Children's insistence on wearing favorite clothes -sachi shiksha hindi

बच्चों की मनपसंद कपड़े पहनने की जिद्द

साधना अपनी बेटी प्रकृति को बार-बार समझा रही थी कि वह पिंक फ्रॉक पहन ले, इससे वह बिल्कुल परी जैसी दिखेगी किंतु प्रकृति बिल्कुल भी मानने को तैयार न थी। घर के सभी सदस्य उसे मनाने की कोशिश में लगे हुए थे फिर भी वह कुछ समझने को राजी नहीं थी।

प्रकृति के तीसरे जन्मदिवस के मौके पर घर में पार्टी थी और घर में मेहमानों के आने का समय भी हो गया था लेकिन प्रकृति अपनी पुरानी फ्रॉक पहनने की जिद पर ही अड़ी हुई थी। अपनी जिद पर वह खूब रोई और हाथ-पैर भी मारे। थक-हार कर साधना को उसे वही पुरानी फ्रॉक ही पहनानी पड़ी। अब पुरानी फ्रॉक पहनकर प्रकृति खुश हो गई।

बच्चे जब अपनी जिद्द पर अड़ जाते हैं तो उन्हें मनाना मुश्किल हो जाता है। अक्सर अपने मनपसंद कपड़े पहनने को लेकर वे बेहद जिद्दी होते हैं। बच्चे जब अपने मनपसंद कपड़ों को लेकर अड़ जाते हैं तो मां-बाप उन्हें बहुत जिद्दी मान लेते हैं। यह बच्चों की प्रकृति में स्वाभाविक रूप से होता है। वे अपने कपड़ों, खाने-पीने, नहाने आदि को लेकर खूब हंगामा खड़ा करते हैं। इसके पीछे उनकी भावना अपनी अलग पहचान बनाने की होती है। एक छोटे बच्चे के मन में भी अपनी पहचान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर स्वाभिमान होता है।

बच्चों के मनपसंद कपड़े पहनने को लेकर मां-बाप अक्सर उनसे उलझ पड़ते हैं। बच्चों के न मानने पर उन्हें झुकना ही पड़ता है। बच्चों से बेबस उलझने का कोई फायदा नहीं बल्कि उनकी मनपसंद कपड़े पहनने की जिद का कारण उनसे जानना चाहिए। जो कपड़े वे पहनना चाहते हैं उनसे उनका कारण पूछें कि आखिर वे ही उन्हें क्यों अच्छे लगते हैं।

देखा जाये तो बच्चों की कपड़ों की पसंद उनके विचारों की अभिव्यक्ति और रंगों के साथ प्रयोग को दिखाती है। उसके साथ जबरदस्ती न करें। यह सच है कि बच्चों को उनकी पसंदीदा डेÑस में बाहर अपने साथ ले जाना आपको अजीब लग सकता है। बच्चे से बहस करने से बचें। उसे कुछ समय ऐसा ही करने दें जैसा कि वह चाहता है।

यदि आप अपने बच्चे की पसंद जान लेंगी तो आप अपनी पसंद उसकी पसंद बना सकेंगी और वे कपड़े चुपके से हटा देंगी जिन्हें आप ठीक नहीं समझती। बच्चे को अपने कपड़े स्वयं ही चुनकर पहनने को कहें। कपड़े इस तरीके से रखें कि बच्चे की नजर इधर-उधर न जाये। वह कपड़ों के चुनाव में भटके नहीं।

अपनी पसंद के कपड़ों में बच्चा कार्टून भी लग सकता है। उसके इस प्रयोजन पर हंसें नहीं। उसकी पसंद का आदर करें। बच्चों के इस प्रयोजन पर तनाव न लें बल्कि बच्चे के सामने दो उत्तम विकल्प रखकर चुनाव करने को कहें। इससे आपकी परेशानी भी कम होगी। बच्चा जिन कपड़ों को पहनना नहीं चाहता, उनके विषय में जानने की कोशिश करें कि आखिरकार ये कपड़े बच्चे को कहीं तंग या असुविधाजनक तो नहीं लगते।

कुछ बच्चे अपना सारा काम स्वयं करना चाहते हैं और वे ऐसे ही कपड़े पहनना पसंद करते हैं जो सुविधाजनक हों। बच्चों को कपड़ों की क्वालिटी या बनावट आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब बच्चा स्वयं कपड़े पसंद करके पहनने शुरू करता है तो उसमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। इससे वह धीरे-धीरे यह सीखता है कि कहां क्या पहना जाए।

आजकल बच्चे भी टीवी-फिल्म आदि देखकर फैशन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। वे वही कपड़े पहनना चाहते हैं जो टीवी या परदे पर उनके पसंदीदा पात्र ने पहने हों, इसलिए भी बच्चों के साथ कपड़ों को लेकर बहस न करें बल्कि उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में उनकी मदद करें। हां, उन्हें यह जरूर बतायें कि महंगे कपड़े किसी शादी या समारोह में पहने जाते हैं। घर में महंगे कपड़े नहीं पहने जाते।

बच्चों के लिए ऐसे कपड़े लें जो आसानी से पहनाये जा सकें और बच्चे भी स्वयं पहन सकें। यदि बच्चे को तैयार होने में ज्यादा समय लगता हो तो उसे और भी पहले तैयार होने को कहें क्योंकि बच्चा समय के महत्व को नहीं जानता। बच्चे को तैयार होने में मदद करती रहें।

जल्दी तैयार होने या मनपसंद के कपड़े पहनने आदि को लेकर बच्चे पर झुंझलायें नहीं बल्कि उसे यह समझायें कि फलां कपड़े उस पर बहुत अच्छे लगते हैं।
शिखा चौधरी

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