ऐसा हादसा जिसने झकझोर दी पूरी दुनिया टाइटैनिक पार्ट-2
111 वर्ष बाद फिर टाइटैनिक से जुड़ी त्रासदी सबमरीन पनडुब्बी के रूप में वापस लौटी, सवार सभी 5 यात्रियों की मौत
टाइटैनिक अपने जमाने का सबसे विशाल और आलीशान जहाज था। लॉन्च से पहले ही इसको समंदर की महारानी का नाम दिया गया। 10 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक साउथैम्पटन के बंदरगाह से रवाना हुआ जिसमें 2200 से अधिक लोग सवार थे। इनमें दुनिया की कुछ सबसे चर्चित हस्तियां भी थीं, लेकिन सफर की शुरूआत में ही टाइटैनिक बर्फ की चट्टान से टकरा कर ओझल हो गया।
इस हादसे में डेढ़ हजार से अधिक लोग मारे गए। करीब 111 साल बाद इस टाइटैनिक के मलबे को पास से देखने का सपना संजोकर सबमरीन पनडुब्बी के द्वारा समुंद्र में उतरे 5 उद्योगपति सागर की गहराईयों में ही समा गए। इस हृदय विदारक हादसे को टाइटैनिक पार्ट-2 का नाम दिया गया है।
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टाइटन पनडुब्बी ने 18 जून की शाम करीब 5:30 बजे (भारतीय समयानुसार) कनाडा के न्यूफाउंडलैंड से यात्रा शुरू की थी, जिसे अटलांटिक महासागर में छोड़ा गया था। ये 1:45 घंटे बाद लापता हो गई थी। पनडुब्बी में पायलट समेत 5 टूरिस्ट शामिल थे। 4 दिन तक सबमरीन को ढूंढने की कोशिश की गई, जिसके बाद 23 जून को टाइटैनिक जहाज के मलबे के 1600 फीट दूर इसका मलबा मिला। अनुमान है कि पनडुब्बी में विस्फोट हुआ था। टाइटैनिक जहाज का मलबा अटलांटिक ओशन में मौजूद है। ये कनाडा के न्यूफाउंडलैंड के सेंट जोन्स से 700 किलोमीटर दूर है।
मलबा महासागर में 3800 मीटर की गहराई में है। पनडुब्बी का ये सफर भी कनाडा के न्यूफाउंडलैंड से ही शुरू होता है। ये 2 घंटे में मलबे के पास पहुंच जाती है। अमेरिकी नेवी के एक अफसर के मुताबिक, टाइटन पनडुब्बी की आखिरी लोकेशन टाइटैनिक जहाज के पास से ही रिकॉर्ड की गई थी। लापता होने के कुछ देर बाद रडार पर विस्फोट से जुडेÞ कुछ सिग्नल भी मिले थे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह हादसा विस्फोट की वजह से हो सकता है। पनडुब्बी के मलबे में लैंडिंग फ्रेम, रियर कवर सहित 5 हिस्से बरामद किए गए हैं। कोस्ट गार्ड ने बताया कि पनडुब्बी का काफी सारा मलबा अभी टाइटैनिक जहाज के पास है।
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कार्बन फाइबर से तैयार की गई थी सबमरीन
पनडुब्बी ओशन गेट कंपनी की टाइटन सबमर्सिबल है। इस पनडुब्बी की बनावट कार्बन-फाइबर से तैयार की गई थी। इसका साइज एक ट्रक के बराबर यानि 22 फीट लंबी और 9.2 फीट चौड़ा था।
ये सबमरीन समुद्र में रिसर्च और सर्वे के भी काम आती है। इस सबमरीन को पानी में उतारने और आॅपरेट करने के लिए पोलर प्रिंस वेसल का इस्तेमाल किया जाता है। बताते हैं कि सबमरीन के सामने की तरफ पारदर्शी खिड़की लगी थी, जिससे लोग बाहर का नजारा देख सकते थे। इसमें एक पायलट के अलावा 4 और लोग बैठ सकते थे। 17 साल से ऊपर के लोग इसका टिकट ले सकते थे। एक टिकट की कीमत लगभग दो करोड़ रुपये थी।
2010 में शुरू हुई थी टाइटैनिक देखने की रेस
टाइटैनिक का मलबा अटलांटिक सागर में लगभग चार हजार मीटर नीचे है। इसकी खोज सितंबर 1985 में यूएस नेवी के अफसर रॉबर्ट बलार्ड और उनकी टीम ने की थी। उसके बाद वैज्ञानिकों और एक्सप्लोरर्स ने रिसर्च के मकसद से कई बार दौरा किया। फिर 2010 के दशक में नई रेस शुरू हुई, मलबे तक पहुंचने और मलबे का दीदार करने की। कुछ कंपनियों ने टाइटैनिक टूरिज्म की शुरूआत की। ओशनगेट उन्हीं में से एक है, उसके पास टाइटन जैसी कुछ और पनडुब्बियां भी हैं। एक बार में टाइटैनिक तक पहुंचकर वापस बाहर आने में टाइटन को लगभग आठ घंटे लगते हैें। इसमें एक बार में 96 घंटों तक चलने लायक आॅक्सीजन भरा जा सकता हैं। टाइटन को बाहर से पोलर प्रिंस नाम के जहाज से सपोर्ट मिलता है, लेकिन 18 जून को डुबकी लगाने के लगभग दो घंटे बाद ही पनडुब्बी का संपर्क टूट गया।
50 वर्ष पूर्व भी हुआ था ऐसा हादसा
ऐसा पहली बार नहीं है जब समुद्र के अंदर इस तरह लोग अपनी जान पर खेले हों। करीब 50 साल पहले दो ब्रिटिश सैनिकों को कुछ इसी तरह पानी के अंदर तीन दिन तक छह फीट चौड़ी एक स्टील बॉल के अंदर गुजारने पड़े थे। ये घटना आयरलैंड से करीब 150 मील दूर हुई थी। जब इन लोगों को बचाया गया, उस वक़्त ये पनडुब्बी समुद्र में 1600 फीट नीचे थी और उसमें केवल 12 मिनट का आॅक्सीजन बचा था। ये कहानी पाइसीस की है। 29 अगस्त 1973 को रॉयल नेवी के कर्मचारी रोजर चैपमैन (28) और इंजीनियर रोजर मैलिनसन एक हादसे के बाद अटलांटिक महासागर में काफी गहराई में चले गए थे, उन्हें बचाने के लिए 76 घंटों का बचाव अभियान चलाया गया। राहत की बात ये रही कि इस दौरान दोनों नौसेनिकों कोई खास चोट नहीं आई थी। 1 सितंबर, 1973 को दोनों को बाहर निकाल लिया गया।
पनडुब्बी में ये लोग सवार थे
58 वर्षीय ब्रिटिश उद्योगपति हामिश हार्डिंग:
ये प्राइवेट जेट बेचने वाली कंपनी एक्शन एविएशन के मुखिया थे। अंटार्कटिक लग्जरी टूरिस्ट कंपनी वाइट डेजर्ट के साथ भी काम किया। इस कंपनी ने अंटार्कटिका के लिए पहली जेट सर्विस शुरू की थी। हार्डिंग ने नामीबिया से चीतों को लाने में भारत सरकार की मदद की थी, वो साउथ पोल की कई यात्राएं कर चुके हैं। 2022 में जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजन कंपनी के साथ अंतरिक्ष की यात्रा पर भी गए थे, वो दुनिया की सबसे गहरी जगह प्रशांत महासागर में स्थित मेरियाना ट्रेंच में भी उतर चुके थे।
पाकिस्तानी मूल के बाप-बेटे:
शहजादा दाऊद और सुलेमान दाऊद: 48 वर्षीय शहजादा दाऊद केमिकल-टू-एनर्जी कंपनी एंग्रो कॉपोर्रेशन के वाइस-प्रेसिडेंट थे। उनकी कंपनी खाद और पेट्रो-केमिकल उत्पाद बनाती है। शहजादा ब्रिटेन के किंग चार्ल्स की चैरिटी प्रिंस ट्रस्ट इंटरनैशनल के बोर्ड मेंबर भी थे। उनके बेटे सुलेमान दाऊद भी पिता के साथ टाइटैनिक का मलबा देखने गए थे।
टाइटन आप्रेरट कंपनी के फाउंडर स्टॉकटन रश:
रश, टाइटन को आॅपरेट करने वाली कंपनी ओशनगेट के फाउंडर और सीईओ थे। 1981 में जेट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट से 19 की उम्र में लाइसेंस लिया था, वो उस वक्त दुनिया के सबसे युवा जेट ट्रांसपोर्ट पायलट बने थे। रश के पास प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री थी। 2022 में ओशनगेट के फाउंडर और सीईओ स्टॉकटन रश ने कहा था, मछली पकड़ने वाले जाल या किसी दुर्घटना की वजह से पनडुब्बी फंसी रह सकती है. लेकिन खतरा तो कार में बैठने पर भी होता है. तो क्या आप कार में बैठना छोड़ देंगे? स्टॉकटन रश, पनडुब्बी के पायलट भी थे। टाइटैनिक और रश के बीच एक संयोग और है। उनकी पत्नी वेंडी रश के पूर्वज उद्योगपति इसिडॉर स्ट्रॉस और उनकी पत्नी आइडा स्ट्रॉस टाइटैनिक के यात्री थे।
फ्रांसीसी खोजी पॉल आनरी नार्जियोले:
77 साल के पॉल को मिस्टर टाइटैनिक के नाम से जाना जाता था। वो फे्रंच नेवी में थे। 1987 में पहली बार टाइटैनिक का मलबा देखने समंदर में उतरे थे। उससे दो बरस पहले ही रॉबर्ट बलार्ड ने मलबे की तलाश पूरी की थी, तब से अब तक वो 35 बार इस मलबे तक की यात्रा कर चुके थे।
अगर कार्बन फाइबर बनाए जाने के दौरान उसमें आंतरिक दोष होते हैं तो उससे नुकसान हो जाता है। कार्बन फाइबर और टाइटेनियम को जोड़ने वाले हिस्सों की काफी गहनता से जांच किए जाने की जरूरत होती है। पनडुब्बी में तेजी से इप्लोजन यानी अंदर की ओर संकुचन होने की वजह से घटनाक्रम का पता लगाना काफी मुश्किल होगा।
-प्रोफेसर रोडेरिक ए स्मिथ,
इंपीरियल कॉलेज लंदन।
अब तक जो कुछ पता चला है, वह विनाशकारी विस्फोट की बात से मेल खाता है।
– रियर एडमिरल जॉन मॉगर।