Lie Caught झूठ पकड़ा गया एक दिन बालू बंदर स्कूल से घर आ रहा था। तभी रास्ते में एक पेड़ के नीचे उसे एक खरगोश खर्राटे लेता दिखाई दिया। पास ही खरगोश की नई चमचमाती साइकिल खड़ी थी।
साइकिल देखकर बालू के मन में लालच आ गया, ‘अगर यह साइकिल मुझे मिल जाए तो मजा आ जाएगा,’ उसने सोचा, ‘रोज स्कूल पैदल आने जाने से मुझे बड़ी तकलीफ होती है। साइकिल होगी तो मैं रोज साइकिल से ही आया जाया करूंगा लेकिन यह साइकिल मुझे मिलेगी कैसे?’ वह खड़ा-खड़ा सोचने लगा।
एकाएक उसकी नजर साइकिल के ताले पर पड़ी। साइकिल का ताला खुला हुआ था।
‘लगता है खरगोश साइकिल का ताला लगाना भूल गया’, बालू ने सोचा और खुश हुआ, -चलो, अच्छा हुआ मैं चुपके से इसकी साइकिल पर बैठकर फरार हो जाता हूं। इसे पता भी नहीं चलेगा कि साइकिल कौन ले गया।
यह सोचकर वह साइकिल पर बैठकर वहां से फरार हो गया।
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कुछ देर बाद खरगोश की नींद खुली तो अपनी साइकिल वहां न देख कर वह चौंक गया।
‘अरे, मेरी साइकिल कौन ले गया,’, वह बेचैनी से साइकिल खोजने लगा लेकिन साइकिल उसे नहीं मिली। बेचारा बहुत दुखी हुआ। जरा सी लापरवाही के कारण उसकी नई साइकिल चोरी हो गई थी मगर वह साइकिल में ताला लगा देता तो साइकिल चोरी नहीं होती।
खरगोश आंसू बहाता हुआ अपने रास्ते चल दिया। उधर खरगोश की नई साइकिल ले कर बालू सीधा अपने घर गया। बालू को नई साइकिल पर देखकर उसके पिता ने पूछा, ‘अरे बेटा, यह साइकिल किसकी है?’
लालू जानता था कि उसके पिताजी साइकिल के बारे में उससे जरूर पूछेंगे, इसलिए उसने पहले ही सोच लिया था कि उन्हें क्या जवाब देना है।
उसने खुशी से चहकते हुए बताया, ‘मुझे आज स्कूल में एक प्रतियोगिता जीतने पर यह साइकिल इनाम में मिली है’।
‘शाबास’, पिताजी उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले, ‘तुम स्कूल की प्रतियोगिताओं में भाग लेते हो, यह बड़ी अच्छी बात है। आज हर बच्चे को हर प्रकार की छोटी बड़ी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहना चाहिए। इससे जहां उन में आत्मविश्वास आ जाता है, वहीं इनाम मिलने पर उनका हौसला भी बढ़ता है।’
बालू ने साइकिल बरामदे में खड़ी कर दी और अंदर चला गया।
तभी वहां वही खरगोश पहुंच गया। बालूू के पिताजी से उसकी जानपहचान थी।
उसे देखते ही बालू के पिताजी ने स्वागत करते हुए कहा, ‘अरे, आओ आओ, खरगोश भाई, आज कैसे रास्ता भूल गए?’
‘बंदर भाई मैं तुमसे ही मिलने आ रहा था कि रास्ते में मेरे साथ एक घटना हो गई,’ खरगोश ने उसे उदासी भरे स्वर में साइकिल चोरी होने की बात बता दी।
उसकी बात सुनकर बंदर उससे सहानुभूति जताता हुआ बोला, ‘यह तो बहुत बुरा हुआ खरगोश भाई लेकिन तुमने थाने में रिपोर्ट तो लिखा दी है न?’ ‘नहीं, अभी तक तो नहीं लिखाई है।’ ‘तुम्हें तुरंत रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए, ताकि पुलिस अपनी कार्रवाई शुरू कर दे’ उसने सलाह दी।
‘तुम ठीक कहते हो। मैं अभी जाता हूं,’ खरगोश ने कहा। अचानक उसकी नजर बरामदे में खड़ी अपनी साइकिल पर पड़ी, ‘अरे, यही तो है मेरी साइकिल’ वह साइकिल को नजदीक से देखकर मुआयना करता हुआ बोला।
‘लगता है तुम्हें भ्रम हो गया है,’ बंदर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘यह साइकिल मेरे बेटे बालू को स्कूल में इनाम में मिली है।’
‘नहीं बंदर भाई, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यही मेरी साइकिल है।’
‘अच्छा रूको, मैं अपने बेटे को बुलाता हूं, तुम उसी से पूछ लो’ इतना कहकर उसने बालूू को आवाज दी।
‘क्या बात है पिताजी?’ बालू ने बाहर आकर पूछा।
‘बेटा, इनसे मिलो, ये मेरे मित्र हैं,’ पिताजी ने खरगोश की तरफ इशारा करके कहा, ‘इनका कहना है कि यह साइकिल, जो तुम्हें इनाम में मिली है, इनकी है। जब ये रास्ते में एक पेड़ के नीचे सो रहे थे तभी कोई चुरा कर भाग गया।’
खरगोश को देखकर बालू सकपका गया। उसने सोचा, ‘झूठ बोलने से अब कोई फायदा नहीं है क्योंकि मेरी चोरी पकड़ी जा चुकी है।’
‘प….पिताजी यह सच कहते हैं,’ बालू गरदन नीची किए धीरे से बोला, ‘यह साइकिल इन्हीं की है। मैंने आपसे झूठ बोला था कि साइकिल मुझे इनाम में मिली है। मुझे माफ कर दीजिए। ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं होगी।’
‘तुम्हें माफी नहीं मिलेगी,’ पिताजी गुस्से से बोले, ‘साइकिल चोरी करने के अपराध में मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा।’
बालू डर के मारे जोर जोर से रोने लगा। उसका रोना देखकर खरगोश का दिल पिघल गया। उसने कहा, ‘जाने दो बंदर भाई, इसे माफ कर दो। बच्चा है, आखिर इसने अपनी चोरी तो कबूल कर ली।’
‘बालू, यह तुम्हारी पहली गलती थी इसलिए माफ कर देता हूं,’ पिताजी उसे चेतावनी देते हुए बोले, ‘अब कभी ऐसी गलती की तो माफ नहीं करूंगा।’
-हेमंत कुमार यादव