काले टमाटरकी खेती दिलाएगी मोटा मुनाफा
लाल टमाटर के भावों में आई तेजी से बाजार में अन्य सब्जियों के भी पंख लगते नजर आ रहे हैं। शायद आप नहीं जानते कि भारत में काले टमाटर की खेती भी होती है। देश में पिछले कुछ सालों में काले टमाटर की खेती का चलन बढ़ा है। काले टमाटर को यूरोप के मार्केट में सुपरफूड कहते हैं।
भारत की जलवायु काले टमाटर की खेती के लिए भी उपयुक्त है। काली टमाटर की खेती हुबहू लाल टमाटर की खेती की तरह की जाती है। इसके लिए उच्च तापमान वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं, जबकि ठंडे तापमान वाले क्षेत्रों में इसकी वृद्धि नहीं होती है। यदि आप इसकी खेती करना चाहते हैं, तो आपको जनवरी में इसे बोना होगा। इस टमाटर की प्रदर्शनशीलता से लोग उत्साहित हो रहे हैं और इसे बहुत खरीद रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस टमाटर की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसका उपयोग कैंसर उपचार में किया जाता है। यह अन्य बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी है।
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इन राज्यों में होता है उत्पादन
देश में टमाटर की खेती कई राज्यों में की जाती है जिनमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु राज्य शामिल हैं। ये राज्य देश के कुल टमाटर उत्पादन का लगभग 91 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। वहीं इन राज्यों के ज्यादातर किसान लाल टमाटर की खेती करते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में काले टमाटर की खेती का भी चलन बढ़ा है। अभी तक बहुत कम लोग ही काले टमाटर की खेती के बारे में जानते हैं। हालांकि मार्केट में इसकी एंट्री हो चुकी है। इसे ‘इंडिगो रोज टोमेटो’ के नाम से भी जाना जाता है।
काले टमाटर की खेती कब व कहां शुरु हुई
काले टमाटर की खेती सबसे पहले इंग्लैंड में हुई थी। इसकी खेती का श्रेय रे ब्राउन को जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रे ब्राउन ने जेनेटिक म्यूटेशन के जरिए काले टमाटर को तैयार किया था। वहीं काले टमाटर की खेती में सफलता के बाद अब भारत में भी काले टमाटर की खेती शुरू हो चुकी है, इसे यूरोप के मार्केट में सुपरफूड कहते हैं।
काले टमाटर की खेती कैसे होती है?
लाल टमाटर की तरह ही काले टमाटर की भी खेती की जाती है। भारत की जलवायु काले टमाटर की खेती के लिए भी उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6-7 के बीच होना जरूरी है। वहीं काले टमाटर की बुवाई करने के लिए जनवरी का महीना सबसे सही रहता है। इस समय काले टमाटर की बुआई की जाती है तो मार्च-अप्रैल तक आपको इसकी फसल मिलना शुरू हो जाती है। हालांकि, इसकी पैदावार लाल रंग के टमाटरों के मुकाबले थोड़ी देरी से शुरू होती है। काले टमाटर की उत्पादन क्षमता मिट्टी व बुवाई के समय पर निर्भर करती है। आमतौर पर एक एकड़ भूमि में लगभग 200 क्विंटल काले टमाटर का उत्पादन होता है। बाजार में यह लगभग 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक जाता है।
काले टमाटर में हैं कई औषधीय गुण
लाल टमाटर की तुलना में काले टमाटर को थोड़ा ज्यादा समय तक ताजा रख सकते हैं। वहीं इसमें औषधीय गुण भी लाल टमाटर के मुकाबले ज्यादा पाए जाते हैं। काला टमाटर बाहर से काला और अंदर से लाल होता है। अगर आप कच्चे टमाटर का सेवन करते हैं, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह स्वाद में न ज्यादा खट्टा होता है न ज्यादा मीठा, इसका स्वाद नमकीन जैसा होता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह वजन कम करने से लेकर, शुगर लेवल को कम करने और कोलेस्ट्रॉल को घटाने में भी उपयोगी है।
बागबानी के साथ-साथ करेला, टमाटर एवं लौकी जैसी सब्जियों के लिए भी फायदेमंद – स्टैकिंग तकनीक
सब्जियों की खेती में ‘स्टैकिंग’ ऐसी ही एक विधि का नाम है, जिसे अपनाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। किसान बागवानी में भी ‘स्टैकिंग विधि का प्रयोग कर सकते हैं। हरियाणा सरकार सब्जियों में बांस स्टैकिंग और लोहे की स्टैकिंग का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही है। सामान्य श्रेणी के किसानों को 50 प्रतिशत व एससी श्रेणी के किसान को 85 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
क्या है स्टैकिंग तकनीक
स्टैंकिंग तकनीक से खेती करने के लिए बांस या लोहे के डंडे, रस्सी या तार की जरूरत होती है। इस विधि में बांस के सहारे तार और रस्सी का जाल बनाया जाता है। इस पर पौधों की लताएं फैलाई जाती हैं। किसान बैंगन, टमाटर, मिर्च, करेला, लौकी समेत कई अन्य सब्जियों की खेती स्टैंकिंग तकनीक के जरिए कर सकते हैं। इस विधि में फसल को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर होता है। इस तकनीक से खेती करने पर सब्जियों की फसल में सड़न नहीं होती, क्योंकि वो जमीन पर रहने की बजाय ऊपर हवा में लटकती रहती हैं। इस तरह बाजार में फसलों का दाम भी अच्छा मिलता है। स्टैंकिंग तकनीक से फसलों की पैदावार ज्यादा होती है, जिससे किसानों की आमदनी में इजाफा होता है।
बांस व लौह स्टैकिंग पर दिया जाता है अलग-अलग अनुदान
हरियाणा सरकार द्वारा बांस स्टैकिंग की लागत 62 हजार 500 रुपये प्रति एकड़ पर सामान्य श्रेणी के किसान को 31250 रुपये व एससी श्रेणी के किसान को 53125 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। वहीं लोहा स्टैकिंग लागत एक लाख 41 हजार रुपये प्रति एकड़ पर सामान्य श्रेणी के किसान को 70,500 रुपये व एससी श्रेणी के किसान को एक लाख 19 हजार 850 रुपये का अनुदान प्रदान किया जा रहा है। एससी श्रेणी के किसान के लिए बांस स्टैकिंग व लौह स्टैकिंग पर अधिकतम अनुदान क्षेत्र एक एकड़ है।
आसान है ‘स्टैकिंग’ तकनीक
किसान पहले पुरानी तकनीक से ही सब्जियों और फलों की खेती करते थे। लेकिन अब किसान स्टैकिंग तकनीक का इस्तेमाल कर खेती कर रहे हैं क्योंकि यह तकनीक बहुत ही आसान है। इस तकनीक में बहुत ही कम सामान का प्रयोग होता है। स्टैकिंग बांस व लोहे के सहारे तार और रस्सी का जाल बनाया जाता है।
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स्टैकिंग विधि से खेती करने पर सब्जियों की फसल में सड़न नहीं होती, क्योंकि वो जमीन पर रहने की बजाए ऊपर लटकी रहती है। करेला, टमाटर एवं लौकी जैसी फसलों को सड़ने से बचाने के लिए उनको इस तकनीक से सहारा देना कारगर साबित होता है। पारंपरिक खेती में कई बार टमाटर की फसल जमीन के संपर्क में आने की वजह से गल जाती है।
– डॉ. पुष्पेंद्र सिंह, जिला बागबानी अधिकारी, सरसा।