सतगुरु जी की कृपा से बिना तुतलाए बोलने लगी बेटियां -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी राकेश कुमार धवन इन्सां (प्रिंसिपल, शाह सतनाम जी बॉयज स्कूल सरसा) पुत्र सचखंडवासी श्री प्रशोत्तम लाल धवन इन्सां, निवासी कल्याण नगर, सरसा से अपनी बेटियों पर हुई सतगुरु जी की अपार रहमत का वर्णन करता है:
मेरी दोनों बेटियां शुरु से ही बुरी तरह तुतलाकर बोलती थी। मेरी बड़ी बेटी सुरूचि इन्सां सन् 2003 में तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। उसके बुरी तरह तुतलाने से हमारा सारा परिवार चिंतित रहने लगा। इसी दौरान एक दिन हमारे पूरे परिवार को पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ, तो हमारे परिवार ने पूज्य पिता जी से अरदास की और कहा कि पिता जी, ये गुड़िया तुतलाकर बोलती है, आप जी मेहर करो जी।
तो इस पर पूज्य गुरु जी ने सुरूचि पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए वचन फरमाए, ‘कौन कहता है ये तुतलाती है। ये तो बिल्कुल सही बोलती है।’ इस पर पूरे परिवार ने सत्वचन कहते हुए पूज्य हजूर पिता जी के उन वचनों को अपने दामन में समेट लिया और हम अपने घर आ गए। बस फिर क्या था। ‘संत वचन पलटे नहीं पलट जाए ब्रह्मण्ड।’ उस दिन के बाद सुरूचि कभी भी तुतलाकर नहीं बोली। आज वो एम.एन.सी. कम्पनी में जॉब कर रही है।
इसी तरह मेरी छोटी बेटी सुगन्ध इन्सां भी तुतलाकर बोलती थी। जब वह सात साल की हो गई, तो मुझे इसकी चिंता सताने लगी। इसी दौरान नवम्बर 2007 में स्कूल में दिवाली की दस दिन की छुट्टियां थी। इन छुट्टियों में मैंने शाह सतनाम जी धाम में 12 घंटे की खड़े होकर पहरा देने की सेवा ली और खूब लगन से सेवा की। उन दिनों पूज्य गुरु जी सभी पहरे वाले सेवादारों को सचखंड हाल में मिले और प्रशाद दिया।
उस समय पिता जी ने वचन फरमाए, ‘जिन सेवादारों ने लगन से सेवा की है, मालिक उनकी जायज मांग जरूर पूरी करेंगे।’ उसी समय मैंने सुमिरन करके अंदर ही अंदर ये अरदास की कि हे मालिक, मेरी छोटी बेटी सुगन्ध तुतलाती है, उसे ठीक कर दो और मेरी यह जायज मांग पूरी कर दो जी। फिर मैंने घर जाकर उस प्रशाद में से थोड़ा सा प्रशाद नारा लगाकर सुगन्ध को दे दिया। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद सुगन्ध कभी भी तुतलाकर नहीं बोली। सतगुरु जी के अहसानों का बदला चुकाया नहीं जा सकता। जैसे एक भजन में आता है
इक जे अहसान होवे,
हो सकदा मैं भुल वी जावां।
लक्खां ने अहसान कीते,
दाता दस खां किवें मैं भुलावां।
मेहर करीं ऐसी दातेआ,
तेरे बचनां ते अमल कमावां।