प्रेमी को बख्शी नई जिंदगी -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
जग परवेश उर्फ जग प्रकाश पुत्र दया राम गांव बृजपुर जिला मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) हाल आबाद वार्ड न. 2 नजदीक गुरुद्वारा साहिब, गुरु रामदास नगर मोगा (पंजाब) से अपने सतगुरु की अपने पर हुई रहमत का वर्णन करता है:-
अगस्त 2018 में मैं मोगा से अपने गांव बृजपुर गया हुआ था। मेरे गांव में एक प्रेमी सेवादार जो मेरे परिवार का चाचा लगता था, उसे अधरंग हो गया था। मैं अपने गांव बृजपुर से मोटर साईकिल पर गांव हुब्बापुर जिला फरूखाबाद से अपने चाचा के लिए दवाई लेकर अपने गांव बृजपुर की तरफ लौट रहा था। वह सिंगल रोड़ थी, मुझे एक आवाज सुनाई दी, मोटर साइकिल वापिस ले जाओ, आगे पागल भैंसों का झुंड आ रहा है। मैंने आवाज की तरफ ध्यान नहीं दिया। अपनी ही धुन में मोटरसाइकिल दौड़ाए जा रहा था।
वो ही मीठी प्यारी आवाज फिर से सुनाई दी। मैंने आवाज को फिर अनसुना कर दिया। इतने में मुझे भैंसों का झुंड दिखाई दिया, जिनकी ऊंचाई काफी थी, उनका सिर सफेद दिखा। मैंने सोचा कि बाइक साइड से निकल जाएगी। परंतु उन्होंने पूरा रास्ता रोक लिया था। मोटरसाइकिल की रफ्तार तेज थी। वह भैंसों के साथ जा टकराया। मेरे सिर में जोर का झटका लगा और मैं बाइक समेत गिर गया, बेहोश हो गया। बेहोशी में मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं सोने की चमक वाले डबल बैड पर लेटा हुआ हूं। मेरे सामने एक काले रंग का हट्टा-कट्टा छोटे वस्त्र पहने भयानक डरावनी शक्ल वाला यमदूत खड़ा था। जैसे ही मेरी नजर सिरहाने की तरफ गई तो मुझे पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के दर्शन हुए, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया। फिर मुझे सतगुरु के तीनों स्वरूपों (बेपरवाह मस्ताना जी महाराज, परम पिता शाह सतनाम जी महाराज व पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) के दर्शन हुए।
तीनों स्वरूपों के नूरी चेहरों पर मुस्कान थी और मुझे आशीर्वाद दे रहे थे। इससे मुझमें अथाह शक्ति व साहस का संचार हुआ। पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे ताकत बख्श कर डबलबैड पर खड़ा कर दिया। फिर मैंने यमदूत से काफी देर तक तकरार की। मैंने उसे कहा कि मैं पूर्ण गुरु का शिष्य हूं, तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। परंतु मेरी बातों का उस पर कोई असर न हुआ। फिर पूज्य हजूर पिता जी ने अपने पवित्र शरीर के कपड़ों में से चौदह फुट के करीब लंबा भाला निकाला, जिसकी आभा चांदी जैसी थी। उसका अगला हिस्सा दो फुट के करीब था जो नुकीला था। पूज्य हजूर पिता जी ने भाले का सिरा यमदूत की नाभि में गाड़ दिया जो उसके आर-पार हो गया। फिर भाले समेत उसे उठा कर पटक दिया। वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था।
सतगुरु जी ने मुझे अपनी गोद में ले लिया, जैसे एक ममतामयी माँ अपने घबराए बच्चे को उठा लेती है। पूज्य हजूर पिता जी ने बहुत ही चमकदार वस्त्र धारण किए हुए थे। उन्होंने एक सोने की आभा वाले गिलास से पानी जैसा कोई पदार्थ एक कटोरे में डाला और दो पीले रंग की गोलियां उसमें डालकर चमच से घोलकर मुझे पिला दी और मुझे सुनहरे डबल बैड पर बिठा दिया। पूज्य हजूर पिता जी मेरे सिरहाने बैठे मुझे आशीर्वाद देते रहे।
मैं पांच दिन बेहोश रहा। इसी समय के दौरान किसी ने मुझे फरूखाबाद के हस्पताल में दाखिल करवा दिया। बेहोशी के समय में ही मेरे परिवारजन वहां पहुंच गए थे। परिजनों ने देखा कि मुझे हस्पताल में लावारिसों की तरह रखा हुआ था और मेरे हाथ-पांव बांधे हुए थे। होश आने तक मुझे तीनों पातशाहियों के दर्शन होते रहे। मुझे कोई दर्द भी महसूस नहीं हुआ। जब मुझे होश आई तो मैंने अपने भाई से पूछा कि मेरा बैड डबलबैड है या सिंगल है। भाई ने कहा कि सिंगल बैड है तो मैंने कहा कि मैं तो डबल बैड पर था। उस हस्पताल में चार-पांच दिन तक मेरा इलाज चला। फिर डाक्टरों ने जवाब दे दिया और मुझे आगरा के लिए रैफर कर दिया। वहां पर 25-26 दिन तक मेरा इलाज चला।
सतगुरु जी की कृपा से ही मुझे एक नया जीवन मिला, क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि ये किसी भी कीमत पर बच नहीं सकता। यहां पर वह लोकोक्ति सच होती प्रतीत होती है कि जाको राखे साइयां, मार सके ना कोए। एक महीने में जब तक मेरा इलाज चला, सतगुरु हमेशा मुझे मुस्कुराते हुए तीनों स्वरूपों में आशीर्वाद देते रहे। वो पल मैं कभी भी नहीं भूल सकता। मैं सुना करता था कि सेवा और सुमिरन से मौत जैसे कर्म भी कट जाते हैं। सतगुरु चाहे तो मुर्दों में भी जान बख्श सकता है। जहां कोई भाई-बहन, माँ-बाप, रुपया-पैसा काम नहीं आता, वहां खुद-खुदा सतगुरु जीव की संभाल करता है। जो पूज्य हजूर पिता जी ने मेरी संभाल की है, मैं उस अहसान को शब्दों में पूर्णत: ब्यान नहीं कर पा रहा। मेरे पास वो शब्द नहीं हैं जिनसे मैं और मेरा परिवार सतगुरु जी का धन्यवाद कर सकें।