बहुत महत्व है गुरुमुख्ता का रूहानियत में -सम्पादकीय
मनमुखता मन की देन है, मनमुख व्यक्ति अपने मन के मते चलता है। मनमुख व्यक्ति हमेशा खुदी, अहंकार में रहता है। मनमुख व्यक्ति भगवान की भक्ति में कभी सफल नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपनी खुदी, हउमै, अहंकार को नहीं छोड़ देता।
भगवान की भक्ति के साथ-साथ समाज में भी सफल होने के लिए उसे अपने अहंकार और मनमुखता को छोड़ना जरूरी है। गुरुमुख इन्सान हमेशा अपने गुरु, मुर्शिद के मते, उनके हुक्म में चलता है। गुरुमुखता का रूहानियत, मालिक की भक्ति में बहुत ज्यादा महत्व है। वह इन्सान परमात्मा, भगवान की दरगाह में और समाज में भी मान हासिल करता है और उनके घर-परिवार में भी खुशियोंं, बरकतों के अंबार लगे रहते हैं। वह इन्सान दूसरों का भी सम्मान करता है। पूजनीय परमपिता जी के समय की बात है।
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि एक दिन एक सज्जन पूजनीय परमपिता जी के दर्शन करने आया। सच्चे मुर्शिदे-कामिल से बात की कि पिता जी, मैं अपना मकान बना रहा हूं, यह जंगला (विंडो-खिड़की) यहां रख दूूं जी। उसके पास मकान का नक्शा भी था। वह नक्शा उसने पूजनीय परमपिता जी को दिखाया। पास खड़े कुछ सेवादारों ने उस भाई की इस बात पर कुछ किंतु-परंतु किया, कि बता यह भी कोई पूछने वाली बात है, जहां दिल करता है जंगला रख ले।
पूजनीय परमपिता जी ने नक्शे में उस जंगले वाली जगह का संशोधन करते हुए फरमाया- बेटा, यह थोड़ा इधर कर ले। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जो लोग जंगला भी अपने गुरु से पूछकर रखते हैं, वो गुरुमुख जीव बेशुमार खुशियों के हकदार होते हैं और उनके लिए घर भी खुशियों से महकता रहता है। ये है गुरुमुख इन्सान की पहचान। गुरुमुख जीव में खुदी, अहंकार नाम की कोई चीज नहीं होती।
वो हमेशा मालिक, अपने सतगुरु की रजा में रहता है। वह घर-समाज में भी और मालिक की दरगाह में भी मान हासिल करता है। मालिक की ढेरों नियामतें उस जीव के आगे-पीछे घूमती हैं। उसे अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास रहता है। इसलिए गुरुमुखता का संग कभी नहीं छोड़ना चाहिए।