Guru gives Guru Mantra to remove evils from the society Revered Guru Ji

रिकॉर्डिड वचन: गुरु समाज से बुराइयां हटाने लिए गुरुमंत्र देता है: पूज्य गुरु जी

नामचर्चा के दौरान पूज्य गुरु जी ने गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए फरमाया कि गुरु समाज से विकार हटाने के लिए यानि नशा, वेश्यावृत्ति, माँसाहार, जैसी जितनी भी बुराइयां हैं सबको हटाने के लिए वो गुरुमन्त्र देता है और बदले में किसी से कुछ ना ले, वही सच्चा गुरु होता है। आप जी ने फरमाया कि ‘गु’ का मतलब अंधकार होता है और ‘रू’ का मतलब प्रकाश, जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे, वही सच्चा गुरु होता है।

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गुरु की जरूरत हमेशा से थी, है और हमेशा रहेगी। खास करके रूहानियत, सूफियत, आत्मा-परमात्मा की जहां चर्चा होती है, उसके लिए गुरु तो अति जरूरी है। अगर वैसे देखा जाए, समाज में हमेशा से गुरु, उस्ताद की जरूरत पड़ती आई है। जब बच्चे का जन्म होता है तो उसका पहला गुरु उसकी माँ होती है। खिलाना, पिलाना, नहलाना, पहनाना, यहां तक कि मलमूत्र भी साफ करना। माँ जैसा गुरु दुनियावी तौर पर दूसरा नहीं होता। फिर बारी आती है बच्चा चलना सीखता है। बहन-भाई, बाप गुरु का रूप धारण करना शुरु कर देते हैं।

बाप अपने बच्चे को दुनियावी शिक्षा देता है। दुनिया में कैसे रहना है? क्या करना है, क्या नहीं करना चाहिए? अपना अनुभव उसकी झोली में डालते हैं, अगर कोई लेना चाहे तो। क्योंकि ये कलियुग का दौर है, यहां बच्चे की अपनी गृहस्थी हुई नहीं कि माँ-बाप के अनुभव को ठोकर मार देता है, इसलिए अनाथ आश्रम बनते जा रहे हैं और भरते जा रहे हैं। लेकिन बात गुरु की, तो वो गुुरु बाप भी होता है जो शिक्षा देता है, आगे बढ़ाता है। फिर कॉलेज, यूनिवर्सिटी और आगे से आगे गुरु बदलते जाते हैं और इन्सान दुनियावी शिक्षा में ट्रेंड होता जाता है।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जब दुनियावी शिक्षा के लिए भी टीचर, मास्टर, लेक्चरार अति जरूरी है। दुनियावी शिक्षा, जो कि सामने है, डॉक्टर हैं, दुकानदार हैं, व्यापारी हैं, नौकरी पेशा हैं, तो सामने की शिक्षा है। लेकिन एक ऐसी शिक्षा, जो रूहानी है, आत्मिक ज्ञान, आत्मा का परमात्मा से मिलन कैसे हो? वो तो बाहर दिखता नहीं। तो आप ये कैसे कह सकते हैं कि उसके लिए गुरु की जरूरत नहीं।

जब दुनियावी ज्ञान के लिए जरूरत है तो उसके लिए (भगवान को पाने के लिए) भी गुरु की जरूरत बहुत ज्यादा है। आप यार, दोस्त, मित्र भी कहीं-न-कहीं छोटे-मोटे ज्ञान के लिए एक-दूसरे के गुरु का काम कर जाते हैं। आपको नॉलेज है दोस्तों को देते हैं, दोस्त अपनी नॉलेज आपको देता है, तो कहने का मतलब जो ज्ञान दे दे वो गुरु दुनिया में माना जाता है। लेकिन सर्वोत्तम स्थान रूहानी, सूफी गुरु का होता है।

इतिहास में जितने संत, पीर-पैगम्बर उनकी पाक पवित्र वाणी हुई, पवित्र ग्रन्थ हुए, उन सबको पढ़ता है, सुनता है, उनसे ज्ञान हासिल करता है, लेकिन यहीं बस नहीं करता, फिर वो खुद प्रैक्टिकल मैथड आॅफ मेडिटेशन यानि खुद अनुभव करता है। फिर वह गुरु समाज में से विकार हटाने के लिए यानि नशा, वेश्यावृत्ति, माँसाहार, बुराइयां, जितनी भी बुराइयां समाज में हैं सबको हटाने के लिए गुरुमन्त्र देता है, जो उसने खुद अभ्यास किया होता है। वो गुरुमंत्र लेकर इन्सान जब उसका जाप करता है, तो उसे अपने अंदर से आत्मबल मिलता है, जिसके सहारे इन्सान हर अच्छे-नेक कार्य में सफलता हासिल कर सकता है और लगातार गुरुमंत्र का जाप करे, तो अंदर-बाहर से खुशियों से मालामाल हो जाता है।

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