Chilli Cultivation -sachi shiksha hindi

कैंसर रोधी, हार्ट प्रोब्लम व दर्द निवारक दवाओं के साथ बेहतर उत्पादन का प्रयाय मिर्च की खेती

मिर्च, भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसको सब्जियों के अलावा आचार, चटनी और अन्य पकवानोंं में मुख्य तौर पर प्रयोग किया जाता है। मिर्च में कड़वापन कैपसेसिन नाम के एक तत्व के कारण होता है, जिसे दवाइयों के तौर पर प्रयोग किया जाता है। मिर्च का मूल स्थान मैक्सिको और दूसरे दर्जे पर गुआटेमाला माना जाता है।

भारत में मिर्चें 17वीं सदी में पुर्तगालियों के द्वारा गोवा लाई गई और इसके बाद यह पूरे भारत में बड़ी तेजी से फैल गई। कैपसेसिन में बहुत सारी दवाइयां बनाने वाले तत्व पाए जाते हैं। खासतौर पर जैसे कैंसर रोधी और तुरंत दर्द दूर करने वाले तत्व पाए जाते हैं। यह खून को पतला करने और दिल की बीमारियों को रोकने में भी मदद करता है। इसमें विटामिन ए, सी फॉस्फोरस, कैल्शियम समेत कई लवण पाये जाते हैं।

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मिट्टी: मिर्च की खेती मुख्यत:

Mirch ki kheti kaise karen (4)नगदी फसल के रूप में की जाती है। मिर्च की फसल की विविधता, मौसम और जलवायु, उर्वरता और जल प्रबंधन की समय अवधि लगभग 160-180 दिन है। मिर्च हल्की से भारी हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे विकास के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली जमीन जिस में नमी हो, इसके लिए अनुकूल होती है। मिर्च के अच्छे विकास के लिए जमीन का पी एच मान 6.5 से 7.5 सर्वोतम है, लेकिन इसको 8 पी एच मान (वटीर्सोल्स) वाली मिटटी में भी उगाया जा सकता है।

जलवायु:

मिर्च की खेती के लिए 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। इसकी खेती के लिए गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त है, क्योंकि पाला फसल को नुकसान पहुंचाता है। हरी मिर्च की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त रहती है। इसके पौधे को करीब 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। इसके अलावा हरी मिर्च की फसल पर पाले का प्रकोप अधिक होता है।

नर्सरी तैयार करना:

मिर्च की नर्सरी तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजों की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधशाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी पूर्णतया सड़ी गोबर खाद, 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाएं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बेंडाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियां बनाकर बीज बुवाई करें।

खेत की तैयारी:

Mirch ki kheti kaise karen (3)मिर्च की खेती की तैयारी 4-5 गहरी जुताई और हर बार जुताई के बाद पट्टा देकर खेत को अच्छी तरह समतल कर लें। इसी समय अच्छी तरह सड़े गोबर की खाद 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से डाले। खाद यदि अच्छी तरह सड़ी नहीं होगी तो दीमक लगने का भय रहता है।

पोषक तत्व प्रबंधन:

मिर्च की फसल में उर्वकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करेें। सामन्यत: एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 25 -30 टन गोबर की पूर्णत: सड़ी हुई खाद खेत की तैयारी के समय मिलायेें। नाइट्रोजन 120 से 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम तथा पोटाष 80 किलोग्राम का प्रयोग करेें।

पौध रोपाई:

नर्सरी में बुवाई के 4 से 6 सप्ताह बाद पौध रोपने योग्य हो जाती है। गर्मी की फसल में कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखेें। खरीफ की फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें। रोपाई सायं के समय करें और रोपाई के बाद तुरन्त सिंचाई करें।

सिचाई व निराई-गुड़ाई :

पहली सिंचाई पौध प्रतिरोपण के बाद कर देनी चाहिए. अगर गर्मियों का मौसम है, तो हर 5- 7 और सर्दी का मौसम है, तो करीब 10 से 12 दिनों में फसल को सींचना चाहिए. फसल में फूल व फल बनते समय सिंचाई करना जरुरी है। अगर इस वक्त सिंचाई नहीं की जाए, तो फल व फूल छोटी अवस्था में गिर जाते हैं। ध्यान रहे कि मिर्च की फसल में पानी का जमाव न हो।

रोग:

इसकी खेती मे लगने वाले रोगों में मुख्य रूप से जड़ गलन( आद्रगलन), पती गलन, स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम, प्रण कुंचन (पत्तिया सूखना ) जैसे रोग हैं, जो मिर्ची की खेती को प्रभावित करते हैं।

झुलस रोग :

यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है और ज्यादातर कम निकास वाली जमीनों में और सही ढंग से खेती ना करने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। यह फाइटोफथोरा कैपसीसी नाम की फंगस के कारण होता है।

पत्तों पर सफेद धब्बे :

यह बीमारी पौधे को अपने खाने के तौर पर प्रयोग करती है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है। यह बीमारी विशेष तौर पर फलों के गुच्छे बनने पर या उससे पहले, पुराने पत्तों पर हमला करती है इस बीमारी से पत्तों के नीचे की ओर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह किसी भी समय फसल पर हमला कर सकती है।

पत्ती मरोड़ रोग:

इस रोग को कुकड़ा और चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से भी जाना जाता है। पत्ती मरोड़ रोग थ्रिप्स और माइट जैसे कीटों के कारण होता है। इस रोग के फैलने का मुख्य कारण हैं सफेद मक्खियां, जो इस रोग को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाने का काम करती हैं। इस रोग के बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है।

सफेद मक्खी :

यह पौधों का रस चूसती है और उन्हें कमजोर कर देती है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे पत्तों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है। यह पत्ता मरोड़ रोग को फैलाने में मदद करते हैं।

फल तोड़ाई:

हरी मिर्च के लिए तोड़ाई फल लगने के लगभग 15 से 20 दिनों बाद कर सकते हैं। पहली और दूसरी तोड़ाई में लगभग 12 से 15 दिनों का अंतर रख सकते है। फल की तोड़ाई अच्छी तरह से तैयार होने पर ही करनी चाहिए।

पैदावार:

अगर इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए, तो इसकी पैदावार लगभग 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी लाल मिर्च प्राप्त की जा सकती है। पैकिंग के लिए मिर्च को पक्की और लाल रंग की होने पर तोड़ें। सुखाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिर्चों की पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करें।

उन्नत किस्में मिर्च की कुछ प्रचलित उन्नत और संकर किस्मे इस प्रकार है,

मसाले हेतु किस्में:

पूसा ज्वाला, पन्त सी- 1, एन पी- 46 ए, आर्को लोहित, पंजाब लाल, आंध्र ज्योति और जहवार मिर्च- 283 जहवार मिर्च- 148, कल्याणपुर चमन, भाग्य लक्ष्मी, आदि प्रमुख हैं।

आचार हेतु किस्में:

केलिफोर्निया वंडर, चायनीज जायंट, येलो वंडर, हाइब्रिड भारत, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का मेघना, अर्का बसंत, सिटी, काशी अर्ली, तेजस्विनी, आर्का हरित और पूसा सदाबहार (एल जी- 1) आदि प्रमुख हैं।

अन्य किस्में:

काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-218, अर्का सुफल, एचपीएच-1900-2680, यूएस-611-720, काशी अर्ली, काशी सुर्ख या काशी हरित।

मिर्चें उगाने वाले एशिया के मुख्य देश भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कोरिया, तुरकी, श्रीलंका आदि हैं। अफ्रीका में नाइजीरिया, घाना, टुनीशिया और मिस्र आदि। उत्तरी और केंद्री अमेरिका में मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि। यूरोप में यूगोसलाविया, स्पेन, रोमानिया, बुलगारिया, इटली, हंगरी आदि। दक्षिण अमेरिका में अर्जेनटीना, पेरू, ब्राजील आदि। भारत, संसार में मिर्च पैदा करने वाले देशों में मुख्य देश है। इसके बाद चीन और पाकिस्तान का नाम आता है। भारत में आंध्र प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, तामिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान मिर्च पैदा करने वाले मुख्य राज्य हैं।

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