Jaam-e-Insan Guru Ka -sachi shiksha hindi

इन्सानियत को मिला नया बल ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ दिवस (29 अप्रैल) पर विशेष
इन्सानियत की रक्षा में हर कदम बढ़ाना है। इसकी साख को गिरने नहीं देना। किसी भी आपदा में इन्सानियत तड़प रही है तो उसको बचाना है। उसके लिए डट जाना है। उसे किसी भी हालत में कमजोर नहीं होने देना। इन्सानियत के लिए जीना है और इन्सानियत के लिए मरना है। इसलिए उसने रूहानी जाम, ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ का पान किया है, इन्सानियत और अपने जमीर को बुलंद करने की कसम खाई है, वायदा किया है, संकल्प लिया है और अपने सतगुरु-मुर्शिद के पावन सानिध्य में इन्सानियत का यह प्रण लिया है।

पांच तत्व का पुतला, जिसमें कि पांचों तत्व मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश पूर्ण रूप में है, वह इन्सान है, हालांकि यह सृष्टि पांच तत्वों से बनी है और प्राणी में ये पांचों तत्व मौजूद है, कोई तत्व ज्यादा व कोई कम है। इन्सान के नीचे की अन्य सब जुनियां चाहे वो बनस्पति है या कीड़े-मकौड़े, पक्षी हैं या पशु-जानवर हैं, किसी में एक, किसी में दो, किसी में तीन और किसी में (पशुओं/ जानवरों में) चार तत्व मुख्य हैं। पांचवां आकाश तत्व मनुष्य के बिना अन्य सभी जीव-जूनियों में नाम-मात्र होता है। यानि केवल इन्सान ही है जिसमें सभी पांचों तत्व पूर्ण हैं। आकाश तत्व इन्सान के अंदर ही सबसे ज्यादा है। बेशक पांच तत्व पूर्ण इन्सान सभी इन्सान ही हैं, लेकिन ‘इन्सां’ आदमी का इन्सान बनना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। अर्थात, इन्सानियत के गुणों से भरपूर व्यक्ति ही ‘इन्सां’ कहलाने का मान हासिल कर सकता है।

धर्माें में आदमी (इन्सान) का रुतबा बहुत ऊंचा बताया गया है। इन्सानियत किसे कहते हैं, इसकी सही परिभाषा पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने दुनिया को बताई है:- अर्थात् किसी को दु:ख-दर्द में तड़पता देखकर उसकी सहायता करना, उसके दु:ख-दर्द को दूर करने की कोशिश करना ही सच्ची इन्सानियत है। इसके विपरीत किसी को दु:ख-दर्द में तड़पता देखकर उस पर ठहाके लगाना, उसे सताना, उसकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठाना यह राक्षसीपन है, शैतानियत है। मानव की ऐसी राक्षसी प्रवृतियों के कारण मानवीय-समाज को बहुत भारी आघात पहुंचता है।

आदमियों की इन्सानियत दिन-ब-दिन रसातल में बही जा रही है। भ्रष्टाचार आदि बुराइयों का समाज में बोल बाला है। लोग अपनी जमीर को दबाए हुए हैं। इस वजह से ही समाज में भय का वातावरण बना हुआ है, कोई भी अपने-आप को सुरक्षित नहीं समझता। चाहे कोई स्त्री है या पुरुष, बहू, बेटी, बेटा आदि सभी लोग असुरक्षित महसूस करते हैं। क्योंकि स्वार्थी इन्सान इन्सानियत की भावना से हीण हो चुका है, माता-पिता, बेटा-बेटी अािद किसी का कोई लिहाज नहीं, किसी की कोई परवाह नहीं। स्त्री और पुरुष का रिश्ता ही मात्र रह गया। पूज्य गुरु जी ने अपने भजन में भी लिखा है।

पाप छुपा के पुण्य दिखाके
करे बंदा तेरा शैतान
देख भगवान तेरा इन्सान,
तुझको समझे है नादान।
काम-वासना का पुतला बनके
बिखेरे रिश्ते-नातों के ये मणके।
मर्द-औरत का रिश्ता ही बच रहा
रिश्ते जल रहे बिन शमशान।
देख भगवान…।

इन्सानों में इन्सानियत आदमियत की भावना खत्म हो चुकी है, दब चुकी, भर चुकी है और शैतानियत, अमानवता सिर चढ़कर बोल रही है। इसलिए समाज को बुराइयों से निकालने और इन्सानों के मन में इन्सानियत के गुण, इन्सानी चेतना को भरने, इन्सान की जमीर को जगाने, उसमें आत्म-विश्वास भरने, उनकी खुदी को बुलंद करने के लिए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’, रूहानी जाम के नाम से एक बहुत साहसिक और काबिले-तारिफ कदम उठाया है।

मर रही इन्सानियत को पुनर्जीवित करने के लिए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रूहानी जाम ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ का शुभारम्भ 29 अप्रैल 2007 को अपने पवित्र कर कमलों द्वारा किया। रूहानी जाम पीने से पहले डेरा श्रद्धालु डेरा सच्चा सौदा के मानवता भलाई के लिए निर्धारित किए गए 47 नियमों की पालना करने का संकल्प लेते हैं। ये नियम मनुष्य को नैतिक तौर पर पाक-पवित्र जीवन-यापन करने व मानवता की भलाई के कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

अब तक करोड़ों डेरा श्रद्धालु, रूहानी जाम पीकर अपने जीवन में खुशियां भर चुके हैं, करोड़ों इन्सान अडिगता व स्थिरता से कदम-ताल करते हुए इन्सानियत की डगर पर एक-साथ आगे बढ़ रहे हैं। पूज्य गुरु जी का हर इन्सां आज इस नई रीत-ओ-रस्म के साथ (इन्सानियत के गुण धारण कर) पूरी शिद्धत व तन-देही से समाज में नेकी-भलाई की लहर चलाकर समाज को नई दिशा देने, समाज को बदलने, अपने शुभ गुणों से समाज को सुधारने, समाज में फैली सभी बुराइयों को खत्म करने के दृढ संकल्प के साथ निरंतर आगे रहा है।

रूहानी जाम की महत्ता:-

आदमियों में, समाज में मृतप्राय: इन्सानियत को पुन:, जिन्दा रखने के लिए पूज्य गुरु जी ने ऐसा पराक्रम कर दिखाया है जो इतिहास की एक दुर्लभ घटना साबित हुई है। 29 अप्रैल का यह दिन सदा अमिट रहेगा। आज के ही दिन इस महत्वपूर्ण परिवर्तनशील घटना क्रम का आविर्भाव हुआ जिसने मानवीय समाज को एक स्वस्थ नई राह दिखाई है। पूज्य गुरु जी के इस नायाब तोहफे को पान करने के लिए लाखों नहीं, करोड़ों लोग आगे आए जिन्होंने इन्सां बनने का संकल्प लिया है। करोड़ों की संख्या में आज इन्सां अपने प्यारे मुर्शिद के द्वारा दिखाए इन्सानियत के इस सच्चे राह पर चलते हुए मानवता व समाज भलाई के कार्याें में तन-मन-धन से लगे हुए हैं।

‘इन्सां’ आज के युग में एक नई विचार धारा है जो कि इन्सानियत के प्रहरी के रूप में सृजित की गई है। स्वयं पूज्य गुरु जी ने अपने नाम के साथ ‘इन्सां’ (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को सुशोभित कर इस पवित्र धारा का उद्गन जिस संगम से हुआ उसे ही ‘रूहानी जाम-जाम-ए-इन्सां गुरु का’ कहा गया है। दुनिया को इन्सानियत की यह सच्ची राह दिखाने वाला और इस डगर पर अडोल चलाने वाला 29 अप्रैल का यह पवित्र दिन एक साथ दो-दो महत्वपूर्ण नजरों का दृष्टाव है। इस दिन यानि 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा की नींव रखी, सर्व-धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की। इस प्रकार जहां 29 अप्रैल 1948 का दिन डेरा सच्चा सौदा के पवित्र अस्तित्व का पहला दिन है वहीं 29 अप्रैल 2007 को पूज्य गुरु संत डॉ. एमएसजी ने रूहानी जाम की शुरूआत करके इन्सानियत की मशाल को जलाया और इस मशाल की रोशनी से संसार भर जगमगाया।

29 अप्रैल 2007 का वो दिन ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ के नाम से पहला दिन था। इस प्रकार जाम-ए-इन्सां के 47 नियमों को फॉलो करने, इस पर दृढ़ता से चलने वालों का काफिल बढ़ता गया, बढ़ता चला गया और करवां बन गया। पूरे देश (भारत) में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इन्सां मानवता भलाई के 156 कार्यों के अंतर्गत समाज भलाई को जो गति दे रहे हैं, यह मुर्शिद प्यारे संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पाक-पवित्र शिक्षाओं का ही परिणाम है। इस प्रकार 29 अप्रैल का यह दिन डेरा सच्चा सौदा की स्थापना एवं जाम-ए-इन्सां गुरु का दिवस की स्थापना को ‘रूहानी स्थापना दिवस’ के नाम से हर साल डेरा सच्चा सौदा में साध-संगत द्वारा, पवित्र भंडारे के रूप में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। इस सर्व-धर्म संगम पाक पवित्र भंडारे का जिसमें देश व विदेश से भी भारी संख्या में डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु (पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के नाम लेवा और पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के नाम लेवा प्रेमी जन भी) भारी संख्या में शिरकत करते हैं और सभी प्रेमी जन मिलजुल कर धुमधाम से यह पाक-पवित्र दिन मनाते हैं।

भलाई कार्य ही हो:-

बगैर किसी शंवत-भ्रम और हर तरह के कूड प्रचार को अनसुना व अनदेशा करते हुए डेरा श्रद्धालु (शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार बहन-भाई और साध-संगत) अपने प्यारे सतगुरु पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन दिशा-निर्देशन में तन-मन-धन से मानवता व समाज भलाई के कार्याें में लगे हुए हैं और अपने मुर्शिद प्यारे का वचन ही उनका ईष्ट है। पूज्य सतगुरु जी ने साध-संगत को भलाई करने का ही पाठ पढ़ाया है।

इन्सान है या कोईभी जीव-प्राणी पशु-पक्षी जानवर हर जरूरतमंद की यथा संभव सहायता करना, जैसे साध-संगत, सेवादारों ने पहले से ही विश्व स्तर पर अपनी भलाई की मिसालें पेश की हैं, आज भी उसी गति से सेवा-सुमिरन व भलाई कार्याें में लगे रहना ही सेवादार अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। और हर इन्सान इसे अपना धर्म मानते हुए चलता चले, चलते रहें आगे बढ़ते रहें, बढ़ते चलें। भले लोग जुड़ते जाएं और नेकी-भलाई का, भले लोगों का यह कारवां बढ़ता ही चला जाए और बिना रुके बढ़ता ही चला जाए, यह दुआ है सतगुरु-मौला से।
इस पवित्र दिन की बहुत-बहुत
बधाई हो जी।

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