इन्सान की ताकत है संवेदनशीलता
बातों को लंबे समय तक याद रखना, पहचानने और चतुर फैसले लेने में ज्यादा सक्षम होते हैं ऐसे व्यक्ति
संवेदनशीलता एक ऐसा गुण है जिसे सामान्यतया कमजोरी के रूप में लिया जाता है। मनोवैज्ञानिक मानते है कि व्यक्तितत्व की खूबी के तौर पर संवेदनशील होने का मतलब है कि आप आस-पास से ज्यादा सूचनाएं लेते हैं और उसका उपयोग करते हैं।
मस्तिष्क के स्तर पर वे सूचनाओं को ज्यादा गहराई से प्रोसेस करते हैं। यह दुनिया को देखने का आपका नजरिया बदल देता है। आप वह देख पाते है जो और लोग नहीं देख, सोच और महसूस कर पाते हैं। अध्ययन में पाया गया है कि याद रखने या पहचानने के कार्य में संवेदनशील लोगों ने कहीं बेहतर नतीजे दिए। खासकर कुछ नोटिस करने, नतीजे का अनुमान लगाने और चतुर फैसले करने में संवेदनशील इन्सान काफी हद तक सफल रहते हैं। संवेदनशीलता का सबसे बड़ा लाभ बूस्ट इफेक्ट है। किसी की मदद करने वाली चीजों से उनको बहुत प्रोत्साहित करती हैं।
वे अपने आसपास मददगार माहौल निर्मित कर लेते है। रिसर्च में पाया गया है कि संवेदनशील लोग हर तरह के प्रशिक्षण में ज्यादा ग्रहण करते हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि वर्ष 2022 में तलाक लेने की स्थिति में भी संवेदनशील व्यक्तियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। कई दंपतियों ने रिलेशनशिप सुधारने की ट्रेनिंग के बाद तलाक की सोच बदली, जिसमें एक संवेदनशील साथी था। नेतृत्व और प्रबंधन क्षेत्रों में भी यह फार्मूला होता है।
संवेदनशीलता के कई रूप हैं
संवेदनशीलता शब्द संवेदना से उत्पन्न हुआ है। मन में होने वाले बोध या अनुभति को संवेदना कहते हैं। किसी को दु:ख या कष्ट को देखकर मन में होने वाला दु:ख सहानुभूति है। उर्दू में हमदर्दी शब्द का आशय भी दूसरों के दर्द या दु:ख से अपनापन रखना है। इस प्रकार संवेदनशीलता के दो रूप हैं द्रवित होना या स्वयं में दया, अहिंसा, शुचिता, मानवता, न्याय, शिष्टाचार, सदाचार की भावना तथा दूसरा रूप है परानुभूति यानि दूसरों के दु:ख से दु:खी होना। परानुभूति में परोपकार, दान, सहायता, सहयोग, दूसरों के विचारों का आदर करना भी शामिल है।
बताते हैं कि गौतम बुद्ध (बालक सिद्धार्थ) के मन में संसार के दु:ख को देखकर पीड़ा उत्पन्न होने लगी। जरा रोग, बुढ़ापे तथा मृत्यु के दृश्यों ने बालक सिद्धार्थ के अंत:करण को झकझोर दिया। यह पर-दुखकातरता संवेदनशील मन की प्रतिक्रिया थी। सम्राट अशोक का मन कलिंग विजय में मार-काट से संवेदित हो उठा और उसने बौद्ध धर्म अपनाया। जैन धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त ने भगवान महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर पशुबलि प्रथा रोकी। जैन धर्म के अनुसार मन, वचन, कर्म से किसी को त्रास देना, दु:ख पहुँचाना हिंसा है और इसका निषेधात्मक रूप अहिंसा है। हिन्दू धर्म में परोपकार व दान, इस्लाम में जकात (दोनों को दान), ईसाई धर्म में दयालुता, क्षमाशीलता, पुण्य, सिक्ख धर्म की कारसेवा (अपने हाथों से सेवा कार्य करना) संवेदनशीलता के ही धार्मिक रूप हैं।
दूसरों की मदद करना और सेवा की तत्परता भी संवेदनशीलता ही है
सामाजिक संबंधों की संवेदनशीलता में परानुभूति के साथ दूसरों की सहायता, अपाहिज व विकलांगों की सहायता, बीमार व्यक्तियों की तीमारदारी, भिखारी या निर्धनों की आर्थिक सहायता, निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति, समाज सुधार के कार्य, वंचित वर्ग की सहायता, सामाजिक आर्थिक शोषण का विरोध, मानवतावादी कार्य, सांप्रदायिक सद्भावना यहाँ तक कि पशुओं पर अत्याचार का विरोध, वैमनस्य या शत्रुता का विरोध, मानवाधिकारों की रक्षा इत्यादि सामाजिक कार्य आते हैं। केवल संवेदनशील होना ही अपर्याप्त है सामाजिक संबंधों की संवेदनशीलता में वास्तविक सहायता के कार्य, मानव समुदाय की सेवा जैसे कार्य भी आते हैं।
पुरुषों को कहा जाता है कि उन्हें बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं होना चाहिए वहीं महिलाओं को सलाह दी जाती है कि उनको इतना संवेदनशील नहीं होना चाहिए। आप पर संवेदनशीलता के गुण को छुपाने का दबाव हो सकता है, आप ऐसा नहीं कर सकते, इसकी कोशिश करना आपको जीवन के तोहफे से वंचित कर देगा।
-आंद्रे सोलो और जेन ग्रेनमेन, संस्थापक सेंसिटिव रेफ्यूज वेबसाइट।