आदत बनाएं आभार प्रकट करने की

कुछ लोग बहुत चुप्प किस्म के होते हैं और कुछ मुखर वाचाल। दोनों ही तरह की आदतें अति होने पर बुरी हैं। चुप्प लोगों के साथ समस्या यह होती है कि वे किसी के बारे में क्या सोचते हैं, इस संबंध में लोग अटकलें ही लगाते रह जाते हैं। मान लीजिये किसी ने बुरे वक्त पर उनकी सहायता की या खुले दिल से उनकी प्रशंसा की। वे मन ही मन भले ही सामने वाले से खुश हैं लेकिन आभार प्रकट के दो बोल, एक छोटा सा शुक्रि या, थैंक्यू या धन्यवाद भी नहीं कह सके तो जिसने इन्हें खुश किया, उसे आगे के लिये क्या प्रोत्साहन मिलेगा?

उसकी भावनाएं आहत होकर रह जायेंगी।

कृतज्ञता ही वह गुण है जो इन्सान को नेक रास्ते पर चलाती है। कृतज्ञता का पहला उदाहरण हैं माता-पिता। हर संतान अपने माता पिता की कृतज्ञ होती है। माता-पिता जितना अपने बच्चों को चाहते हैं, वे भी उन्हें अक्सर उतना ही चाहते हैं लेकिन कितने बच्चे ऐसे होंगे जो माता-पिता के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हैं।

कभी मुंह से बोलकर उन्हें ये अहसास कराते हों कि वे उनके कितने कृतज्ञ हैं। वे इसकी जरूरत ही नहीं समझते। मां-बाप के अहसान को न समझ वे उसे अपना हक समझते हैं। वे नहीं जानते उनका आभार प्रदर्शन मां-बाप को कितना सुख संतोष देगा।

आभार प्रदर्शन से ही आपके प्रति किए गए सद्व्यवहार की महत्ता बढ़ती है। दैनिक जीवन में ऐसे अवसरों की कमी नहीं जब आपको बधाई भेंट आदि तो मिलती ही है। बीमारी में आपकी सेवा होती है।

आपकी इच्छाएं दूसरे पूरी करते हैं पर क्या हम कृतज्ञ करने वालों को फोन द्वारा या चार लाइन लिखकर या सामने हों तो बोलकर ही अपना आभार जताते हुए उन्हें यह कहते हैं कि हमें कितनी प्रसन्नता हुई है? हम उनके कितने शुक्र गुजार हैं?

बहुत कम सकारात्मक उत्तर मिलेंगे। चलिए आज भी अगर आपको अपनी भूल का अहसास होता है तो देर आये दुरूस्त आये वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है।

आप बच्चों के सामने अच्छा उदाहरण पेश करेंगे तो बच्चे भी आभार प्रकट करने की आदत बना लेंगे। इस तरह सद्भावना फैलाने का यह एक जरिया होगा।

अहसान फरामोश एक ऐसी गाली है जो कोई भी व्यक्ति जिसे जरा भी नैतिक उसूलों की परवाह है, कभी नहीं खाना चाहेगा।

आभार प्रकट करने के बाद व्यक्ति मानसिक तौर पर कितना हल्का महसूस करता है यह वही जानता है। एहसान अगर भार है तो आभार प्रदर्शन भार मुक्त होने का प्रयास। आज हर व्यक्ति तनावयुक्त दिखाई देता है। इसमें एक कारण उसकी नकारात्मक सोच भी है जो उसे किसी का भी अहसानमंद होने से रोकती है।

अन्य अच्छे कार्यों की तरह ही कृतज्ञता की भी अपनी खुशबू होती है जो आपके व्यक्तित्व में रच बसकर उसे महकाए रखती है।
उषा जैन ’शीरीं‘

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