अच्छी बुरी संगति
चौराहे पर खड़ा बहेलिया, हाथ में दो पिंजरे उठाये आवाज लगाकर कह रहा था- ले लो दो सुंदर सयाने तोते। मीठा बोलने वाले तोते। उसी ओर से सेठ धनपतराय अपनी कार में बैठकर कहीं जा रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि पिंजरों में कैद तोतों पर पड़ी जो उछल कूद कर रहे थे। सेठ जी को पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उन्होंने तोते वाले के पास आकर पूछा- कितने में दोगे दोनों तोते? तोते वालें ने दायें हाथ में पकड़ा पिंजरा ऊपर उठाते हुए कहा- हुजूर यह तोता केवल पचास रुपए का है। फिर बायें हाथ वाले पिंजड़े की ओर इशारा करते हुए कहा- यह तोता पांच सौ रू. का है।
दोनों तोतों के बीच जमीन-आसमान का अंतर सुनकर सेठ जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने तोते वाले से कहा – भाई ये दोनों तोते देखने में तो एक से हैं, फिर इनके मूल्य में इतना बड़ा अंतर क्यों है? कहां पचास रुपए और कहां पांच सौ रूपये? तोते वाले ने उत्तर दिया- मालिक! आप दोनों तोतों को घर ले जाइये। आपको दोनों के मूल्य में अंतर होने का पता स्वयं ही लग जायेगा। मैं तो यहां रोज ही आकर तोते, मैना और दूसरे पक्षी बेचता हूं।
सेठ ने दोनों तोते मुंह मांगे दामों पर खरीद लिये।
सेठ के मन में दोनों तोतों के विषय में जानने की उत्सुकता थी।
सेठ जी रात को सोने के लिए अपने शयन कक्ष में गये तो उन्होंने अपने नौकर से पांच सौ रुपए वाले तोते का पिंजरा अपने कमरे में मंगवा कर रख लिया। ब्रह्ममुहुर्त में तोता जाग गया और बोलने लगा- ऊं नम: शिवाय:। हे परम परमेश्वर, हे दीनानाथ, हे करूणा सागर, हे जग के पालनहार, हे विश्वनाथ आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम। तोता बोलता रहा – भोर हो गई जागो। किसी को पीड़ा मत पहुंचाओ। किसी का बुरा मत सोचो। दीन दुखियों पर दया करो। झूठ बोलना पाप है। किसी के साथ विश्वासघात न करो।
सफलता प्राप्ति के लिए कठिन परिश्रम करो……।
तोता अपनी बातों को बार-बार दोहराता रहा।
सेठ जी तोते की मधुर वाणी में सवेरे ऐसे प्रवचन सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मन ही मन सोचा कि तोते वाले ने उसका उचित मूल्य ही मांगा था। दूसरी रात्रि को सेठ जी ने पचास रुपए वाले तोते का पिंजरा अपने शयन कक्ष में रखवाया।
जैसे ही भोर की किरणें फूटी, तोता चिल्लाने लगा- इसे लूट लो। इसके पास बहुत सा धन है।
इसे जिंदा मत छोड़ना। थोड़ी शराब और दो…..
गाओ चंदा बाई गाओ……
क्या खूब गाती हो, अरे दुष्टो उठ जाओ…..।
सवेरे-सवेरे तोते के मुख से मन को दूषित करने वाले वचन सुनकर सेठ को क्र ोध आया। उन्होंने नौकर को बुला कर कहा- इस दुष्ट तोते को उठाकर बाहर रखो। इसे आज ही तोते वाले को वापस देंगे।
तोते वाला आज भी उसी स्थान पर तोते लिये हुए खड़ा था।
सेठ जी पचास रुपए वाले तोते को लेकर उसके पास आये और कहने लगे- यह तोता तो बड़ा बदतमीज और दुष्ट है। सवेरे-सवेरे बात-बात पर गाली बकता है। आतंक और जान से मारने की बातें करता है।
तोते वाले ने कहा -मालिक ! यह तोते का दोष नहीं है। आपने जो दो तोते खरीदे हैं। इन दोनों में फर्क का कारण है इनका पालन पोषण और शिक्षा अलग-अलग स्थानों पर हुई है। एक तोता संत के आश्रम में पला है और दूसरा एक डाकू के यहां। डाकू के यहां इसने शराब,शवाब और लूटपाट की बुरी बातें सुनी और सीखी हैं। दूसरे तोते ने संत के प्रवचनों से अच्छी शिक्षा प्राप्त की है। यह तो अच्छी बुरी संगति का प्रभाव है। जैसा संग वैसा रंग। ठीक कहते हो तुम। कहकर सेठ ने तोते को पिजड़े से मुक्त कर दिया। वह आकाश में उड़ गया।
यह सच है कि अच्छी बुरी संगति का प्रभाव तो पड़ता ही है।
परशुराम संबल