मोहन की शरारती टोली कुछ दिनों में ही होली आने वाली थी। मोहन और उसकी टोली सोच रही थी कि इस बार होली में क्या हंगामा किया जाएगा! असल में 13-14 साल के चार बच्चों की ये टोली थी, जिसका लीडर मोहन था। ये सभी बच्चे एक ही स्कूल, एक ही कक्षा में पढ़ते थे। चारों की दोस्ती भी बड़ी मजबूत थी।
स्कूल से आने के बाद खेलते भी साथ, पढ़ते भी साथ और शैतानियां भी साथ ही करते थे। पिछली बार होली में इस टोली ने टंकी में पक्के रंग डाल दिए थे और उसमें छोटे बच्चों को पकड़कर डूबो देते, जिससे बच्चे पूरे रंगीन हो जाते, उन पर चढ़े रंग को छुड़ाने में कई दिन लग जाते, तबतक सब बच्चों को चिढ़ाते रहते। होली को लेकर मोहन की टोली आपस में सिर से सिर जोड़े विचार कर रही थी। इस बार की होली में एक पेंच फंस रहा था कि होली के दो दिन बाद से ही उनके फाइनल एग्जाम शुरू होने वाले थे।
सभी ने मिलकर सोचा कि इस साल कोई बड़ा हंगामा नहीं करेंगे, जिससे परीक्षा में दिक्कत हो। उन्होंने प्लान बनाया कि इस बार केवल गुब्बारों में रंग भरकर लोगों को मारेंगे। लोगों को रंग से लथपथ देखेंगे, तो बड़ा मजा आएगा। होली वाले दिन सभी दोस्त सुबह जल्दी से उठकर रंग भरे गुब्बारों की बाल्टी लिए मोहन के घर की छत पर जमा हो गए। सभी ने पहले आपस में एक-दूसरे के साथ जमकर होली खेली, फिर थोड़ी देर में ही मोहन की टोली के अपने हथियार लिए छत दीवार के पीछे छिप गये। सबके हाथों में गुब्बारे थे। उन्होंने तय किया कि एक बार में एक ही साथी गुब्बारा फैंकेगा। इससे बारी-बारी से सभी को गुब्बारे फैंकने का मौका मिल आएगा। अब बस इंतजार था तो शिकार का।
तभी दूर से एक व्यक्ति आता दिखाई दिया। जैसे ही वो मकान के पास आया, टोली के एक सदस्य अक्षय ने गुब्बारा उसकी तरफ फैंका और सब दीवार के पीछे छिप गए। गुब्बारा लगते ही उस व्यक्ति की पूरी शर्ट रंग से भर गई। उसने आसपास देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया तो वो झल्लाते हुए चलागया। अब बारी मोहन की थी। उसने छत से देखा कि एक बाइक आ रही है, उसने जोर से गुब्बारा फैंका और वो बाइक सवार की बाजू में लगा। इससे उसका बैलेंस बिगड़ गया और गाड़ी के जोर से स्लिप होकर गिरने की आवाज आई। बाइक सवार वहीं गिर पड़ा और उनका पैर बाइक में फंस गया और हड्डी टूट गयी। हाथ, कोहनी से खून निकलने लगा, सर पर चोट आई। चालाक जोर-जोर से मदद के लिए चिल्लाने लगा। मोहन और उसकी टोली डर गई और धीरे से दीवार से सर उठाकर देखा कि वह अंकल बाइक से गिरे हुए थे और कराह रहे थे।
मोहन के पापा आवाज सुनकर घर से बाहर आये। उन्होंने अंकल को उठाया और इस दुर्घटना का कारण पूछा। अंकल ने बताया कि छत से किसी ने उन पर गुब्बारा फैंका, जिससे संतुलन बिगड़ने पर वो गिर गए। मोहन के पापा समझ गए कि ये कारस्तानी मोहन और उसके टोली की है। पापा, अंकल को लेकर अस्पताल गए, पट्टी करवाई, पैर में प्लास्टर बंधवा कर उन्हें घर छोड़ा।
मोहन और टोली बहुत सदमे में थी। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनके खेल से किसी को इतनी बड़ी परेशानी हो जायेगी। मोहन के पापा ने चारों लड़कों को बुलाया और उन्हें कहा कि तुम लोगों की शरारत के कारण आज एक व्यक्ति की जान जाते-जाते बची है। डॉक्टर ने कहा है कि पैर की हड्डी जुड़ने के बाद भी शायद उन्हें जीवन भर लंगड़ा कर चलना पड़े। सभी बच्चों की आंख में आंसू आ गए। उन्हें अपनी करनी पर बेहद पछतावा हो रहा था। उन्हें समझ आया कि शैतानियां कभी भी ऐसी नहीं होनी चाहिए, जो दूसरों को नुकसान पहुंचाये। सभी बच्चों ने तय किया कि वो सब अंकल के घर जा कर उनसे माफी मांगेंगे।