह बजे नहर के पुल पर पहुंच गए। उसी समय मेरे गांव खुईयां मलकाना तथा आस-पास के खेतों से भी कुछ लोग वहां पर आ गए। संगत आंखों में शाही दर्शनों की तलब लिए डबवाली की तरफ से आने वाली जीपों-कारों को देख रही थी। परंतु पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज संगत के पुल पर पहुंचने से कुछ समय पहले सरसा की तरफ जा चुके थे।
जब संगत को इस बात का पता चला तो संगत निराश हो गई। माता-बहनें चूल्हा बनाकर चाय की तैयारी कर रही थी, वो भी चुपचाप होकर बैठ गई। एक प्रेमी जो अपनी रिश्तेदारी में आया हुआ था, वह संगत को विनती करने लगा कि पहली बात पूजनीय परमपिता जी अभी यहां से नहीं गुजरे। अगर चले भी गए हैं तो उनको वापिस लाने का एक ही तरीका है, हमारा सच्चा प्रेम, सच्ची तड़प। भरोसा रखो, मालिक बिना तारों के टेलिफोन सुनेंगे। आप सभी एकाग्रचित होकर सुमिरन करो कि हे मालिक! हमारी विनती मंजूर करो और हमारी हाजिरी लगाओ। कविराजों ने अभी दो ही भजन बोले थे कि परमपिता जी की गाड़ी डबवाली की बजाय सरसा की तरफ से आ गई।
पूजनीय परमपिता जी की गाड़ी को देखते ही संगत इतनी खुश हुई कि उसका अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता। पूजनीय परमपिता जी ने गाड़ी से उतरते हुए स्वयं ही खुलासा किया, ‘हम भूल गए थे और गाड़ी रोकने के लिए कहा कि भाई! संगत तो अपनी इंतजार कर रही होगी। अपने उसे टाइम दिया हुआ था। अपने वापिस चलें और इन्हें मिलकर आएं। अत: हम अब तुम्हारे पास आ गए हैं।’ शहनशाह परमपिता जी ने संगत को आशीर्वाद दिया और संगत परमपिता जी के दर्शन करके निहाल हो गई। पूजनीय परमपिता जी सजी कुर्सी पर विराजमान हो गए। हुक्मानुसार ज्ञानी दलीप सिंह रागी ने कव्वाली बोली। सेवा समिति के सेवादारों ने चाय-पानी भी लिया। पूजनीय परमपिता जी ने आखिर में फरमाया, ‘भाई! तुम्हारा प्रेम ही हमें वापिस लेकर आया है। वैसे हम काफी आगे चले गए थे।’
संत-महात्मा प्रेम रूप ही होते हैं। प्रेम द्वारा ही उन्हें खुश किया जा सकता है। केवल बातों से वह खुश नहीं होते। पूजनीय परमपिता जी अकसर फरमाया करते कि मालिक प्रेम है, प्रेम ही मालिक है। प्रेम तथा मालिक में कोई भेद नहीं है। किसी का दिल तोड़ने से बड़ा कोई पाप नहीं। टूटे दिल को जोड़ने की मरहम प्रेम है। एक टूटे दिल को जोड़ दिया भाव खुश कर दिया, इससे बड़ा और कोई पुण्य नहीं। अगर हम दूध नहीं पिला सकते तो पानी पिलाकर ही प्रेम करो। जुबान से प्रेम के दो शब्द बोलकर उसे ढांढस बंधवाओ। परमपिता जी अकसर बाहु जी की लिखी पंक्ति बोलकर सुनाया करते:- ‘इक दिल खसता राजी रखें बाहु, लैं सै वरेआं दी इबादत हू।’