डिजिटल स्क्रीन Digital Screen का अनुशासन
यह मानने में किसी भी प्रकार से गुरेज नहीं है कि हालात सामान्य होने तक आॅनलाइन शिक्षण पद्धति एक मजबूत विकल्प के तौर पर सामने आई है। परंतु शिक्षण की इस नवीन पद्धति में सबसे बड़ा खतरा बच्चों के स्क्रीन टाइम का बढ़ना है।
कोरोना के चुनौतीपूर्ण वक्त में शैक्षिक गतिविधियां रूक जाने से बच्चों की हर रोज की जीवन शैली प्रभावित हो रही थी। देर से सोना, देर तक सोना, कुछ भी समय से नहीं करना आदि जैसी प्रवृतियां बढ़ती जा रही थी। ये बात भी सत्य है कि बच्चों के इन व्यवहारों से उस समय उनके अभिभावक भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे। कोरोना के डर के साथ-साथ बच्चे की बदलती प्रवृति भी उन्हें चिंतित कर रही थी। विद्यालयों ने जब घर में बैठे बच्चों को आॅनलाइन शिक्षा के माध्यम से जोड़ा तब सबसे ज्यादा संतोष घर के इन्हीं अभिभावकों को हुआ।
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एक रूटीन के तहत स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को घर में ही पढ़ाने की शुरुआत की। स्कूल की ही यूनिफार्म में बच्चे लगभग 6 घंटे स्मार्ट फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप के सामने बैठ पढ़ाई करने लगे। अलग-अलग विषयों के अलग-अलग सत्र भी होने लगे। शुरूआत में यह एक नये प्रयोग के तौर पर किया जा रहा था, परंतु बच्चों व उनके परिवार के साथ-साथ स्कूल के द्वारा भी इसे हाथों-हाथ लिया गया और इसे सफल प्रयोग माना गया। अध्यापक पाठ्यक्रम के अनुसार कभी वीडियो बनाकर तो कभी गूगल मीट या जूम एप पर विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने लगे। हमें यह मानने में किसी भी प्रकार से गुरेज नहीं है कि हालात सामान्य होने तक आॅनलाइन शिक्षण पद्धति एक मजबूत विकल्प के तौर पर सामने आई है। परंतु शिक्षण की इस नवीन पद्धति में सबसे बड़ा खतरा बच्चों के स्क्रीन टाइम का बढ़ना है।
अमेरिकन अकादमी आॅफ पीडियोट्रिक्स ने बच्चों के स्क्रीन Digital Screen टाइम पर एक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसके अनुसार 2 से 5 साल के बच्चे एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का उपयोग न करें। छ: साल या उससे ज्यादा बड़े बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखें तथा बच्चों को खेलने या अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दें। स्मार्ट फोन के साथ बच्चों का लगाव तो सर्वविदित है। दिन का एक बड़ा समय वे स्मार्ट फोन पर खर्च करते हैं। फोन के साथ-साथ टी.वी. पर भी उनकी नजरें होती ही हंै। कुल मिलाकर यह देखा जा सकता है कि कोरोना संकट में आॅनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के पूर्व भी बच्चों का स्क्रीन टाइम कुछ कम नहीं था।
अत: यह देखा जा सकता है कि शिक्षण की इस नई पद्धति से बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव तो अवश्य ही पड़ेगा। इससे बच्चों को कुछ शारीरिक व मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। सर दर्द, आंखों में दर्द, नींद का ठीक से नहीं आना, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियां बच्चों में हो सकती हैं। इसलिए फिलहाल यह आवश्यक है कि बच्चों के स्क्रीन टाइम को संतुलित रखने के लिए उन्हें गैर-जरुरी स्क्रीन संबंधी कार्यों से अलग रखा जाना चाहिए। उन्हें कुछ रचनात्मक कार्यों में संलग्न कराने पर विचार करना चाहिए या परिवार के सदस्यों को बच्चों के साथ समय व्यतीत करना चाहिए।
अभिभावकों को चाहिए कि अगर संभव हो तो बच्चों को बड़े स्क्रीन वाले गैजेट उपलब्ध कराएं। बच्चों को मोबाइल की जगह टैबलेट या लैपटॉप उपयोग करने को कहें। मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप को इस तरह रखें कि बच्चे को ज्यादा झुकना ना पड़े, वो सीधे बैठ कर पढ़ाई कर सके, क्योंकि गलत स्थिति में 5-6 घंटे की पढ़ाई काफी नुकसानदायक हो सकती है। डॉक्टरों के अनुसार, अगर आॅनलाइन शिक्षा में सावधानी का ख्याल नहीं रखा गया तो बच्चों को सर्वाइकल जैसी अप्रत्याशित बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। अत: बच्चों के स्क्रीन टाइम बढ़ने से उत्पन्न खतरे को गंभीरता से लेते हुए थोड़ी समझदारी से कम किया जा सकता है।
डिजिटल डिटॉक्स Digital Screen शब्द आजकल बहुत चलन में है। हम में से बहुत से लोग होंगे, जिन्होंने यह शब्द तो सुना होगा। लेकिन कई लोगों को इसका मतलब नहीं पता होगा। डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है किसी भी अन्य बुरी आदत की तरह डिजिटल डिवाइसेज से भी दूरी बनाना। डिजिटल डिटॉक्स उस समय को कहते हैं, जब एक व्यक्ति कुछ वक्त के लिए टेक डिवाईसेज का इस्तेमाल न करे। डिजिटल डिटॉक्स का एक ही नियम है कि इस दौरान स्मार्टफोन, टीवी, कंप्यूटर, टैबलेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करना होता। डिजिटल डिवाइस से डिटॉक्सिंग का मतलब है जब आप टेक्नोलॉजी से दूरी बनाते हैं तो रियल लाइफ की परेशानियों और बातों पर ध्यान दे पाते हैं। डिजिटल डिवाइस से दूर होने पर वर्चुअल वर्ल्ड से बाहर निकलते हैं और अपने बारे में ज्यादा सोच पाते हैं।
अध्ययन कहते हैं कि एक बच्चा औसतन हर रोज सात घंटे इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल करते हैं। अगर आपका बच्चा घंटों तक वीडियो गेम खेलना चाहता है या वह हर दिन घंटों टीवी देखता है तो एक डिजिटल डिटॉक्स उसे मनोरंजन के लिए दूसरे आॅप्शन दे सकता है। डिजिटल डिटॉक्स बच्चों को अपने मनोरंजन के लिए बहुत से आसान आॅप्शन देगा जिससे वह स्वस्थ और खुश रह सकता है। अगर बच्चे इलेक्ट्रॉनिक्स की वजह से आपस में लड़ रहे हैं तो यह आपके लिए वॉर्निंग साइन है। अगर आपके टीवी या फोन आॅफ करने की बात पर आपका बच्चा आपसे बहस करता है तो उसे डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक्स से एक ब्रेक उसे ज्यादा आज्ञाकारी बनाने में मदद कर सकता है। डिजिटल डिटॉक्स बच्चों को अनुशासित बनाता है और परिवार को करीब लाने में मदद करता है।
डिजिटल डिटॉक्स शब्द आजकल बहुत चलन में है। हम में से बहुत से लोग होंगे, जिन्होंने यह शब्द तो सुना होगा। लेकिन कई लोगों को इसका मतलब नहीं पता होगा। डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है किसी भी अन्य बुरी आदत की तरह डिजिटल डिवाइसेज से भी दूरी बनाना। डिजिटल डिटॉक्स उस समय को कहते हैं, जब एक व्यक्ति कुछ वक्त के लिए टेक डिवाईसेज का इस्तेमाल न करे। डिजिटल डिटॉक्स का एक ही नियम है कि इस दौरान स्मार्टफोन, टीवी, कंप्यूटर, टैबलेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करना होता।