बेपरवाह सार्इं जी ने अपने शिष्य को अत्यंत खुशियां बख्शी -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
श्रीमति सुखदेव कौर इन्सां पत्नी श्री भाग सिंह गांव सिकंदरपुर जिला सरसा से पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज के अनुपम रूहानी खेलों का बयान इस तरह करती है:-
माता सुखदेव कौर लिखती है कि यह बात लगभग 1956 की है। उस समय मैं अविवाहित थी। हमारा सारा परिवार गांव चक नारायण सिंहवाला जिला श्री गंगानगर (राजस्थान) में रहता था। पूजनीय शहनशाह जी श्री गंगानगर शहर में ठहरे हुए थे। शहनशाह जी सुबह की सैर करते-करते हमारे गांव चक नारायण सिंह वाला के खेतों में आ गए। मेरे बापू जी चक नारायण सिंह वाला में एक बड़े फार्म के चौकीदार थे। वह वहां फार्म में ही एक झोपड़ी में समेत परिवार रहते थे।
मेरे बापू जी शहनशाह मस्ताना जी को पहले से ही अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि उन्होंने बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम लिया हुआ था। उस समय ब्यास में मेरे बापू जी की चाय की दुकान थी। पूजनीय शहनशाह जी कभी-कभी मेरे बापूजी की चाय की दुकान पर आया करते थे। किस तरह बेपरवाह मस्ताना जी पूजनीय बाबा सावण सिंह जी की हजूरी में नाचा करते और पूजनीय बाबा जी खुश होकर रहमतों भरे वचन किस तरह करते, वह सभी बातें उन्हें याद थी।
जब शहनशाह जी झोपड़ी के पास से गुजरने लगे तो मेरे बापूजी नजदीक होकर नारा लगाना चाहते थे। परंतु सेवादारों ने मेरे बापूजी को धकेल कर पीछे कर दिया। शहनशाह जी के साथ उस समय सात-आठ सेवादार थे, जो किसी को भी शहनशाह जी के नजदीक नहीं होने देते थे। सेवादारों में एक प्रेमी थानेदार भी था। मेरे बापू जी ने थानेदार को बाजू से पकड़ कर कहा कि पीछे हट भई! कूजों की वो जाने जो साथ उड़े। इतने में पूजनीय शहनशाह जी बोले- भई कौन है? थानेदार प्रेमी ने बताते हुए कहा कि एक प्रेमी है, तंग करता है। शहनशाह जी बोले- इसको आगे आने दो, क्या कहता है? मेरे बापू जी बोले कि मैं जगत सिंह ब्यास वाला हूं। ब्यास में मेरी दुकान पर आपजी चाय पीने आया करते थे। तो शहनशाह जी बोले, वाह भई वाह! जगन तूं कहां से आ गया! हम वापिस आयेंगे तो तेरे पास होकर जाएंगे। शहनशाह जी मेरे बापूजी को जगन कहा करते थे।
शहनशाह जी घंटे बाद वापिस आये। मेरे बापूजी ने पूजनीय मस्ताना जी के चरणों में अरदास की कि चाय बन रही है, चाय पीकर जाना जी। थानेदार प्रेमी बीच में ही बोला कि सार्इं जी किसी की चाय नहीं पीते। परंतु पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी बोले- चाय रखी है? आपजी कुटिया की तरफ आकर बैठ गए। पूजनीय शहनशाह जी ने चाय पी। जितने दिन पूजनीय बेपरवाह जी श्रीगंगानगर में रहे, हमारे घर होकर जाते। मेरे बापूजी पूजनीय मस्ताना जी का बहुत सम्मान करते थे। दूसरे दिन झोपड़ी के आगे एक कपड़ा बिछाया। पूजनीय मस्ताना जी उसके ऊपर से गुजरे। मेरे बापूजी ने उस कपड़े के हमें सभी बहन-भाइयों को सूट सिलाकर दिये।
जब तीसरे दिन शहनशाह जी आए, आकर वापिस श्री गंगानगर जा रहे थे, तो मेरे बापूजी के पास रुक गए और सामने मढ़ियों की तरफ इशारा करते हुए फरमाया- जगन! वो कौन सी जगह है? मेरे बापूजी ने बताया कि मढ़ियां बनी हैं जी। शहनशाह जी बोले- आज तुम्हारी मढ़ियां देखेंगे। सेवादार वहां मूढ़ा लेकर चले गए। पूजनीय मस्ताना जी एक पेड़ की छाया में बैठ गए और अंतर्ध्यान हो गए। आधा घंटा बैठे भजन करते रहे। इतनी देर में वहां काफी लोग इकट्ठे हो गए। उसके उपरांत पूजनीय मस्ताना जी महाराज मेरे बापूजी को मुखातिब होकर बोले- भई जगन! तेरे को हमारे बारे में क्या पता है? तो मेरे बापूजी कहने लगे कि अगर आप जी का हुक्म हो तो बता सकता हूं।
पूजनीय शहनशाह जी से हुक्म मिलने पर मेरे बापू जी ने वहां हाजिर संगत में बताया कि एक बार की बात है, ब्यास डेरे में बाबा सावण सिंह जी महाराज ऊपर चौबारे में संगत को दर्शन दे रहे थे। उस समय उनके हाथ में लाल किताब थी। नीचे आप जी (शहनशाह मस्ताना जी) मस्ती में नाच रहे थे। बाबा जी आप जी का मुजरा देखकर खुश हो रहे थे। बाबा जी ने वचन फरमाये, बोल मस्ताना! क्या मांगता है? आप जी नहीं बोले, आप जी मस्ती में ही नाचते रहे। फिर दूसरी बार वचन हुआ, फिर भी आपजी मस्ती में नाचते रहे। तीसरी बार बाबा जी ने ऊंची आवाज में कहा- बोल मस्ताना, तीसरा वचन है। हम तेरे पर खुश हैं। बोल क्या चाहिए? आपजी नाचते-नाचते रूक गए। आपजी ने पूजनीय बाबा जी को कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे आप चाहिए! आप मेरे अंदर आ जाओ। बस मुझे आप चाहिए। आपजी बाबा जी की तरफ दोनों हाथों से सजदा करते हुए नाचते रहे।
फिर बाबा जी ने वचन किये, जा बागड़, सरसा जा। तेरे को बागड़ का बादशाह बनाया। बागड़ को तार। हम तेरे में हैं, हम तेरे साथ हैं। इतने वचन करके पूजनीय बाबा जी चले गए। उस समय आपजी को गश पड़ गई थी। संगत ने आपजी को हाथों पर उठा लिया था। पूजनीय मस्ताना जी मेरे बापूजी को बोले- तूं कहां था? मेरे बापूजी ने कहा कि मैं वहीं पर आपजी के पास खड़ा था।
जब शहनशाह जी मढियां देखकर वापिस आ रहे थे, उस समय शहनशाह जी मेरे बापूजी के कमरे के पास कुछ देर रुके, इतने में एक प्रेमी की 15-16 साल की लड़की पूजनीय मस्ताना जी को भेंट करने के लिए एक गेंदे का फूल ले आई। उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह शहनशाह जी को फूल दे सके। मैंने उसको कहा कि मैं पकड़ा देती हूं। उसने वह फूल मुझे दे दिया। मैंने वो फूल शहनशाह जी को भेंट कर दिया। शहनशाह जी फूल को पकड़ते हुए उसकी बढ़ाई में बोले- देखो भई! मािलक ने कैसा सुंदर नमूना बनाया है।
कोई भजन सुमिरन करे तो मालिक उसे उसी रंग में रंग देता है। वो दिन मुझे आज भी याद है। जब वो समय याद आता है तो मेरी रूह खुशी में खिल उठती है। पूजनीय हजूर पिता जी के स्वरूप में जब दर्शनों की तड़प उठती है, अरदास करती हूं तो पूजनीय हजूर पिता जी का उसी तरह हंसता हुआ सुंदर चेहरा देखकर वो ही 65-70 साल पहले वाला दृश्य ताजा हो उठता है। सतगुरु जी से अरदास है, आपजी का प्यार इसी तरह मिलता रहे जी।