परोपकार ही संतों का ध्येय -सम्पादकीय
परोपकार शब्द पूर्ण गुरु, रूहानी संतों, पीर-फकीरों का ही पर्यायवाची है और यह शब्द आदिकाल से ही सच्चे संतों, पीर-फकीरों के साथ जुड़ा हुआ है। भला करके कभी जताया न जाए, वो ही परोपकार कहलाता है और यह विशेषता मालिक के संतों व उसके प्यारे भक्तों में ही पाई जाती है।
कहने को तो सृष्टि पर परोपकार होते आए हैं। अपकारक, अनिष्टि और अपकार करने वाले दुराचारी लोग अगर दुनिया में हैं, तो उपकार, भला करने वाले परोपकारी इन्सान भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं। होते तो जरूर हैं, पर उनकी संख्या कुल दुनिया की जनसंख्या के मुकाबले ना के समान होती है, लेकिन जिनका ध्येय और उद्देश्य ही केवल परोपकार करना, दूसरों का भला करना हो, तो ऐसी महान हस्तियां केवल और केवल संत-सतगुरु, केवल रूहानी पीर-फकीर ही होते हैं।
क्योंकि आम इन्सान और रूहानी महापुरुषों के परोपकारी कार्यों में जमीन-आसमान का अंतर होता है। आम जीव जो किसी के प्रति परोपकार की भावना रखता है, उसमें उनका कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा होता है। कोई न कोई अपनी मान-बड़ाई या दुनिया की वाहवाही की लालसा आदि भावना हो सकती है, लेकिन संत केवल और केवल दूसरों का भला (बिना किसी लालसा के पूरी सृष्टि, पूरी मानवता का भला) सोचते हैं। वे जीव-सृष्टि के भले के लिए ही जीते हैं।
जेलखाने में बंद कैदी अपनी सजा भुगतने के लिए मजबूर होते हैं, चाहे उन्हें कोई कितनी भी सुविधाएं, अच्छा खाना, ठंडे पदार्थ, अच्छे कपड़े इत्यादि सुविधाएं दे दें, लेकिन वो रहते जेलखाने में ही बंद है। अगर कोई आकर जेलखाने का दरवाजा खोलकर उन्हें आजाद ही कर दे तो उस शख्स का उपकार अव्वल दर्जे का माना जाएगा, क्योंकि उसने सबको आजाद कर दिया। इसी प्रकार जीवात्मा चौरासी लाख जीव-जूनियों के कैदखाने में बंद जन्म-मरन का दु:ख भोग रही है।
संत जीवात्मा की खुलासी करवाने, उन्हें उस जेलखाने से आजाद करवाने के लिए ईश्वरीय हुक्म से आते हैं। वे परोपकारी संत उस जेल का दरवाजा ही खोल देते हैं और अधिकारी जीवों को जन्म-मरण से सदा के लिए आजाद कर अपने निजघर पहुंचा देते हैं। पूर्ण संतों का यह परोपकार हद दर्जे से अव्वल है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सृष्टि पर अवतार धारण कर जीवों पर अनगिनत उपकार किए। आप जी का जीवन परोपकारों का साक्षात उदाहरण है।
पूजनीय परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने आज के दिन विक्रमी सम्वत 1948 सन् 1891 की कार्तिक पूर्णिमा को गांव कोटड़ा तहसील गंधेय जिला कोलायत, बिलोचिस्तान (पाकिस्तान) में अवतार धारण किया। आप जी के पिता जी का नाम श्री पिल्लामल जी था, जोकि गांव में शाह जी के नाम से जाने जाते थे। आप जी की पूजनीय माता तुलसां बाई जी अति दयालु, जरूरतमंदों के हमदर्द, प्रभु-भक्ति में दृढ़ विश्वास रखने वाले थे।
परोपकारी भावना आप जी के संस्कारों में बचपन से थी। ईश्वर की सच्ची भक्ति की भावना के कारण आप जी का मिलाप डेरा ब्यास (पंजाब) के पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से हुआ। खुद-खुदा के खुदाई नूर से आप जी इतने प्रभावित हुए कि आप जी ने तन-मन-धन से अपने-आपको उनके समर्पित कर दिया।
पूजनीय हजूर बाबा जी ने आप जी के ईश्वरीय प्रेम की मस्ती पर प्रसन्न होकर आप जी को बागड़ का बादशाह बनाकर सरसा में भेजा और हुक्म फरमाया कि सरसा में डेरा बनाओ और नाम जपाकर दुनिया को तारो। आप जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल के हुक्म से सरसा में बेगू रोड पर 29 अप्रैल 1948 में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की। आप जी ने मानवता व जीव सृष्टि के प्रति जो उपकार किए हैं, वो वर्णन से परे हैं।
आप जी ने 1948 से 1960 तक 12 वर्षों तक हजारों रूहों को कालजेल से छुड़ाकर मोक्ष-मुक्ति का अधिकारी बनाया। आप जी का लगाया डेरा सच्चा सौदा रूपी परोपकारी पौधा पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के मार्ग-दर्शन में आज बहुत ही विशाल वट-वृक्ष के समान फल-फूल रहा है। पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई के कार्यों में डेरा सच्चा सौदा पूरे विश्व में जाना जाता है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपने एक भजन में फरमाते हैं, ‘संत हुन्दे ने परोपकारी भला करन सारे जग दा’।
पावन अवतार दिवस की मुबारकां जी।
-सम्पादक