कंजूस सेठ, चालाक नौकर
एक सेठ जी थे। हलवाई का काम करते थे। कस्बे में मिठाइयों की दुकान थी। सेठ बड़ा कंजूस था। इतनी बड़ी दुकान में कारीगरों के अलावा काम करने के लिये एक ही नौकर था। उसे भी वेतन और खाना पूरा नहीं देता था। परेशान अलग करता था इसलिये कोई भी नौकर उसके यहां महीने दो महीने से अधिक नहीं टिकता था।
उसने एक बार एक नौकर रखा। वह अठारह-बीस वर्ष का लड़का था। कंजूस नौकरों के जल्दी-जल्दी भाग जाने के कारण परेशान था। इसलिये उसने नौकर से कम से कम एक वर्ष तक नौकरी करने का इकरारनामा लिखवा लिया। नौकर भी चालाक और कामचोर था। उसने नौकरों के प्रति सेठ के दुर्व्यवहार के बारे में सुन रखा था। उसने सेठ को सबक सिखाने की सोची।
जब दुकान में इक्का दुक्का ग्राहक होता तो वह वहां टिका रहता था लेकिन जब भीड़ अधिक होती तो वह वहां से कहीं चला जाता या फिर पेट पकड़ कर पेट दर्द या दस्त होने का बहाना बना लेता था। उसे पता था कि सेठ अपनी आदत के अनुसार किसी न किसी बहाने से वेतन तो काट ही लेगा। भोजन की पूर्ति तो वह चोरी से मिठाइयां खाकर पूरी कर लेता था।
दीवाली का दिन था। दुकान पर मिठाइयां खरीदने वालों की भीड़ थी, परन्तु नौकर दुकान से गायब था। सेठ स्वयं ही मिठाइयां उठाता, तोलता और पैसे लेता। भीड़ के कारण उसकी हालत खराब थी।
कुछ समय के बाद नौकर आया। सेठ गुस्से में भुनभुनाया हुआ था। नौकर को देखते ही जोर से गुस्से में बोला-‘क्यों बे, काम के वक्त कहां मर गया था?’
‘मरा नहीं सेठ जी, बाल बनवाने के लिये गया था।’ नौकर बोला
‘यह जानते हुए भी कि आज दुकान में अधिक काम है, तू बाल बनवाने क्यों गया था?’ सेठ गुर्राया।
‘क्योंकि बाल दुकान में रहते ही तो बढ़े हैं, इसीलिये अभी बाल बनवाने चला गया था।’ नौकर ने कहा।
नौकर के उत्तर से सेठ गुस्से में बोला-‘तुम्हारे सारे बाल दुकान में रहते ही बढ़े हैं क्या? ये रातों को नहीं बढ़े?’
नौकर ने हाथ बालों पर घुमाते हुए कहा-‘क्यों नहीं, सिर पर बचे हुए बाल रातों को ही तो बढ़े हुए हैं।’
सेठ ने नौकर से तौबा की और उसे पूरे माह का वेतन देकर चलता किया।
इसके बाद सेठ ने अपने व्यवहार में सुधार कर लिया।
दो नौकर रखे। पूरा वेतन और सही भोजन देने लगा।
प्यार की भाषा का इस्तेमाल करने लगा। दुकान पहले से भी अच्छी चलने लगी।