मौलाजग तारण आया |132वां पावन अवतार दिवस (कार्तिक पूर्णिमा)
संत-महापुरुषों, रूहानी पीर-फकीरों का सारा जीवन पवित्र प्रेरणाओं का स्त्रोत होता है। स्वयं परमपिता परमात्मा की इच्छानुसार ऐसी महान हस्तियां सृष्टि उद्धार के लिए अक्सर धरा पर अवतरित होती रहती हैं। सृष्टि सच्चे संतों, पीर-फकीरों से कभी खाली नहीं रहती, वो परोपकारी हस्तियां, गुरु, संत-महापुरुष मानवता व सृष्टि-उद्धार के साथ-साथ समाजोत्थान का कार्य समय और युग के अनुसार बराबर करते रहते हैं।
वास्तव में उनका उद्देश्य ही हर तरह से जीवोद्धार व सृष्टि और मानवता की भलाई करना ही रहता है। परमेश्वर स्वरूप पूजनीय परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अवतार धारण कर मानवता व जीव-सृष्टि पर जो उपकार किए हैं, उनका वर्णन लिख-बोलकर हो ही नहीं सकता। पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज ने समाज से चोरी-चकारी, नशे आदि बुराइयों को खत्म कर हक-हलाल, मेहनत की करके खाने का संदेश दिया, समाज में ऊंच-नीच, धर्म-जात का भेदभाव मिटाकर सबको राम-नाम, भक्ति इबादत में एक जगह इकट्ठे बैठाया।आप जी ने दुनिया को राम-नाम से रूबरू करवाया।
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जीवन परिचय:
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने विक्रमी संवत् 1948 सन् 1891 की कार्तिक पूर्णिमा को गांव कोटड़ा तहसील गंधेय जिला कोलायत, बिलोचिस्तान (पाकिस्तान) में अवतार धारण किया। आप जी के पूजनीय पिता जी का नाम श्री पिल्लामल जी था। वे अपनी ईमानदारी व सच्चाई के कारण इलाके में ‘शाह जी’ के नाम से जाने जाते थे। आप जी के पूजनीय माता जी का नाम तुलसां बाई जी था। वे अति दयालु, जरूरतमंदों के सच्चे हमदर्द थे। वे साधु-संतों की सेवा व प्रभु-भक्ति में दृढ़-विश्वास रखते थे। पूजनीय पिता जी के यहां चार पुत्रियां ही थी।
हालांकि घर में किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं थी, लेकिन अपना वारिस (बेटा) पाने की इच्छा उन्हें हर समय सताए रखती थी। एक बार पूजनीय माता-पिता जी का मिलाप रब्ब के एक सच्चे फकीर से हुआ। उन्होंने अपने नेक स्वभाव के अनुरुप उस फकीर बाबा की सच्चे दिल से सेवा की। वो फकीर-बाबा उनकी सेवा-भावना व सच्ची तड़प को देखकर बहुत प्रभावित, बहुत ही खुश हुए। पूजनीय माता-पिता जी ने उस फकीर-बाबा के सामने पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। फकीर-बाबा ने उनकी इस सच्ची तड़प को देखकर उनसे कहा कि बेटा तो आपके घर जन्म ले लेगा, लेकिन वह आपके काम नहीं आएगा। हमेशा आपके पास नहीं रहेगा।
(वह जग तारने, जीव-सृष्टि का उद्धार करने आएगा।) अगर आपको यह मंजूर है, तो देख लो। पूजनीय माता जी ने फकीर-बाबा के वचनों को शिरोधार्य (सत् वचन) कहते हुए कहा कि हमें ‘ऐसा’ भी मंजूर है। इस प्रकार परमपिता परमात्मा ने पूजनीय माता-पिता जी की सच्ची तड़प और उस फकीर-बाबा की दुआ से अपना अलौकिक स्वरूप ‘शाह मस्ताना जी महाराज’ के रूप में प्रकट कर उनकी मनोकामना को पूरा किया।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की आदरणीय बड़ी बहन चतरो बाई के अनुसार कि ‘अलौकिक’ इसलिए भी कि आप जी के अवतार धारण करने पर सारा घर ‘अलौकिक प्रकाश’ से दमक उठा था। अलौकिक प्रकाश की वो मनमोहक किरणें पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के बाल स्वरूप से प्रफुटित हो रही थी। शाही परिवार में खुशी का कोई पारावार नहीं था। पूजनीय पिता जी ने जहां सारे गांव में मिठाइयां बांटी, वहीं पूजनीय माता जी ने अपने लाल (पूजनीय सार्इं जी) के वजन के बराबर चांदी तोलकर गरीबों में बांटी तथा अन्न, वस्त्र व सोना भी दान किया।
आप जी खत्री वंश से संबंध रखते थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का नाम श्री खेमामल जी रखा था। ‘शाह मस्ताना जी’ का यह रूहानी खिताब आप जी को आप जी के पूजनीय सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज ने बख्शिश रूप में प्रदान किया। पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज आप जी को ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’ के नाम से पुकारा करते और इस प्रकार आप जी इसी पवित्र नाम से प्रसिद्ध हुए।
नूरी बचपन के चोज:
आप जी अभी बहुत छोटी आयु में थे कि आप जी के पूजनीय पिता जी भगवान को प्यारे हो गए। पूजनीय पिता जी के देहांत के बाद घर-परिवार की जिम्मेवारियों का बोझ पूजनीय माता जी पर आन पड़ा। फिर भी पूजनीय माता जी ने अपनी मेहनत से जहां इतने बड़े परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बाखूबी निभाया, वहीं आप जी के लालन-पालन में भी कोई कमी नहीं आने दी। आप जी भी जहां तक संभव हो पाता पूजनीय माता जी का बराबर साथ दिया करते और आप जी अपनी पूजनीय माता जी का दिल अपने नन्हें-नन्हें चोज दिखाकर बहलाते रहते।
माता के प्रति निभाई जिम्मेदारी:
पूजनीय माता जी बढ़िया खोवा, खोये की मिठाई बनाकर देते और आप जी बाजार में बेच आया करते। प्रतिदिन की तरह एक दिन जब आप मिठाई का थाल लेकर घर से निकले तो आप जी को कोई मालिक का प्यारा साधु महात्मा मिला। आप जी बचपन से ही साधु-महात्माओं की सेवा व सोहबत किया करते थे। उस साधु-बाबा के साथ राम-नाम की चर्चा के दौरान आप जी ने कुछ मिठाई साधु-बाबा को खाने को दी। साधु बाबा ने और मिठाई खाने की इच्छा व्यक्त की।
आप जी देते गए और वो खाता गया। इस प्रकार आप जी ने सारी मिठाई साधु-बाबा को खिला दी। साधु बाबा ने खुश होकर कहा कि ‘बच्चा, तुझे बादशाही मिलेगी।’ आप जी ने कहा कि ‘बाबा, तू कूड़ बोलता है।’ साधु बाबा ने कहा कि ‘बच्चा, मैं अल्लाह पाक के हुक्म से बोलता हूं। मैं कूड़ नहीं बोलता। तुझे बादशाही मिलेगी, दोनों जहानों की बादशाही मिलेगी।’ वह फकीर कौन था, किधर से आया था और पलक झपकते किधर चला गया! आप जी इस बारे में कुछ और सोचते, आप जी ने जब देखा थाल भी खाली और हाथ भी खाली।
माता जी को क्या जवाब देंगे! आप जी ने दिनभर एक जमींदार के यहां खेत-मजदूर के तौर पर मजदूरी की। वह जमींदार भाई कभी आप जी की बाल-अवस्था को देखता और कभी आप जी की लग्न और कर्मठता को देखता। वह देख-देखकर हैरान और सोचने पर मजबूर हो गया कि यह लड़का आम बच्चों की तरह नहीं है, ये कोई महान हस्ती है। वह जमींदार भाई आप जी को साथ लेकर पूजनीय माता जी से मिला और मजदूरी के पैसे देकर कहा कि आपका पुत्र कोई महान हस्ती है।
जब पूजनीय माता जी को असलियत का पता चला तो उन्होंने आप जी को अपनी छाती से लगाकर बहुत प्यार व दुलार दिया और कहा कि क्या जरूरत थी इतना सख्त काम करने की। घर में किसी चीज की कमी थोड़े ही थी। आप जी ने अपनी पूजनीय माता जी से कहा कि माता जी, मेरा भी कोई फर्ज था। मैंने अपना फर्ज भी निभाना था।
जैसे-जैसे आप जी बड़े होते गए, दूसरों व जरूरतमंदों के प्रति हमदर्दी तथा प्रभु-भक्ति का दायरा भी बढ़ता गया। जहां भी आप जी को कोई दु:खी, कोई पीड़ित व जरूरतमंद मिला, आप जी अपने नेक स्वभाव व ईश्वरीय बख्शिश के अनुरूप उसकी हर संभव मदद करते। प्रभु-भक्ति के प्रति आप जी की लग्न बेइन्तहा थी। इस दौरान पूजनीय माता जी ने आपजी की शादी भी कर दी और आप जी के घर के एक सुपुत्र ने भी जन्म लिया।
सच का मिलाप:
सच की तलाश तो आप जी के अंदर बचपन से थी। भगवान सत्नारायण जी की पूजा परिवार में शुरु से ही होती थी। पूजा के लिए आप जी ने अपने ईष्टदेव, अपने भगवान सत्नारायण जी की सोने की मूर्ति अपने घर में छोटे से मंदिर में सजाई हुई थी। आप जी अपने भगवान की पूजा व ध्यान में घंटों तक बैठे रहते। एक बार कोई साधु-महापुरुष आप जी के पास मंदिर में आए। उन्होंने प्रभु की भक्ति के लिए सच का रास्ता समझाया कि अगर आप अपने सत्नारायण भगवान को मिलना और अपनी मोक्ष-मुक्ति चाहते हैं, तो सच्चे गुरु की तलाश करो।
भगवद् चर्चा में लीन आप जी को अतिथि-सत्कार का ख्याल नहीं आया था, लेकिन अतिथि सत्कार का ख्याल आते ही आप जी उस महात्मा के लिए घर से चाय-दूध लेने के लिए गए। लेकिन जाने से पहले मंदिर का दरवाजा यह सोचकर बाहर से बंद कर गए कि महात्मा भेष में कोई चोर-ठग ही न हो कि पीछे से सोने की मूर्ति ही न उठा कर ले जाए। वापिस आए, दरवाजा भी खुद खोला, अंदर देखा तो सब कुछ यथा-स्थान पर सही-सलामत था, परंतु वो साधु, वो महात्मा वहां नहीं थे। आप जी हैरान कि आने-जाने का दरवाजा भी यही एक है और वो महात्मा गए तो किधर से गए और वो महात्मा कौन थे? उसके बाद तो सच की तलाश आप जी के अंदर और प्रबल हो गई।
आप जी सच्चे गुरु की तलाश में लग गए। आप जी बड़े-बड़े तीर्थ-धामों पर गए। वहां आप जी का मिलाप बहुत ही प्रसिद्ध पहुंचे हुए महात्माओं और ऋषि-मुनियों से हुआ। आप जी जिस भी महात्मा से मिलते, उनसे ईश्वर-प्राप्ति और मोक्ष-मुक्ति का रास्ता पूछते। इस दौरान आप जी को रिद्धी-सिद्धी में मशहूर महात्माजन जी मिले। उन्होंने कहा कि नोटों, सोने-चांदी की वर्षा करवा सकते हैं, पानी पर चला सकते हैं, हवा में उड़ा सकते हैं इत्यादि ऋद्धि-सिद्धि के अनेक तरीके बता सकते हैं, लेकिन आप जी को इन चीजों की नहीं, परमपिता परमात्मा की ही तलाश थी।
इस तरह घूमते-घूमते आप जी डेरा ब्यास (पंजाब) में पहुंच गए। आप जी जिसकी तलाश में निकले थे, आप जी को निशाना मिल गया, उद्देश्य हल हो गया। पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज को प्रत्यक्ष रूप में पाकर आप जी खुशी में फूले नहीं समा रहे थे। ये वो ही महात्मा, महापुरुष थे, जिन्होंने पूरे गुरु की तलाश करने को कहा था। सच भी सामने था और उद्देश्य भी मिल गया।
आप जी ने पूजनीय हजूर बाबा जी का सत्संग सुना, नाम, गुरुमंत्र प्राप्त कर और अपना तन-मन-धन सब कुछ भेंट करके उन्हें अपना खुद-खुदा दिल से मान लिया। आप जी उसी दिन से ही अपने मुर्शिदे-कामिल पूजनीय बाबा जी के होकर रह गए। नाम खजाना, नाम-खुमारी, धुर की वाणी और सब कुछ आप जी ने अपने पूजनीय सतगुरु जी से हासिल कर लिया था। पूजनीय बाबा जी ने नाम-शब्द के साथ-साथ अपनी बेइन्तहा रूहानी बख्शिशें प्रदान करते हुए ये भी वचन फरमाया कि आपको सब काम करने वाला राम देते हैं।
इलाही बख्शिशें:
आप जी ने अपने सतगुरु-मौला को नाच-नाच कर और सेवा व सुमिरन के द्वारा ऐसा खुश कर लिया कि मालिक और सेवक ‘एक’ हो गए। उस समय की 70 हजार के करीब साध-संगत में आप जी ने नाच-नाचकर अपने सतगुरु-मौला को रिझा लिया।
शाह मस्ताना जी बिलोचिस्तानी उन्हां इक्को नुक्ता फड़ेआ।
जान फिदा कर मुर्शिद उत्तों, झट मुर्शिद नजरीं चढ़ेआ।
लोक-लाज ते अकलां पहले पूर रूढ़ाइयां जद वख होए परिवारों,
सादक इश्क आ बाबा सावण शाह जी लुट्टे नच नच के सत्तर हजारों।।
(सचखण्ड दा संदेश-2)
आप जी के सच्चे इश्क तथा खुदा की सच्ची मस्ती से पूजनीय हजूर बाबा जी बहुत खुश होते और आप जी पर अपने ईलाही वचनों की बौछारें कर देते। एक बार ऐसा ही मनमोहक दृश्य वर्णनीय है-
सत्संग लगा हुआ था। साध-संगत भी सजी हुई थी। पूजनीय हजूर बाबा जी सत्संग स्टेज पर विराजमान थे। आप जी अपने खुद-खुदा की पवित्र हजूरी में खुदा के ईलाही प्रेम की मस्ती में कमर व पैरों में मोटे-मोटे घुंघरू बांधकर नाच रहे थे। पूजनीय बाबा जी ऐसी प्रेम मस्ती पर खुश होकर आप जी को मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी कहा करते थे। पूजनीय हजूर बाबा जी ने आप जी पर खुश होकर ईलाही बख्शिशों की बराबर बौछारें करते हुए वचन फरमाए, ‘जा मस्ताना शाह, असीं तुझे अखुट भंडार दिया। जा मस्ताना शाह, असीं तुम्हें सब दातों की कुंजी दी।
जिसको मर्जी दे, सोना, चांदी, पैसा, पुत्र, धी दे, चाहे जो मर्जी कर। जा मस्ताना, असीं तुझे पीर बनाया और अपना स्वरूप भी दिया। जा मस्ताना शाह, तुझे बागड़ का बादशाह बनाया। सरसा जा और कुटिया (डेरा) बना और सच्चे नाम का प्रचार कर।’ बल्कि इस तरह ईलाही बख्शिशें करते हुए पूजनीय बाबा जी स्टेज से उतर कर आप जी के पीछे-पीछे इस तरह फिर रहे थे, जैसे गाय अपने बछड़े के पीछे-पीछे उसके मोह में फिरती है। जो और भी मांगेगा सब देंगे। ऐसे ईलाही वचनों में आप जी ने अपने मक्खण-मलाई दाता रहबर से साध-संगत के लिए ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा मंजूर करवाया तथा वहीं और भी अनेक बख्शिशें अपने मुर्शिदे-कामिल से हासिल की।
डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना:
आप जी अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज का ईलाही हुक्म पाकर सरसा में पधारे और उन्हीं के हुक्मानुसार 29 अप्रैल 1948 को एक छोटी सी कुटिया के रूप में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की। उन दिनों पीने वाला पानी बहुत दूर से लाना पड़ता था। आप जी गर्मी के दिनों में पानी के घड़े भरवा कर आश्रम के बाहर गेट पर छाया में राहगीरों के लिए रखवा दिया करते, पर कई लोग वहां से घड़े ही चुराकर ले जाते।
एक बार फिर ऐसा हुआ तो पड़ोस में जमीन के मालिक श्री बुटा राम ने आप जी को कहा कि सार्इं जी, कहीं और चलें, डेरा कहीं और बनाएं, यहां रहना ठीक नहीं। यहां पर तो चोर पानी के घड़े भी चुराकर ले जाते हैं। उस भाई की यह बात सुनकर आप जी हंसे तथा वचन फरमाया, ‘पुट्टर, पानी किस लिए रखा था। यह उनकी इच्छा है कि यहां पानी पिएं या घड़े घर ले जाकर पिएं। पुट्टर, आज की बात याद रखना, गांठ बांध ले, सच्चा सौदा में कोई भी चीज खुटने वाली नहीं है।
तू बोलता है कि इस जगह को छोड़कर चले जाएं, डेरा कहीं और बनाएं! याद रखना, इस धरती पर लहंदा झुकेगा, चढ़दा झुकेगा, झुकेगी दुनिया सारी। कुल आलम इत्थे झुकेगा। मौके पर फकीर की कदर नहीं होती। अभी तो डेरा सच्चा सौदा की दुकान बनी है, फिर इसमें राम-नाम का सौदा डलेगा, फिर दुकान चलेगी, फिर दुनिया को पता चलेगा। अभी तो जैसे रिमझिम-रिमझिम बूंदा-बांदी होती है, जब मूसलाधार बरसात होगी, फिर पता चलेगा।’
12 साल बरसाई रहमत:
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने मुर्शिदे-कामिल पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के हुक्मानुसार 1948 से डेरा सच्चा सौदा रूपी बाग लगाकर जीवों को नाम-शब्द के द्वारा उनकी हर तरह की बुराइयां व नशे छुड़वाने का पुण्य कार्य आरम्भ किया। आप जी ने 1960 तक बारह वर्षों में नोट, सोना, चांदी, कपड़े, कम्बल बांट-बांटकर तथा अपने अनेकों रूहानी खेल रचकर हजारों लोगों को राम-नाम, मुक्ति के मार्ग से जोड़ा और उनकी बुराइयां छुड़वाई। आप जी ने हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों के अनेकों गांवों, शहरों, कस्बों में दिन-रात सैकड़ों सत्संग लगाकर लोगों को राम-नाम की भक्ति से रूबरू कराया, वहीं आप जी ने डेरा सच्चा सौदा के नाम से दर्जनों डेरे स्थापित करके उन इलाकों में स्थानीय लोगों के मनों में परमपिता परमात्मा की सच्ची भक्ति की भावना को जगाया।
आप जी अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल के वचनानुसार बेधड़क रूहानी सत्संग करते कि सुनने वालों पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता। लोग यह सोचने पर मजबूर हो जाते कि राम-नाम के बिना हमने इतनी उम्र क्यों फिजूल गंवा दी। हजारों लोग अपनी बुराइयों से तौबा करके आप जी के द्वारा राम-नाम व डेरा सच्चा सौदा से जुड़े और अपनी जीवात्मा का उद्धार किया। आप जी के अद्भुत रूहानी खेलों को देखकर बड़े-बड़े अहंकारियों का अहंकार टूट जाता और वे लोग भी नत्मस्तक होते देखे जाते। केवल यही नहीं, जुआरिये, सट्टाबाज, चोर-चकार आदि अपनी बुराइयों के कारण समाज में बुरी तरह से बदनाम लोग भी अपनी बुरी आदतों को हमेशा के लिए छोड़कर परमपिता परमात्मा के सच्चे भक्त बन गए।
इस तरह आप जी के रहमो-करम से सच्चा सौदा का दिनों-दिन विस्तार होता गया। गधों, बैलों को बूंदी खिलाना, कुत्तों, बकरियों के गले में नोटों के हार बांधकर उन्हें भगा देना और लोग नोट बटोरने के लिए टूट पड़ते, यह देखकर आप जी हंसते कि सब माया के यार हैं, मस्ताना गरीब का यार तो कोई-कोई है। डेरा सच्चा सौदा दरबार में आलीशान नए-नए मकान बनवाना और उन्हें गिरवा देना, फिर बनवा देना आदि ऐसे कितने ही आप जी के अनोखे करिश्माई रूहानी खेल देखकर लोग दूर-दूर से सच्चा सौदा में खींचे चले आते और इस तरह सच्चा सौदा रूपी रूहानी बाग दिनों-दिन महकने लगा।
दिन-दोगुनी रात चौगुनी डेरा सच्चा सौदा तरक्की की ओर:
आप जी ने 28 फरवरी 1960 को पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपने पवित्र कर-कमलों से डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह गद्दीनशीन किया। गुरगद्दी बख्शिश करते हुए आप जी ने साध-संगत में पूजनीय परमपिता जी के बारे वचन किए, ‘भाई, ये वोही सतनाम हैं, जिसको दुनिया जपती-जपती मर गई, पर वो नहीं मिला। असीं अपने सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल दाता सावण शाह जी के हुक्म से इन्हें अर्शो से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है।
जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा, वह भी नर्कों में नहीं जाएगा।’ आप जी ने ये भी वचन किए, ‘सात साल बाद असीं फिर आएंगे।’ वर्णनीय है कि पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 18 अपै्रल 1960 को अपना नूरी चोला बदल लिया था, तो पूजनीय मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में ठीक सात साल के बाद यानि 15 अगस्त 1967 को श्री गुरुसर मोडिया जिला श्री गंगानगर (राजस्थान) में अवतरित हुए और पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने इन्हें 23 सितम्बर 1990 को अपने पवित्र कर-कमलों से डेरा सच्चा सौदा में अपना स्वरूप बख्शकर गद्दीनशीन किया।
ईलाही मौज-दुनिया के कोने-कोने में राम-नाम:
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सच्चा सौदा के बारे ये भी वचन फरमाए कि ‘सच्चा सौदा कई गुणा बढ़ेगा, दुनिया के कोने-कोने में राम-नाम गूंजेगा। असीं मकान बनवाए और गिरवाए, तीसरी बॉडी में ऐसा बब्बर शेर आएगा, वह चाहे तो बने-बनाए मकान आसमान से धरती पर उतार सकेंगे। असीं नोट, सोना, चांदी बांटा, तीसरी बॉडी चाहे तो हीरे-जवाहरात भी बांट सकेंगे। सतगुरु जी की दया-मेहर, रहमत से कभी कोई कमी नहीं रहेगी।
इतनी ज्यादा संगत होगी कि सरसा-नेजिया एक हो जाएगा। तिल रखने की जगह नहीं होगी। ऊपर से थाली फैंके तो नीचे न गिरे, संगत के सिरों पर ही रह जाएगी। हाथी पर चढ़कर दर्शन देंगे तो भी दर्शन मुश्किल से हो पाएंगे।’ पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने भी डेरा सच्चा सौदा की तरक्की बारे यही वचन फरमाए कि ‘दिन दोगुनी, रात चौगुनी, कई गुणा राम-नाम वाले बढ़ेंगे। ऐसा आलीशान डेरा बनेगा कि सचखंड का नमूना होगा, दुनिया देखेगी।’ हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। इन बेपरवाही वचनानुसार साध-संगत डेरा सच्चा सौदा में ज्यों के त्यों सतगुरु जी की रहमतों को पा रही है।
मानवता भलाई के कार्य विश्व में रिकॉर्ड:
पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन मार्गदर्शन व पवित्र रहनुमाई में डेरा सच्चा सौदा में 159 मानवता भलाई के कार्य साध-संगत जोर-शोर से कर रही है। इन 159 मानवता भलाई के कार्यों में रक्तदान और पौधा रोपण (पर्यावरण संरक्षण) कार्यों में तीन-तीन विश्व रिकॉर्ड डेरा सच्चा सौदा के नाम गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हैं।
ये हैं विश्व रिकॉर्ड:
रक्तदान-
- 7 दिसम्बर 2023 में 15432 यूनिट रक्तदान
- 10 अक्तूबर 2004 को 17921 यूनिट रक्तदान
- 10 अगस्त 2010 को 43732 यूनिट रक्तदान
ये तीनों विश्व रिकॉर्ड गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड में डेरा सच्चा सौदा के नाम दर्ज हैं। इसके अतिरिक्त 12 अप्रैल 2014 को एक दिन में डेरा सच्चा सौदा के सेवादारों द्वारा एक ही दिन व एक ही समय में अलग-अलग स्थानों पर ंआयोजित 200 रक्तदान शिविरों में 75711 यूनिट रक्तदान किया गया जोकि डेरा सच्चा सौदा के नाम रक्तदान क्षेत्र में एक और विशाल रिकॉर्ड बना है। इस तरह डेरा सच्चा सौदा द्वारा लाखों यूनिट रक्तदान मानवता हित में दिया जा चुका है।
पौधारोपण-
- 15 अगस्त 2009 में 1 घंटे में 9 लाख 38 हजार 7 पौधे और इसी दिन 8 घंटों यानि पूरे दिन में 68 लाख 73 हजार 451 पौधे लगाए गए। यानि एक ही दिन में 2 विश्व रिकॉर्ड।
- 15 अगस्त 2011 में 1 घंटे में 19 लाख 45 हजार 435 पौधे लगाए।
- ये तीनों विश्व रिकॉर्ड डेरा सच्चा सौदा के नाम पर्यावरण संरक्षण क्षेत्र में गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। इसी तरह 15 अगस्त 2012 को साध-संगत ने मात्र 1 घंटे में 20 लाख 39 हजार 747 पौधे रोपित किए, जोकि एक और बड़ा रिकॉर्ड बना।
इस तरह डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत द्वारा अब तक पांच करोड़ से ज्यादा पौधे रोपित करके पर्यावरण संरक्षण में अपना अहम् योगदान दिया गया है और उनमें ज्यादातर यानि काफी प्रसेंट पौधे फलदार व छायादार पेड़ों के रूप में धरती को महका रहे हैं।
देश-विदेश में साध-संगत हर साल 15 अगस्त को पूज्य गुरु जी का पावन अवतार दिवस व स्वतंत्रता दिवस ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करके धरा को हरियाली की सौगात प्रदान करके मनाती है। इसके अतिरिक्त दर्जनों और रिकॉर्ड एशिया बुक आॅफ रिकॉर्ड और इंडिया बुक आॅफ रिकॉर्ड में दर्ज हैं। यानि इस प्रकार 79 से ज्यादा रिकॉर्ड डेरा सच्चा सौदा के नाम दर्ज हें।
इसके अतिरिक्त जरूरतमंदों के लिए रक्तदान करना, गरीब जरूरतमंदों को मकान बनाकर देना, अनाथ, बेसहारों को सहारा देना, आर्थिक रूप से कमजोर व जरूरतमंद परिवारों की बेटियों की शादी में सहयोग करना आदि 159 मानवता भलाई के कार्य साध-संगत तन-मन-धन से कर रही है।
इसके अलावा पूज्य गुरु जी ने जहां किन्नर समाज को देश की सर्वोच्च अदालत माननीय सुप्रीम कोर्ट से थर्ड जेंडर का नाम दिलाकर इस समाज को भारतीय संविधान में सत्कारित स्थान और अन्य सभी सुविधाओं का हक दिलवाया है, वहीं किसी मजबूरीवश वेश्यावृति में फंसी अनेकों युवतियों को उस बुराई की दलदल से निकाल कर उन्हें शुभदेवी का नाम देकर उनकी अच्छे सम्पन्न परिवारों में शादी-विवाह करवाकर उन्हें घर व वर प्रदान कराया।
पूज्य गुरु जी के ऐसे अनेकों सामाजिक कार्य हैं और समाज के प्रति बहुत बड़ी देन है। पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे ये 159 मानवता भलाई के कार्य साध-संगत आज भी ज्यों के त्यों बढ़-चढ़कर कर रही है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी द्वारा स्थापित सर्वधर्म संगम डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म प्रिय है।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के 132वें पावन अवतार दिवस की कोटि-कोटि बधाई हो जी।