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अगर चाहिए पीने योग्य पानी तो प्रदूषण से बचाएं नदियां | विश्व नदी दिवस 24 सितम्बर

देश की सभी मुख्य नदियां भारत में रहने वाले तमाम लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पूरे देश में नदी प्रणाली सिंचाई, पीने योग्य पानी, सस्ते परिवहन, बिजली के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोगों के लिए आजीविका प्रदान करती है। आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु (सिन्धु) घाटी सभ्यता का उदय भी सिंधु (सिन्धु) तथा गंगा (गङ्गा) नदी की घाटियों में ही हुआ था। नदी किनारे व्यापारिक एवं यातायात की सुविधाओं के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे। इसलिए आज भी देश के सभी धार्मिक शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं। इसी के साथ नदियां आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या को कृषि एवं पीने के लिए जल उपलब्ध कराती हैं।

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पृथ्वी के 71 प्रतिशत हिस्से में पानी है, जिसमें से 97.3 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं होकर खारा पानी है। शेष 2.7 प्रतिशत मीठा जल हमें नदियों, झीलों, तालाबों जैसे संसाधनों से प्राप्त होता है। परंतु बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से नदियों का जल दूषित होता जा रहा है। प्रदूषण की वजह से जलवायु में भी परिवर्तन हुआ है, जिसके कारण कई नदियां सिकुड़ती जा रही हैं। नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में इसे मनाने की शुरूआत की गई थी। हर साल सितंबर महीने के चौथे रविवार को मनाया जाता है। इस वर्ष 24 सितम्बर को नदी दिवस मनाया जा रहा है। भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में विश्व नदी दिवस मनाया जाता है। हमारे देश सहित अमेरिका, पोलैंड, दक्षिण अफ्रिका, आॅस्ट्रेलिया, मलेशिया, बांग्लादेश, कनाडा और ब्रिटेन आदि देशों में विश्व नदी दिवस नदियों की रक्षा के लिए मनाया जाता है।

भारत की अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में गिराती हैं। कुछ नदियां देश के पश्चिमी भाग से होकर बहती हैं और अरब सागर में मिल जाती हैं। अरावली पर्वतमाला के उत्तरी भाग, लद्दाख के कुछ भाग और थार मरुस्थल के शुष्क क्षेत्रों में अंतर्देशीय जल निकासी है। भारत की सभी प्रमुख नदियां तीन मुख्य जलसंभरों में से एक से निकलती हैं।

भारत की नदियां चार समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं-

(1), हिमालय की नदियां,

(2) प्रायद्वीपीय नदियां,

(3) तटवर्ती नदियां और

(4) अंत:स्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियां।

हिमालय की नदियां बारहमासी है, जिन्हें पानी आमतौर पर बर्फ पिघलने से मिलता है। इनमें वर्षभर निर्बाध प्रवाह बना रहता है। मानसून के महीने में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती है। दूसरी तरफ प्रायद्वीप की नदियों में सामान्यत: वर्षा का पानी रहता है, इसलिए पानी की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। अधिकांश नदियां बारहमासी नहीं हैं। तटीय नदियां, विशेषकर पश्चिमी तट की, कम लंबी हैं और इनका जलग्रहण क्षेत्र सीमित है। इनमें से अधिकतर में एकाएक पानी भर जाता है। पश्चिमी राजस्थान में नदियां बहुत कम हैं। इनमें से अधिकतर थोड़े दिन ही बहती हैं।

सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं। सिंधु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है। तिब्बत में मानसरोवर के निकट इसका उद्गम स्थल है। यह भारत से होती हुई पाकिस्तान जाती है और अंत में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सतलुज (जिसका उद्गगम तिब्बत में होता है), व्यास, रावी, चेनाब और झेलम हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना अन्य महत्वपूर्ण नदी प्रणाली है और भागीरथी और अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं, इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है। यह उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों से होती हुई बहती है।

राजमहल पहाड़ियों के नीचे भागीरथी बहती है, जो कि पहले कभी मुख्यधारा में थी, जबकि पद्मा पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और सोन नदियां गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उपसहायक नदियां हैं जो गंगा से पहले यमुना में मिलती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती रहती हैं। ब्रह्मपुत्र का उद्भव तिब्बत में होता है जहां इसे ‘सांगपो’ के नाम से जाना जाता है और यह लंबी दूरी तय करके भारत में अरुणाचलप्रदेश में प्रवेश करती है जहां इसे दिहांग नाम मिल जाता है। पासीघाट के निकट, दिबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं, फिर यह नदी असम से होती हुई धुबरी के बाद बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है।

भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादीया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में गंगा में मिल जाती हैं। मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्भव मणिपुर की पहाड़ियों में होता है। इसकी मुख्य सहायक नदियां मक्कू, त्रांग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काटाखल, धनेश्वरी, लंगाचीनी, मदुवा और जटिंगा हैं। बराक बांग्लादेश में तब तक बहती रहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता।

दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती हैं। बहने वाली प्रमुख अंतिम नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि हैं। नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां हैं। सबसे बड़ा थाला दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का है। इसमें भारत के कुल क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत भाग शामिल है। प्रायद्वीपीय भारत में दूसरा सबसे बड़ा थाला कृष्णा नदी का है और तीसरा बड़ा थाला महानदी का है। दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर है और दक्षिण में कावेरी बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इनके थाले बराबर विस्तार के हैं, यद्यपि उनकी विशेषताएं और आकार भिन्न-भिन्न हैं।

कई तटीय नदियां हैं जो तुलनात्मक रूप से छोटी हैं। ऐसी गिनी-चुनी नदियां पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिल जाती हैं जबकि पश्चिमी तट पर ऐसी करीब 600 नदियां हैं। राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलती। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती हैं, क्योंकि इनका समुद्र की ओर कोई निकास नहीं है। इनके अलावा रेगिस्तानी नदियां लूनी तथा अन्य, माछू रूपेन, सरस्वती, बनांस तथा घग्घर हैं जो कुछ दूरी तक बहकर मरुस्थल में खो जाती हैं।

पुराणों में उल्लेख है कि विश्व की प्राचीन सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित हुई है। नदियां स्वच्छ जल का संवाहक होती हैं। एशिया महाद्वीप का हिमालय पर्वत पुरातन समय से नदियों का उद्गम स्रोत रहा है। गंगा, यमुना, सिंधु, झेलम, चिनाव, रावी, सतलुज, गोमती, घाघरा, ताप्ती, कोसी, हुबली तथा ब्रहमपुत्र आदि सभी नदियों का उद्गम हिमालय से शुरू होकर हिन्द महासागर में जाकर गिरती हैं।

विश्व नदी दिवस भारत का कोई अलग से कार्यक्रम नहीं है। पुराने लोगों द्वारा कहा जाता है कि सालों पहले भारत की नदियां बारह मासी यानी 12 माह बहने वाली होती थी, लेकिन अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के कारण नदियों ने अपना अस्तिव खो दिया। वर्तमान में हालात यह है कि ग्रीष्म ऋतु में भारत की सभी नदियों का जल सूख जाता है। इसलिए आज समय की आवश्यकता है इन नदियों को साफ-स्वच्छ रखने की।

नदियों को संरक्षित करने के उपाय:

  • नदियों के किनारों पर सघन वृक्षारोपण किया जाये, जिससे किनारों पर कटाव ना हो।
  • नदियों का पानी गन्दा होने से बचायें, मसलन पशुओं को नदी के पानी में जाने से रोकें। गांव व शहरों का घरेलू अनुपचारित पानी नदी में नहीं मिलने दें।
  • पानी को यह सोचकर साफ रखने का प्रयास करें कि आगे जो भी गांव या शहर वाले इस पानी को उपयोग में लाने वाले हैं, वो आपके ही भाई-बहन या परिवार के लोग हैं।
  • नगरपालिका और ग्राम पंचायत अपने स्तर पर घरेलू पानी (दूषित) को साफ करने वाला संयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • उद्योगों का अनुपचारित पानी नदी के पानी मे नही मिलने दे।
  • हो सके तो समय समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच करवाते रहे।
  • जलकुम्भी की सफाई समय-समय पर करवाने का प्रयत्न करें।

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