प्रेमियों की सुनी पुकार -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी सिरीराम इन्सां उर्फ सूबेदार पुत्र स. कृपाल सिंह गांव घूक्कांवाली जिला सरसा से अपने पर हुई शहनशाह मस्ताना जी महाराज की रहमतों का वर्णन इस तरह करता है:-
जब डेरा सच्चा सौदा घूक्कांवाली का निर्माण हुआ तो पूजनीय शहनशाह जी ने वहां पर सत्संग फरमाया। अनेक जीवों को नाम शब्द, गुरुमंत्र देकर उनकी जन्म-मरण की फाही मुकाई। शहनशाह जी के वचनानुसार गांव के कई प्रेमी हर रोज रात को डेरे में सुमिरन करने के लिए जाते। एक दिन रात के समय करीब 20-25 प्रेमी डेरे में सुमिरन कर रहे थे। मैंने वैसे ही सभी प्रेमियों को कह दिया कि अगर तुम सभी भजन करोगे तो सार्इं जी (पूज्य मस्ताना जी) की जीप आएगी। हम सभी उनके दर्शन करेंगे, वो हमें खुशियां बख्शेंगे।
उस रात वहां उपस्थित सभी प्रेमी भजन-सुमिरन करने लगे और सुबह पांच बजे तक निरंतर सुमिरन करते रहे। अभी भी सभी बैठे भजन-सुमिरन कर रहे थे कि अचानक जीप का खड़ाक सुनाई दिया। मैंने उठकर देखा तो सचमुच पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज की जीप दरबार में आ गई। सभी प्रेमियों ने उठकर शहनशाह जी को नमन करते हुए ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। सभी प्रेमी बहुत खुश हुए कि उनकी मनोकामना पूरी हो गई। शहनशाह जी ने सभी को आशीर्वाद दिया और प्रेम बख्शा। कुछ प्रेमी मेरे से लड़ने लगे कि तू ऐसे वचन न किया कर, सार्इं जी को रातों-रात आना पड़ा। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘भई! तुम्हारा भजन पूरा है, हमें खिच पड़ी तो हम आए।’ शहनशाह जी ने मुझे मुखातिब करके फरमाया, ‘भई ! ऐसी अरदास न किया कर। हमें आना नहीं था, फिर भी आना पड़ा।’
एक बार शहनशाह जी डेरा सच्चा सौदा नुहियांवाली दरबार में पधारे हुए थे। मैं भी अपने गांव की संगत के साथ नुहियांवाली दरबार में गया हुआ था। उस दिन शाम के समय शहनशाह जी गुफा से बाहर नहीं आए। मेरे गांव की सारी संगत वापिस लौट आई। मेरे गांव से मैं अकेला वहां सेवा करता रहा। शहनशाह जी रात आठ बजे बाहर आए। शहनशाह जी ने मुझ पर रहमतभरी दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘तू अकेला रह गया। तेरे को कोक (बड़ा रोट जो उपलों की आग पर पकाया जाता था) खिला कर भेजेंगे।’ रात को कोक बनाया गया।
शहनशाह जी ने मुझे अपने पास बिठाकर कोक का प्रसाद खिलाया और रात के एक बजे वचन फरमाए, ‘पुट्टर! भजन करते जाना।’ मैं शहनशाह जी के वचनानुसार भजन करता-करता अपने घर पहुंचा। शहनशाह जी ने अपनी दया-दृष्टि, वचनों व कोक प्रसाद के जरिये मुझे इतनी खुशी बख्शी कि मेरे पांव जमीन पर नहीं लग रहे थे। मुझे महसूस हुआ कि उस दिन जिंदगी में इतनी बड़ी खुशी मिली जिसकी मिसाल देने के लिए मेरे पास लफ्ज नहीं हैं और वो पल मुझे आज भी याद हैं। सतगुरु के अहसानों का बदला चुकाया ही नहीं जा सकता। जैसे एक भजन में आता है:-
इक जे अहसान होवे, हो सकदा मैं भुल वी जावां।
लक्खां ने अहसान कीते, दाता दस खां किवें मैं भुलावां।
मेहर करीं ऐसी दातेआ, तेरे बचनां ते अमल कमावां।