Here the zealous power is it is the highest - Experiences of satsangis

इत्थे जेहड़ी ताकत है, वो सबसे ऊंची है -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत

प्रेमी छोटा सिंह इन्सां पुत्र सचखण्डवासी बंत सिंह गांव घुम्मण कलां जिल बठिंडा से अपने सतगुरु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने बेटे पर हुई रहमत का वर्णन करता है:-

सन 1971 की बात है। मेरा बेटा पांच साल का था। एक दिन जब वह बच्चों से खेलता-खेलता घर आया तो कहने लगा कि मेरी टांगें दुखती हैं। जब उसकी टांगें दर्द करने से न हटी तो हमने उसे डाक्टर को दिखाया। डॉक्टर की दवाई से भी उसकी टांगों का दर्द न रुका। फिर हमने कभी डाक्टर, कभी वैद कई स्थानों से दवाई ली, परन्तु उसकी टांगों को कहीं से भी आराम न आया। उसकी टांगें सूखनी शुरू हो गई। वह बैठा ही रहता था। हम उसे उठा कर लैटरीन करवाते, उठा कर ही इधर-उधर करते। वह सात सालों का हो गया था, उसकी टांगें सूख चुकी थी। हमें इस तरह लगता था कि यह तो उम्र भर चारपाई पर ही रहेगा तथा हमसे सेवा ही करवाएगा।

सतगुरु की रहमत हुई। मुझे मालिक सतगुरु परम पिता जी ने ख्याल दिया कि बच्चे को डेरा सच्चा सौदा सरसा लेकर चलें। मैं अपनी पत्नी तथा बच्चे को साथ लेकर डेरा सच्चा सौदा सरसा गया। हमने परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए तथा सत्संग सुना। मेरी पत्नी को किसी सत्संगी माता ने बताया कि डेरे में जो डिग्गी बनी हुई है, इस डिग्गी को बनाने में सेवा करने तथा बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की दया दृष्टि से एक प्रेमी सेवादार राम का नाक का कोढ़ हट गया था। मेरी पत्नी मुझे कहने लगी कि अपने इस डिग्गी में से पानी लेकर इस बच्चे की टांगे धो दें, हो सकता है कि यह ठीक हो जाए। उस समय यह डिग्गी कच्ची, बहुत बड़ी तथा गहराई में थी। हम पति-पत्नी अपने बच्चे को लेकर कच्ची सीढ़ियों द्वारा नीचे डिग्गी में उत्तर गए। एक गड़वे में पानी भर लिया।

वहां डिग्गी में छोटे-छोटे वृक्ष थे, जिनकी ओट में हम बच्चे की टांगें धोने ही लगे थे कि किसी अजनबी बंदे ने मुझे जफ्फे में ले लिया और कहा, ‘क्या करता है भाई! पता नहीं कितने स्थानों पर गया होगा, कितने स्थानों पर जाएगा। ’ मैंने उसे कहा कि मैं इस सच्चे सौदे के दर के बिना कहीं और नहीं गया तथा न ही जाऊंगा। मेरे मां-बाप इस बच्चे को लेकर कई स्थानों पर गए हैं, उनके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। उस अजनबी पुरुष ने कहा, ‘तेरा ख्याल है कि कई धार्मिक स्थानों पर पिंगले ठीक हो जाते हैं।

इत्थे जेहड़ी ताकत है, वह सबसे ऊंची है।’ मैंने कहा कि मैं इस बच्चे को लेकर किसी और दर पर नहीं जाऊंगा, अगर मरता है तो मर जाए, चाहे अभी मर जाए। उस अजनबी ने कहा, ‘अगर तुझे इतना विश्वास है तो टांगों को धोने की जरूरत नहीं।’ मैंने उस अजनबी को कहा कि मैं नहीं पानी डालता। फिर उस अजनबी ने कहा, ‘अब डाल ले।’ मैंने वह पानी बच्चे की टांगों पर डाल दिया। मेरी पत्नी ने बच्चे की गीली टांगों पर हाथ फेरा तथा वही गीला हाथ अपने फेफड़े पर लगा लिया जो कि किसी कारण जाम हुआ पड़ा था। सांस लेने में तकलीफ थी। हमारे देखते ही देखते वो अजनबी अदृष्य हो गया। हमने उस अजनबी को मिलने के लिए ढृूंढने की कोशिश की, परन्तु वह नहीं मिला।

अगले दिन हम घर वापिस आने के लिए सरसा से बस पर चढ़े। बस 32 किलोमीटर जाकर सरदूलगढ़ के बस स्टैण्ड पर रुक गई। वहां बच्चे ने शोर मचा दिया कि मेरी टांगों पर कीड़ियां चढ़ती हैं। वहीं पर बच्चे की टांगों में खून चल पड़ा तथा बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो गया। उस दिन के बाद बच्चे को कभी कोई तकलीफ नहीं हुई। अब वह बच्चा बाल-बच्चेदार है तथा बिल्कुल स्वस्थ है। मेरी पत्नी का फेफड़ा जो कि रुका हुआ था, उसी दिन चल पड़ा था।

मुझे बाद में समझ आई कि वह अजनबी कोई बंदा नहीं था बल्कि खुद कुलमालिक परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज थे। मेरे पास इतनी ताकत नहीं कि मैं अपने सतगुरु के परोपकारों का वर्णन कर सकूं। हमारी सारे परिवार की परम पिता जी के स्वरूप संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में यही विनती है कि सेवा सुमिरन का बल बख्शो जी तथा इसी तरह रहमत बनाए रखना जी।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!