हर शै में नूर आ गया सतगुर का अलौकिक नूर जब रूहों पर बरसता है तो उन पर सरूर छा जाता है। रूहें फिर झूमती हैँ। नाचती हैं, गाती हैं। उनकी खुशी संभाले नहीं संभलती। ऐसी नूरानी झलक से रूह का रोम-रोम गदगद हो जाता है। वो नूर, वो अमृत का झरना जब मिल जाता है तो रूह उस पर कुर्बान हो जाती है।
एक जान तो क्या सौ जाने भी कुर्बान हो जाती हैं उस अलौकिक नूर के नजारे पर। ऐसा प्यार, ऐसी कशिश होती है कि उसके सामने सब कुछ फीका पड़ जाता है। सतगुर के नूर-नूरानी दर्श-दीदार से रूह नशेया जाती है। उसकी खुमारी ऐसी परवान चढ़ती है उसे किसी चीज की परवाह नहीं रहती। उसके लिए सिर्फ और सिर्फ सतगुर ही सब कुछ होता है। सतगुर का प्यार ही उसके सिर चढ़ कर बोलता है। उसके लिए फिर पूरी दुनिया ही एक तरफ और उसका सतगुर एक तरफ।
ऐसे ही अलौकिक प्यार की बानगी पिछले दिनों देखने को मिली जब पूज्य गुरु संत डॉ. एम एस जी बरनावा आश्रम में पधारे। पूज्य गुरु जी के दर्श-दीदार से गदगद साध-संगत का सैलाब उमड़-उमड़ कर आया। साध-संगत का यह सैलाब देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए किसी रोमांच से कम न था। अपने सतगुर के प्रति ऐसा प्यार, जज्बा, हौसला दिल को छू जाने वाला है। रूहानी प्यार से भरे ऐसे नजारे देखने को मिले जो एक दिलकश यादगार बन गए।
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संस्कृतियां सजीव हो उठी:-
हर समाज की, देश की अपनी एक संस्कृति होती है जो उसकी अनूठी पहचान को संजो कर रखती है। अपनी संस्कृति-पर हर किसी को गर्व होता है। यही कारण है कि संस्कृति के वजूद को कभी मिटने नहीं दिया जाता। पूज्य गुरु जी को देश की गौरवशाली संस्कृतियों का एक महान संरक्षक का दर्जा हासिल है। क्योंकि समय-समय पर पूज्य गुरु जी अपने रहमो कर्म से संस्कृति को सहजने में प्रयासरत रहते हैं। इस बार भी पूज्य गुरु जी के पावन सानिध्य में देश की लगभग हर संस्कृति को रूहानी प्यार का बल मिला जिससे उनमें निखार आ गया।
क्योंकि पूज्य गुरु जी आनलाईन स्ट्रीम के माध्यम से हर राज्य में साध-संगत व बुद्धिजीवियों से रू-ब-रू हुए और उनको अपने पावन दर्शनों व वचनों से मालामाल किया। पूज्य गुरु जी का जहां भी वर्चुअल आगमन था, स्थानीय साध-संगत व लोक कलाकारों के द्वारा वहां की सांस्कृतिक झलक प्रस्तुत की गई जिससे लोक संस्कृति में एक नईजान आ गई। अलौकिक नूर पा कर हर संस्कृति चमक उठी। लाखों लोगों ने हर रोज इन विभिन्न संस्कृतियों के विहंगम नजारों को देखा। अनेकता में एकता का भाव दिखाती इन रंग-रंगीली संस्कृतियों की रोचकता ने हर किसी का मन मोह लिया। पूज्य गुरु जी के वर्चुअल आगमन पर हर जगह शाही आयोजन किया गया।
स्थानीय साध-संगत का उत्साह देखते ही बन रहा था। अपने-अपने अंदाज में हर कोई शाही स्वागत में मगबूल था। हर संस्कृति के लिए यह शाही स्वागत बहुत बड़े उत्सव का रूप ले रहा था। ऐसा उत्सव जिसमें विचर रही हर संस्कृति का जोश हिलोरे खा रहा था। इनकी रंगीली झलक को देख हर दर्शक मतवाला हो गया। घर बैठै दर्शक इन नजारों से भाव-विभोर हो रहे थे। कहीं पंजाब की संस्कृति अपनी छाप छोड़ रही थी। जिसमें मुख्य रूप से गिद्धा-भंगड़ा डालते कलाकारों की टोलियां और ढोल पर नाचते क्या युवा, क्या बुजुर्ग मस्त लग रहे थे। चरखा चलाती माताएं हाथों से पंखा झुलाती व चादरों पर नक्काशी करती माता-बहनों की टोलियां अद्भुत पंजाबी संस्कृति को प्रस्तुत कर रही थी।
क्या पंजाबी, क्या हरियाणवी, क्या राजस्थानी, गुजराती, मराठी अनेकों संस्कृतियों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। हर संस्कृति एक-से बढ़कर एक नजारा पेश कर रही थी। मंत्रमुग्ध कर देने वाली इन झलकियों पर पूज्य गुरु जी अपना बेशुमार प्यार लुटाते नजर आए। पूज्य गुरु जी एक-एक सांस्कृतिक झलक को निहारते और उन पर अपने वचन फरमाते। कोई पुरातन झलकी अगर कैमरे की नजर से निकल भी जाती तो पूज्य गुरु जी वहीं कैमरे को रुकवा लेते। कोई माता-बहन चरखा कैसे कात रही है। उसका तंद मोटा है या पतला रखा जा रहा है।
इसका भी बखूबी ध्यान रखा जा रहा था। सरसा, साईड एक प्रोग्राम था जिसमें माता-बहनें चारपाई बुन रही थी, स्वैटर बना रही थी और चादरों पर कसीदाकारी की जा रही थी। पूज्य गुरु जी ने बड़े गौर से हर चीज को देखा और चारपाई बारे अपने अनुभव सांझे किए। पूज्य पिता जी ने बताया कि आजकल कहां ये आता है! चारपाई बुनना भी अपने आप में एक कला है। हमारे जामने में हम इसे सिर्फ बुनते ही नहीं थे बल्कि इसे ठोका भी जाता है। इसको एक सुन्दर डिजाइन दिया जाता था। कोई किला बनाता और कोई महल नुमा डिजाइन बनाकर अपनी कला दिखाता। एक चादर पर फूल-बूटियां बनाती बहनों को संबोधित करते फरमाया कि ये भी अपनी पुरातन संस्कृति है। पुराने समय में माता-बहनें फुलकारियों पर कसीदाकारी करती जिसे बाग बनाना भी कहा जाता।
हमारी बेटियां बाग बना रही हैं। फुलकारी पर कढ़ाई कर रही हैं। कोई स्वैटर बुन रही है। पूज्य गुरु जी ने एक बात सुनाकर सबको हंसाया कि एक बार एक माता-बहन अपने पति से कहने लगी कि चलो मैच देखकर आते हैं। पति टाल-मटोले करने लगा कि क्यों फालतु का टाईम खराब करना है। इस पर उसकी पत्नी कहने लगी कि टाईम वेस्ट क्यों, जब हम पिछली बार मैच देखने गए थे तो मैं आपका गला लेकर आई थी। अर्थात् अपने पति का गला बुन कर लाई थी। पूज्य पिता जी के ऐसे हसीन वचनों से माहौल और भी रंगीन हो गया।
वो अटेरना ही था:-
शुभ आगमन पर हर संस्कृति की प्रस्तुति मनमोहक थी, नूरो-नूर थी। पंजाब में 30 अक्तूबर को राजगढ़-सलाबतपुरा आश्रम में पंजाबी विरासत का प्रस्तुतिकरण था। इसमें पुरातन कला की एक पेशकश बेहद खास थी जिसे पूज्य गुरु जी ने बड़े इत्मीनान के साथ निहारा। इस खास पेशकश का नाम था अटेरना जो एक हस्त कला का सुन्दर नमूना था। इसकी थोड़ी-सी झलक जब कैमरे में दिखी तो पूज्य गुरु जी का ध्यान यकायक इस कला की ओर गया। कैमरामैन को फिर से इसे दिखाने को कहा गया। देखा तो जाना वाकई यह बड़ा दिलकश था।
दो बुजुर्ग माताएं महीन सूतली को हाथों से एक लकड़ी के बने यंत्र से मजबूती दे रही थी। वो बड़ी मस्ती में इस कला को दर्शा रही थी। पूज्य गुरु जी ने बड़ी खुशी जाहिर की और फरमाया कि ये हमारी पुरातन कला है। आज कल कहां मिलती है और ना ही कोई जानता है। ऐसी चीजों को हमें सहेज कर रखना चाहिए। फिर पिता जी ने बताया कि इसे अटेरना कहते हैं। अलग-अलग जगह और भाषा के अनुसार और भी नाम हो सकते हैं। लेकिन ज्यादातर इसे अटेरना कहा जाता है। ऐसे ही राजस्थान में एक प्रोग्राम के दौरान एक बुजुर्ग भाई सूतली को अटेरने पर लपेट रहा था। पूज्य गुरु जी ने उसे भी खूब सराहा। इस प्रकार ऐसी पुरातन कलाओं पर पूज्य गुरु जी ने बड़ा ध्यान दिया और उन्हें सहेज कर रखने के वचन भी फरमाए।
कुछ खास था फिजा में उनकी:-
इन दिनों फिजाओं में पूरा रंग घुला हुआ था। क्या करीब और क्या हजारों मीलों की दूरी में भी फिजाएं नूरानी रंग-ओ-बहार की मद में थी। प्रत्येक राज्य के जिस भी कस्बे या शहर का प्रोग्राम होता उनकी धरोहर भी अपनी छटा से मस्त बना रही थी। वहां के किले, महल, मकबरे, तीर्थ-स्थान या कोई पकवान, जिसके लिए वो प्रसिद्ध हो उसे दिखाकर उसका इतिहास भी जीवंत हो रहा था। इसके साथ ही कभी उस धरा पर पूज्य गुरु जी अपने जीवोद्धार रूहानी यात्रा के दौरान गए हों, वो चिर-स्थाई यादें भी संजीव हो उठती जिससे पूरी फिजा रूहानी आन्नद से ताजातरीन हो उठती।
उन अविस्मरणीय रूहानी पलों को याद कर स्वयं पूज्य गुरु जी भी भाव-विभोर हो जाते और दृष्टांत को सुनाकर हर किसी को खुशियों से भर देते। जैसे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में गंगोह कस्बे में पूज्य गुरु जी ने कुछ वर्ष पहले अपना सत्संग किया था। अब आनलाईन माध्यम से जब वहां की संगत से जुडेÞ तो एक मुसलमान युवा ने उन पलों को पूज्य गुरु जी से खूब सांझा किया। कई साल पहले की यादें ताजा करके पूज्य गुरु जी ने भी उन पर अपना भरपूर प्यार लुटाया। इसी प्रकार पंजाब के जलालाबाद वालों की तो बल्ले-बल्ले हो गई। क्योंकि अक्तूबर 2002 में पूज्य गुरु जी ने वहां सत्संग फरमाया और हाथी पर सवारी करके उन पलों को ऐतिहासिक बना दिया था।
आज फिर 21 अक्तूबर को 2022 वहां पर सत्संग का प्रोग्राम रखा गया था। वो बीस साल पहले की ऐतिहासिक यादें आज सुनहरी छटा बिखेर रही थीं। पूज्य गुरु जी के साथ सुनहरी यादें ताजा करके संगत गद्गद् हो गई। ठीक 20 साल बाद पूज्य गुरु जी को अपने बीच पाकर नजारों से भर गए। वो धरा, वो फिजा, हर तन-मन नूरो-नूर हो गया। एक और किस्सा जोड़ते हुए पूज्य गुरु जी ने बताया कि आज जिस स्टेज पर हम बैठे हैं ये भी वो हाथी वाली ही है और आज ही सरसा से आई है। क्योंकि यह चलने-फिरने वाली स्टेज है और सरसा में अक्सर इसी पर विराजमान होकर पूज्य गुरु जी संगत को करीब से दर्श-दीदार दिया करते हैं। इस बात को सुनकर एक नई खुशी अर्जित हुई। जलालाबाद के वो ऐतिहासिक जलवे मशाल की तरह जगमग हो उठे। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद साईड भी देखने को मिला। उधर असफाबाद में लाईव प्रोग्राम था। वहां पर स्वागत में साध-संगत ने पूरे रंग बांध रखे थे।
वहां की संस्कृति को शानदार तरीके से पेश किया गया। खान-पान से लेकर पुरातन चीजों को बड़े सलीके से दिखाया गया। एक-एक करके वहां की ऐतिहासिक इमारतें, धरोहरें, बाजारों की रौणक व साध-संगत के उमड़ते हुए जन समूह को दिखाया जा रहा था। वहीं हस्तकला का एक सुन्दर नमूना भी प्रस्तुत किया गया। इसके जरिये लकड़ी के स्ट्रक्चर पर जैसे खेस-दरियों को बुनने के लिए इस्तेमाल होने वाले सूतली-धागे को बनता हुआ दिखाया जा रहा था। शायद ये उधर की दस्तकारी-कारीगरी होगी जिसको मैनुअल तरीके से किया जा रहा था। यह एक सुन्दर नजारा था जिसे देख पूज्य गुरु जी ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और उन सबकी बहुत सराहना की। इसी के साथ फिजाओं में रंग घोलती एक पुरानी याद भी पूज्य गुरु जी के ख्याल में आ गई, जिसे सांझा करके माहौल को और खुशनुमा बना दिया। पूज्य गुरु जी ने बताया कि कुछ साल पहले उधर सत्संग फरमाने गए थे। वहां पर ठहरने इत्यादि का भी प्रबंध था।
इसी दौरान वहां पर एक खेत में बनी कच्ची झोंपड़ी बड़ी आकर्षक लग रही थी। पूज्य गुरु जी सीधा उस ओर चले गए। झोंपड़ी में एक दम्पति था जो अपनी मेहनत मजदुरी करके जीवन-यापन कर रहा था। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि बेशक वो औरों की नजर में गरीब होंगे लेकिन हमारी नजर में वे परमात्मा के भक्त थे और अपनी हक-हलाल की कमाई करके खाने वाले थे। गुरु जी उनके पास गए और उनका हाल-चाल जाना व झोंपड़ी के बारे भी जानकारी ली जो बड़े अच्छे ढंग से बनाई गई थी। पूज्य गुरु जी की इच्छा थी कि ऐसी सुन्दर झोंपड़ी, सिरसा में भी बनाई जाए और इसी व्यक्ति से बनवाई जाए, क्योंकि उसकी अपनी ही कारीगरी का कमाल था।
पूज्य गुरु जी ने उससे चर्चा की और सरसा दरबार में भी ऐसी झोंपड़ी बनाने को उससे बोला गया तो वो भाई सहर्ष तैयार हो गया। फिर उसे सरसा लेकर आए और पहले वाले तेरावास के बाहर उससे उसी डिजाईन की सुन्दर झोंपड़ी बनवाई थी। पिता जी ने बताया कि उनसे मिलकर हमें बड़ी खुशी हुई थी। और जब सतगुर किसी बन्दे के लिए इतनी बड़ी बात कह दे तो उस जैसा नसीबों वाला होना अति दुर्लभ है। पूज्य गुरु जी ने जिम्मेवारों से उनके बारे भी पूछा कि आजकल वो कैसे हैं और उनके पूरे पते बारे भी पूछा कि वो किस गांव से थे। इसी के साथ पूज्य गुरु जी ने एक निशानी और भी बताई उधर सत्संग में जोरदार अंधेरी भी आई थी, जिससे सारे छायावान एक जगह इक्ट्ठे हो गए थे।
इस पर एक भाई करतार सिंह ने बताया कि वो सरसागंज के नजदीक कंचनपुरा नामक गांव के थे। पूज्य गुरु जी ने उनको अपने आशीर्वाद से नवाजा और वो पूरा दृष्टांत दोहराकर उन रूहों को अपने रूहानी प्यार से मालामाल कर दिया। बेशक वो अब सामने नहीं थे, मगर सतगुर जिसको याद कर ले और उनकी नेकदिली को अपनी तवज्जों से नवाजे तो वो बड़े किस्मत के धनी हो जाते हैं।
रिझाने को तुझे हैं ये बहाने अपने:-
इस जश्न के टशन में एक बात बड़ी स्पष्ट थी कि अपने सतगुर को रिझाने के लिए हर कोई बड़े चाव में था। पूरे शगल व दमखम के साथ सब लगे हुए थे। कोई नहीं चाहता था कि मैं कहीं उन्नीस ना रह जाऊं। हर कोई जोड़-यत्न के साथ वो अपने सतगुर को खुश करने में था। और हुआ भी ऐसा ही, क्योंकि हर कोई इसमें बड़ी कामयाबी हासिल करता दिख रहा था। इस कामयाबी में पाक कला की भी बड़ी अहमियत थी। अपनी पाक कला के दमखम पर भी कईयों ने बड़ी खुशियां प्राप्त की। क्योंकि इस पूरे सीजन के दौरान खान-पान और पकवानों की महक ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
कहीं फ्रूट, कहीं केक और बूंदी-गुलदाने की महक ने मस्तो-मस्त कर रखा था। लड्डूओं और हलवे का तो कहना ही क्या। ये सबसे पहले अपनी हाजिरी लगवाने वाले रहे। लड्डूओं के थालों के थाल ऐसे सजे-सजाए होते जैसे केसरी रंग लिए वादियों की आभा चमक-दमक रही हो। ये भी एक सेहतभरी व ताजगीभरी संस्कृतियों की अनुपम छटा थी। हर किसी का अपना तौर-तरीका था। कोई मिठााईयों और फल-फ्रूट से अपने सतगुर को रिझा रहा था वहीं कोई सिर्फ चटनी की पेशकश कर इन खुशियों में शामिल हो रहा था। वाकई ये सब बड़ा गजब था, सौन्दर्य से भरपूर नजारा था। इसमें कुछ स्पैशल भी रहा जैसे :-
मराठी डिश:-
महाराष्ट्र में धनौरा-गढ़चिराली का प्रोग्राम था जिसमें वहां के स्थानीय व्यंजनों का वर्चुअल स्वाद भी बड़ा मजेदार रहा। वहां की संगत ने पूज्य गुरु जी को पूर्ण पूड़ी की पेशकश की तो पूज्य गुरु जी ने प्यार बख्शते हुए उनकी इस डिश को स्वीकार किया। अब वहां से आ तो नहीं सकती थी लेकिन इसका हल निकालते हुए पूज्य गुरु जी ने बताया कि महाराष्ट्र से कुछ लोग आए हैं और आज ही उनसे वही कुछ बनाने को कहेंगे जो आप लोग बोल रहे हो। अपनी फरमाईश को पूरा होते देख संगत खुशी से नाच उठी। उनकी मन की मुराद पूरी हो गई थी।
लेकिन अभी शायद इससे भी बड़ा कुछ जैसे रह गया था। उन्होंने अपने अंदाज में एक मराठी गाना गाया जिसकी अर्न्तात्मा में पूज्य गुरु जी को खाने का बुलावा शामिल था और पूज्य गुरु जी ने भी मराठी शब्दों के गूढ अर्थ को समझते देर ना लगाई और फरमाया कि अच्छा आप हमें बुला रहे हो कि अपने कपड़े इत्यादि गठड़ी बना कर हमारे पास आ जाओ। इतना सुनते ही उनके मन बल्लियां उछल पड़े। चेहरे चमक से खिल उठे। उन्होंने बताया कि हां, जी हम यही कह रहे हैं आप इधर आना, हम आपको पूर्ण पूडी, मिर्ची का ढेंचा, भाखरी व और भी बहुत कुछ खिलाएंगे और देखें, हम सब लगे भी हुए हैं। और यह तो एक बस ट्रैलर है पूरी फिल्म आपको आने के बाद ही दिखाएंगे और खिलाएंगे। उनकी सच्चे मन की पुकार फौरन ही परवान हुई और पूज्य गुरु जी ने भी बड़ा मान बखशते हुए फरमाया, पक्का आएंगे। याद रखना। भूलने का नहीं। हम जरूर आएंगे और तुम्हारा ये ट्रेलर देखेंगे और खाएंगे भी।
राजस्थान रो तड़कियो:-
राजस्थान का रंगीला कल्चर भी आसमानों को छू रहा था। राजस्थानी कलाकार की तो बात ही निराली रही जिसे पूज्य गुरु जी ने भी कई बार सराहा और कलाकारों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस प्रोग्राम के दौरान जन मानस के साथ राजस्थान की पहचान ‘ऊंट’ भी सज्ज-धज्ज कर अपनी गौरवमयी संस्कृति को पेश कर रहे थे जिसे खूब सराहा गया। ये भी अपने आप में बड़ा दिलचस्प था जो शायद ही किसी और प्रोग्राम में देखा गया हो। वहीं जब खान-पान की बात आई तो राजस्थानी पकवान भी बेमिसाल रहे। एक जगह प्रोग्राम था जिसमें माता-बहनें अपनी मनुहार से सतगुर को रिझा रही थी। उन्होंने गुहार लगाई पिता जी राजस्थान रो भोजन छको जी। आप जी के लिए मोठ, बाजरे की खिचड़ी, घी की कटोरी, कैर-सांगरी, खीर का चूरमो, बाजरो रो चूरमो, तड़कियो व चटनी लाए सां। वहीं भईयों की तरफ से भी राजस्थानी फ्रूट पेश किया गया जिसे मतीरा कहा जाता है। उन्होंने पूज्य गुरु जी को मतीरा भेंट किया। पूज्य गुरु जी उनकी इस भेंट पर अति खुश नजर आए और अपना प्यार लुटाया।
गुजराती रोटला:-
गुजरात की धरा ने भी खूब प्यार बटोरा। संगत ने वहां की खुशहाल संस्कृति को पूज्य गुरु जी के सुस्वागतम में पेश कर एक नजीर पेश की। गुजरात के जिस भी शहर में प्रोग्राम हुए वहीं जबरदस्त प्यार उमड़ कर आया। ये बात है गुजरात के कच्छ की। ये वो क्षेत्र है जहां पर सन् 2001 में भूकम्प आया था और डेरा सच्चा सौदा की ओर से मानवता की मिसाल पेश की गई थी। पूज्य गुरु जी स्वयं कई दिन वहां अपने 4-5 हजार सेवादारों के साथ रहे और एक गांव गोद लेकर बसाया गया जिसे प्रतापगढ़ का नाम दिया गया था। इस प्रोग्राम के दौरान वो पुराना किस्सा जगजाहिर हुआ जो पाक कला से सम्बन्धित और पूज्य गुरु जी से जुड़ा हुआ था। वो स्थानीय डिश थी ‘रोटला’ जो वहां बनाया और परोसा जाता है।
भूकम्प के दौरान पूज्य गुरु जी लोगों को घर-घर जाकर ढांढस दे रहे थे, क्योंकि बड़ा खौफनाक मंजर था और लोगों में भयानक डर बैठ गया था। उसी दौरान जब एक घर में पूज्य गुरु जी गए तो एक महिला थी जिसका घर तबाह हो गया था और दो जवान बेटे भी दफन हो गए थे। वो बहुत डरी हुई थी। पूज्य गुरु जी उसके पास गए। उसको पूरा दिलासा दिया और समझाया कि हम आपकी मदद को आए हैं। पूज्य गुरु जी की बातों से उसका डर निकला उसमें एक नया हौसला आया। फिर उसने पूज्य गुरु जी को अपने पास बिठाया और सेवा में रोटला बनाकर परोसा। पूज्य गुरु जी ने भी उस माता के हाथों से बने रोटले खा कर उसकी आवभगत को कबूल किया।
अब 12 नवम्बर को आयोजित प्रोग्राम के दौरान वो माता पूज्य गुरु जी के दर्शन को पहुंची हुई थी। पूज्य गुरु जी ने वो पूरा दृष्टांत दोहराते हुए उस माता को अपना भरपूर रूहानी प्यार दिया। फिर उसने बताया कि जो दो बेटे भुकम्प में खत्म हो गए थे वो आप जी के वचनों से अब दो पोतों के रूप में फिर मेरे घर आ गए हैं। क्योंकि एक बेटा जो सही सलामत था उसके घर वो पैदा हुए थे। वो पूरा परिवार पूज्य गुरु जी के सामने स्क्रीन पर दिख रहा था और इस करिश्मे भरे कौतुक का हर कोई गवाह बन रहा था। फिर वहां के एक जिम्मेवार ने बताया कि पिता जी जो प्रतापगढ़ उस समय गरीब था और आटा भी ढूंढने से नहीं मिलता था आज आप जी की कृपा से खुशहाल है। हर घर मालामाल है।
मझौली के वो रसगुल्ले:-
हर मिठाई का अपना नाम है, पहचान है और जायका है। इन्हीं में से रसगुल्ले भी एक बड़ा नाम रखते हैं। शायद ही कोई ऐसा फंक्शन या पार्टी हो जहां इनकी मौजूदगी न मिले। रसगुल्ले तो सबने बहुत देखे-जाने हैं। मगर जिन रसगुल्लों का यहां जिक्र हो रहा है, उनका तो एक रिकार्ड ही बन गया। ये है मध्यप्रदेश के मझौली क्षेत्र के रसगुल्ले। मझौली का 6 नवम्बर को जो प्रोग्राम था उसमें साध-संगत के द्वारा बहुत आकर्षक ढंग से स्वागत किया गया और जब खाने-पीने की आइटमें पेश की जा रही थी तो सेवादारों ने बताया कि ये पांच रसगुल्ले हैं और एक रसगुल्ला एक किलोग्राम का है तो बड़ा अश्चर्य हुआ। ये सुनते ही पूज्य गुरु जी ने भी बड़े हैरानी से पूछा-
क्या ये एक-एक किलोग्राम के हैं? सेवादारों ने बताया कि हां जी पिता जी, ये इधर बहुत मशहूर हैं। मझौली के पास ही कंटगी है और ये कंटगी के मशहूर रसगुल्ले हैं। पूज्य गुरु जी ने खुशियां लुटाने के बहाने बात को आगे बढ़ाया कि हमें पहले तो कभी आपने बताया नहीं। हम इधर कई बार आए हैं। इधर वालों ने इतने बड़े रसगुल्ले देखे नहीं। किसी को क्या पता था कि आगे क्या होने वाला है। ये रसगुल्ले कहां तक जाने वाले हैं।
क्योंकि पूज्य गुरु जी ने अगले ही पल फरमाया कि-चलो आप में से कोई सेवादार इधर आए तो लेते आना। पहले कभी नहीं बताया, चलो देर आए, दुरुस्त आए। इतना सुनते ही साध-संगत के वारे-न्यारे हो गए। उनका ये प्रोग्राम उन रसगुल्लों की वजह से ऐतिहासिक हो गया। पूज्य गुरु जी का ऐसा प्यार बरसाना उनकी जिंदगी का ये बहुत बड़े सपने का सच होना है। वो साधारण से रसगुल्ले आज कितनी उंचाई तक पहुंच गए और वो सेवादार सबब वाले बन गए। ये एक ही ऐसा प्रोग्राम था जिसमें भेंट में रखे रसगुल्ले स्वयं मुर्शिद ने मंगवाए हों। ये पल अविस्मरणीय हो गए, लाजवाब हो गए।