‘चेरापूंजी’जहां हर वक्त होती है बरसात
चाहे समंदर हो, नदी हो या झरना, मानव को पानी अपनी ओर खींचता-सा अनुभव होता है। इसलिए वो घूमने जाने के लिए ऐसे ही जगहों की तलाश में रहता है। कुछ ऐसे ही शहर हैं जहां की वादियां और कलकल बहता पानी हमें अक्सर अपनी ओर खींचता है। फिर चाहे हम कितनी भी बार वहां होकर आ जाएं, वहां का आकर्षण कम नहीं होता। ऐसा ही है बारिश का शहर ‘चेरापूंजी’।
हरियाली से सजी चेरापूंजी की पहाड़ियां बरबस ही मानव-मन को अपनी ओर खींच लेती हैं। जब बारिश होती है, तो बसंत (हरियाली) अपने शबाब पर होता है। ऊंचाई से गिरते पानी के फव्वारे तथा कुहासे के समान मेघों को देखने का अपना अलग ही अनुभव है।
मेघालय में ही मासिनराम में हाल के दिनों में चेरापूंजी से भी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। लेकिन विडंबना ही है कि सबसे ज्यादा बारिश होने की ख्याति पाने वाले चेरापूंजी के लोगों को हर साल कुछ महीनों के लिए पानी की भारी किल्लत का सामना भी करना पड़ता है अर्थात इतना होने के बावजूद भी प्रकृति का आश्चर्य है कि इस स्थान पर सूखा भी पड़ता है। यहां पर सूखा अपना असर नवंबर से दिखाना शुरू कर देता है। ऐसे समय में यहां के लोगों को पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग की वाटर सप्लाई पर निर्भर रहना पड़ता है।
चेरापूंजी भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय का एक शहर है। यह शिलांग से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान दुनिया-भर में मशहूर है। कुछ समय पहले इसका नाम चेरापूंजी से बदलकर ‘सोहरा’ रख दिया गया है। वास्तव में स्थानीय लोग इसे ‘सोहरा’ नाम से ही जानते हैं।
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तो आइये जानते हैं चेरापूंजी के अन्य दर्शनीय स्थलों के बारे में…
जीवित पुल:
आपने अब तक शहरों में ओवरब्रिज देखा है, जो सीमेंट और कंक्रीट से बनाये जाते हैं, लेकिन क्या आपने जीवित पुल के बारे में सुना है? शायद नहीं! दरअसल, किसी पेड़ को काटे बिना उससे पुल बना दिया जाये, तो उस पुल को ही ‘जीवित पुल’ या ‘प्राकृतिक पुल’ कहते हैं।
मेघालय राज्य में कई जीवित पुल हैं। राज्य के चेरापूंजी में, तो जीवित पुलों की भरमार है। इस क्षेत्र में रबर-ट्री पाया जाता है। यह वटवृक्ष जैसा होता है। इसकी शाखाएं जमीन को छू कर नयी जड़ें बना लेती हैं। मेघालय में खासी जनजाति के लोग रहते हैं। ये लोग रबर ट्री की सहायता से कई जीवित पुल बना चुके हैं। यहां पहाड़ों से अनेक छोटी-छोटी नदियां बहती हैं। इन नदियों के एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए जीवित पुल का ही प्रयोग किया जाता है। यहां की भाषा में इन पुलों को ‘जिंग केंग इरो’ कहते हैं।
नोहकलिकाई झरना:
चेरापूंजी के नोहकलिकाई झरने का मनमोहक दृश्य सभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चेरापूंजी अपने सुंदर झरनों, घाटियों और वनस्पतियों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां पर मौजूद पत्थरों ने गुफा के अंदर कई रूप लिए हैं। भारत में बहुत सुंदर-सुंदर झरने या जल प्रपात देखने योग्य है। चेरापूंजी अपने नोहकालिकाई झरने के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर्यटक सिर्फ जल प्रपात के सुंदर दृश्यों को ही देखने आते है।
नोहकालिकाई जल-प्रपात का दृश्य इतना आकर्षक है जिसे देखने हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। चेरापूंजी में वैसे तो बहुत सारे पर्यटन-स्थल मौजूद हैं, पर ज्यादातर पर्यटक यहां इसी झरने की सुंदरता देखने आते हैं। यहां पर कई घाटियां भी हैं, जिनके सुंदर दृश्य पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। नोहकलिकाई झरना सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है। जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस झरने से हजारों फीट ऊंचाई से गिरते हुए पानी का रंग दूध जैसे सफेद होता है। यह भारत का पांचवां सबसे ऊंचा झरना है। यह झरना चेरापूंजी से करीब 7 किमी. दूर स्थित है ।
माउलंग सीम पीक:
यह स्थान यात्रियों के लिए रहस्य रोमांच साहस और सौंदर्य से भरा हुआ है। एक हजार मीटर की ऊंचाई से गिरता झरना, घने वृक्षों से घिरा जंगल, बादलों के पास बसा बांग्लादेश यहां से दिखाई देता है। यहां पर सरकार ने एक सुंदर बाग का निर्माण कर दिया है। यहां पर यात्रियों के बैठने, घूमने और देखने की सुविधा उपलब्ध है। इसी बाग में कई तरह के फूल, फर्न और कीट-पतंगों से हमारी पहचान होती है।
‘नागफन’ और ‘कीड़ा-पकड़ कीट खाऊ फूल’ यहां देखे जा सकते हैं। कई तरह के आकार और रंगों वाली पत्तियों को हम देर तक निहारते रहते हैं। हमारे मन में उतर आता है बालक-सा भोलापन व जिज्ञासा! बाग में पडेÞ झूलों पर बैठ हम मन ही मन गीत गुनगुना उठते हैं और खिलखिलाते हैं। फिर दौड़ पड़ते हैं जैसे बचपन लौट आया है। क्योंकि प्रकृति के ऐसे मन-मोहक दृश्य देखकर हम रोमांच से भर उठते हैं।
मॉस्मई झरना:
मॉस्मई झरना मेघालय के शानदार झरनों में से एक हैं। यह मॉस्मई गांव के बहुत ही पास में स्थित है और चेरापूंजी के रास्ते में पड़ता है। मॉस्मई झरने को स्थानीय रूप से ‘नोहस्न्गिथियांग झरने’ के रूप में जाना जाता है। यहां पर पानी 315 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। इसलिए यह भारत के सबसे ऊंचे झरनों में चौथे स्थान पर है। इस झरने को लोकप्रिय रूप से ‘सात बहनों वाले झरने’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि खतरनाक खड़ी चट्टान से गिरते समय यह झरना सात अलग-अलग झरनों में बंट जाता है। एक तेज धूप वाले चमकीले दिन में यह झरना अत्यन्त सुरम्य होता है क्योंकि यह सूर्य की किरणों को परावर्तित करने के साथ-साथ विभिन्न दिशाओं में चटकीले रंगों को भी बिखेरता है।
मॉस्मई गुफा:
चेरापूंजी की मॉस्मई गुफा यात्रियों के लिये सबसे आसान गुफायें हैं, क्योंकि यात्री इनमें बिना किसी तैयारी या गाइड की सहायता के बहुत ही आसानी से घूम सकते हैं। इस गुफा के अन्दर प्रकाश का समुचित प्रबन्ध होने के कारण यहां आने वाले पर्यटक आसानी से रास्ता खोज सकते हैं।
गुफा का प्रवेशद्वार काफी बड़ा है, किन्तु आश्चर्यजनक रूप से जल्द ही यह अपने-आप ही संकरा हो जाता है। कई मोड़ों और घुमावों के साथ इसमें काफी रोचक अनुभव होता है, लेकिन यदि काफी भीड़ हो तो सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है। गुफा का अंदरूनी हिस्सा कई प्रकार के जीव-जन्तु और पौधों की प्रजातियों का घर है। यह चमगादड़, कीड़े-मकोड़ों आदि जंतुओं के लिये उत्तम पनाहगार है। टपकते पानी से पत्थरों पर बनी विभिन्न प्रकार की सुन्दर बनावटें प्रकृति का एक और चमत्कार हैं।
ईको पार्क:
ईको पार्क उन कई सुन्दर पार्कों में से एक है जहां चेरापूंजी आने पर घूमने जाया जा सकता है। इसका डिजाइन मेघालय सरकार द्वारा एक ऊंचे पठार पर तैयार किया गया है, ताकि पर्यटक सुन्दर हरे पहाड़ों, सोहरा की घाटियों और यहां से निकलने वाले झरने का आनन्द ले सकें। आप इस पार्क में विभिन्न प्रकार के आॅर्किड देख सकते हैं। इसका श्रेय शिलांग के कृषि-बागवानी संघ को जाता है। ईको पार्क के किनारों पर प्राकृतिक सुन्दरता अचम्भित करने वाली है। यहां से बांग्लादेश के सिल्हट मैदानी इलाकों का दृश्य देखा जा सकता है। यदि बादल छाये हों, तो पार्क की भरपूर सुन्दरता का आनन्द लेने के लिये पर्याप्त प्रकाश की कमी खलेगी। शिलांग से ईको पार्क तक पहुंचने के लिये सबसे बेहतर तरीका मेघालय पर्यटन विभाग द्वारा उपलब्ध किराये की टैक्सियां या बसें हैं।
थंगखरंग पार्क:
थंगखरंग पार्क एक और सुन्दर व लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है। इस पार्क में तथा यहां पर स्थित ग्रीनहाउस में विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधों को देखा जा सकता है। इस पार्क को बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है जिन्हें प्रकृति के बारे में कम फिक्र होती है और जो जीवन के अधिकतम समय में झूलों या फिसलने वाले झूलों के बारे में सोचते हैं। पार्क में कई ठूंठ और बेंच हैं जो पर्यटकों को लिये आराम करने के स्थान हैं। पार्क परिसर में ही एक छोटा सा सुन्दर फव्वारा भी बनाया गया है। सुन्दर पिकनिक स्थल होने के अलावा थंगखारंग पार्क को अधिकतम लोकप्रियता यहां से दिखने वाले बंग्लादेश के मैदानी हिस्सों के दृश्यों और पहाड़ों से तीन चरण में गिरने वाले क्यिनरेम झरने के कारण मिलती है। शिलांग से थंगखारंग पार्क तक पहुंचने का सबसे बढ़िया तरीका किराये का पर्यटक-वाहन होता है।
चेरापूंजी कैसे पहुंचें:
चेरापूंजी शिलांग से 55 किमी. की दूरी पर है। इस पर्यटक-स्थल तक पहुंचने में दो घण्टे का समय लगता है। शिलांग तथा चेरापूंजी के बीच सड़क परिवहन बहुत अच्छा है और व्यक्तिगत वाहनों के साथ-साथ सरकारी यातायात के साधन भी हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
-साभार