‘भाग जाओ! यह हमारी चिताई हुई रूह है…’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार कृपा
प्रेमी राजेन्द्र कुमार इन्सां पुत्र श्री मोहन लाल लाजपत नगर फतेहाबाद, जिला फतेहाबाद से अपने पर हुए पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के रहमो-करम का वर्णन करता है:
मैं शुरु से ही धार्मिक ख्यालों का था। मैंने सन् 1975 में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए व सत्संग सुना। सत्संग सुनकर मुझे समझ आई कि रूहानियत को समझने के लिए गुरु धारण करना जरूरी है। मैंने 23 जून 1975 के दिन गांव धांगड़ में पूजनीय परमपिता जी से नाम-शब्द, गुरुमंत्र ग्रहण करके उन्हें अपना गुरु-सतगुरु धारण कर लिया।
मैं जी इस्पात कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत था। 18 फरवरी 2012 को सोनीपत से अपने घर फतेहाबाद आ रहा था। दुर्भाग्यवश मैं बस की पिछली खिड़की से गिर गया, जिससे मेरा सिर फट गया। उस समय मुझे पीजीआई रोहतक मेडिकल अस्पताल में ले जाया गया। वहां पर मुझे फर्स्ट एड देकर कहा गया कि यहां पर वेन्टीलेटर का इंतजाम नहीं है। इस लिए इसे दिल्ली ले जाया जाए। फिर मुझे मैक्स शालीमार बाग अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया।
वहां पर मेरे सिर का आॅप्रेशन किया गया। आॅप्रेशन के बाद मैं कौमा में चला गया। मैं चौबीस दिन तक कौमा में रहा। इस दौरान बेहोशी की हालत में एक रात मेरे पास तीन यमदूत आए। उनमें एक यमदूत भैंसे की शक्ल का भी था। वो बहुत ही डरावनी शक्ल के थे। वह कहने लगे कि हमें धर्मराज ने तेरे को ले जाने के लिए भेजा है। तेरा समय पूरा हो चुका है। उसी समय बहुत सुंदर प्रकाश हुआ, जिसमें मेरे सतगुरु पूजनीय परमपिता जी प्रकट हो गए।
उनके हाथ में एक लम्बी लाठी थी। वह मेरे सामने आकर खड़े हो गए। परमपिता जी ने उन यमदूतों को डांटते हुए कड़कती आवाज में कहा कि ‘भाग जाओ। यह हमारी चिताई हुई रूह है।’ जब वह अपनी जगह से नहीं हिले तो परमपिता जी ने उनके जोर से लाठी मारी। तीनों यमदूत चिल्लाते व रोते हुए भाग गए। इस प्रकार परमपिता जी ने मुझे यमदूतों से बचाकर मुझ पर रहमो-करम किया।
उक्त रहमो-करम से मुझे होश आ गया। मुझे नई जिंदगी मिली। उसके बाद मैं धीरे-धीरे बिल्कुल स्वस्थ हो गया। जब मुझे मेरे सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने दर्शन दिए तो मुझे इतनी खुशी हुई, जितनी कभी भी नहीं हुई थी। मैं अपने सतगुरु के अपने पर हुए उपकारों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकता। सतगुरु अपने शिष्य की ऐसे मदद करता है जैसा कि लिखा है:
तेरा सतगुरु सच्चा मित्र,
इत्थे उत्थे नाले है।
दु:ख मुसीबत जित्थे पैंदी,
सतगुरु आप संभाले है।
अब मेरी पूजनीय परमपिता जी के स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में यही विनती है कि सेवा-सुमिरन का बल बख्शना जी और मेरी ओड़ निभा देना जी।