जीवन में बनाए रखें संतुलन
यूं तो संतुलन शब्द का जीवन के हर क्षेत्र में विशिष्ट योगदान है किन्तु इसका शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जो महत्त्व है, वह अद्वितीय है। निश्चित ही जब मनुष्य संतुलन खो बैठता है, तब उसकी जिन्दगी दुश्वार हो जाती है। जीवन को यदि जीवन की तरह जीना है तो संतुलन को एक अच्छा मित्र बनाकर चलना पड़ेगा।
संतुलन आपका पग-पग और पल-पल पर सहयोग करेगा। कहावत है कि यदि मनुष्य स्वस्थ है तो वह भूखा नहीं मर सकता किन्तु स्वस्थ रहना इतना आसान भी नहीं है। स्वस्थ रहने के लिए संतुलन का हाथ पकड़कर चलना पड़ता है। साफ शब्दों में, स्वस्थ रहने के लिए संतुलित रहना अत्यावश्यक है। स्वस्थ रहने के लिए हमें संतुलन संबंधी अग्रांकित तीन बिन्दुओं पर प्रमुखता से विचार करना होगा।
Also Read :-
- Married Life थोड़ा तुम बदलो, थोड़ा हम
- Healthy Lifestyle Tips in Hindi: बेहद जरूरी है लाइफ स्टाइल को सुधारना
- जीवन के सफलतम पल | Successful moments in life
Table of Contents
दैनिक जीवन में संतुलन:-
आज पैसे का जमाना है। हर मनुष्य पैसे के पीछे दौड़ रहा है। वैसे पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है, किन्तु स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर पैसा कमाना शोभा नहीं देता। हम पैसा भी तो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही कमाते हैं अत: पैसा कमाने के लिए हमें इतना शारीरिक या मानसिक श्रम करने की आवश्यकता नहीं है कि हम अपने अच्छे खासे शरीर से ही हाथ धो बैठें।
वस्तुत:
जीवन का उद्देश्य जीवन को सुन्दरतम ढंग से जीना है। जीवन को सुंदरतम ढंग से जीने के लिए हमें अपनी दैनिक जीवन की क्रियाओं में संतुलन बिठाकर चलना पड़ेगा। आज मनुष्य पैसे के पीछे इतना पागल हो गया है कि उसके पास अन्य आवश्यक दैनिक क्रियाओं के लिए समय ही नहीं है। मनुष्य पैसा कमाने के लिए ही सारा समय नष्ट करना चाहता है। उसके पास सुबह टहलने के लिए, शौच जाने के लिए, व्यायाम करने के लिए, प्रार्थना करने के लिए, नाश्ता या भोजन आदि के लिए तो समय ही नहीं है। इन सभी आवश्यक क्रियाओं के लिए तो वह नाममात्र का समय देता है। परिणामत: पैसे के चक्कर में उसकी दैनिक क्रियाएं असंतुलित और अनियमित हो जाती हैं और असंतुलित और अनियमित क्रियाओं के अभाव में वह अस्वस्थ हो जाता है।
संतुलित भोजन:-
भोजन शारीरिक स्वास्थ्य का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। यूं तो हर मनुष्य भोजन करता है किन्तु उल्टा-सीधा भोजन कर लेना अच्छे स्वास्थ्य का परिचायक नहीं है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें आयु, आकार और क्षमता के अनुरूप संतुलित भोजन लेना चाहिए।
वस्तुत:
मनुष्य का अपने मन पर एकाधिकार नहीं है। उसकी जीभ बहुत ही चटपटी हो गई है। उसे पता है कि ये पदार्थ उसके स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं, किन्तु फिर भी उसकी चटपटी जीभ उसे खाने को विवश कर देती है। यह विवशता ही तो असंतुलन का नाम है। जीभ पर अधिकार और समय पर संतुलित भोजन करना ही हमारे अच्छे स्वास्थ्य की कसौटी है।
मानसिक संतुलन:-
हमारी मानसिकता का भी हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। हमारी मानसिकता, हमारी सोच की द्योतक है। हमारी सोच हमारे क्रिया-कलापों की द्योतक है और हमारे क्रिया-कलाप हमारे स्वास्थ्य के द्योतक हैं, अत: अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मानसिकता का होना अति आवश्यक है। स्वस्थ मानसिकता से आशय अच्छे विचारों से है। हमारी मानसिकता का निर्माण हमारे परिवेश से होता है, हमारे रहन-सहन से होता है, हमारी संगति से होता है।
मानसिकता के निर्माण की भी एक निश्चित आयु सीमा होती है। शिक्षा ग्रहण करने की कालावधि को हम मानसिकता का निर्माण काल कह सकते हैं। यह कालावधि शिक्षार्थी की शिक्षा पर निर्भर करती है। वैसे इस काल को हम लगभग 4-5 वर्ष की आयु से लेकर 20-22 वर्ष की आयु तक मान सकते हैं। अस्तु इसी कालावधि में हमारी मानसिकता का निर्माण हो जाता है जिसके आधार पर ही हम जीवन पर्यन्त सोचते हैं और क्रियाएं करते हैं।
अगर इस अवधि में हमारी मानसिकता का निर्माण गलत हो जाता है तो हम गलत क्रियाएं करने लगते हैं और परिणामस्वरूप हम अस्वस्थता के शिकार हो जाते हैं। अगर इस अवधि में हमारी मानसिकता स्वस्थ बन जाती है तो हम स्वस्थ क्रियाएं करते हैं और जीवन-पर्यन्त स्वस्थ रहते हैं। अत: स्वस्थ रहने के लिए संतुलित या स्वस्थ मानसिकता का होना अत्यावश्यक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि संतुलन का स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। जैसे-जैसे हमारा संतुलन डगमगाने लगता है, वैसे-वैसे हमारा स्वास्थ्य भी डगमगाने लगता है। अत: स्वस्थ रहने के लिए सभी प्रकार से संतुलित रहना आवश्यक है।
(स्वास्थ्य दर्पण)