परोपकार व त्याग की मिसाल थे पूजनीय बापू जी 19वें परमार्थी दिवस (5 अक्तूबर) पर विशेष
पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के आदरणीय जन्मदाता पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी इन्सानियत की चरम सीमा को छूता हुआ परमपिता परमेश्वर का वरदान थे। सर्वगुण सम्पन्न पूजनीय बापू जी पर्वतों से ऊंचे व समुंद्रों की गहराइयों की भांति एक महान व्यक्तित्व थे।
वे परमपिता परमात्मा के सच्चे भक्त, इन्सानियत व त्याग की प्रतिमूर्ति, अति वंदनीय स्वरूप थे। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी वो महापुरुष हुए हैं, जिनकी मिसाल दुनिया में और कहीं भी नहीं है। वे अति नेक दिल, मालिक के सच्चे भक्त थे। समाज में हर किसी के दिल अजीज थे। वे नि:संदेह त्याग की प्रतिमूर्ति थे। आपजी बहुत ही ऊंचे पवित्र आदर्शों के स्वामी थे।
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जन्म व माता-पिता:-
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी का जन्म राजस्थान प्रांत के जिला श्री गंगानगर के अति पवित्र गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ में वर्ष 1929 के देशी महीने मग्घर में हुआ था। इसलिए पूजनीय माता-पिता, बड़े बुजुर्गों ने आपजी का नाम मग्घर सिंह रखा। आपजी के पूजनीय जन्मदाता का नाम चित्ता सिंह जी व पूजनीय माता जी का नाम संत कौर जी था। क्योंकि आपजी के ताया संता सिंह जी व पूजनीय माता चंद कौर जी ने आपजी को बचपन में ही गोद ले लिया था, इसलिए आपजी उन्हें ही अपने माता-पिता, जन्मदाता मानते थे।
आदर्श जीवन शैली:-
पूजनीय बापू जी का समस्त जीवन सद्भावनाओं से लबरेज था। आपजी के स्वच्छ पाक-पवित्र जीवन के बारे में यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उनका समस्त जीवन ही ऊंचे संस्कारों की पाठशाला था। विशाल हृदय पूजनीय बापू जी दूर-दराज तक किसी पहचान के मोहताज नहीं थे। उच्च घराने के मालिक व गांव के नम्बरदार होते हुए भी उन्होंने अपने अंदर कभी अहंकार की भावना पनपने नहीं दी थी। सद्भावनाओं से भरपूर अति सादा जीवन और उच्च विचारों के धनी थे। वे अति जरूरतमंद गरीबों के प्रति बेइंतहा हमदर्दी रखते थे।
आपजी हर किसी से खुले दिल से मिलते और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। जो भी कोई दुखिया, जरूरतमंद उनके दरवाजे पर चलकर आता, कभी खाली नहीं लौटा। दया, रहम, हमदर्दी के पुंज पूजनीय बापू जी को जब भी पता चलता कि फलां घर को मदद की जरूरत है, तो वे बिना कहे खुद उनके घर उनकी जरूरतानुसार मदद लेकर पहुंच भी जाते। गांव में ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे कि पूजनीय बापू जी ने बिना कहे ही कई गरीब परिवारों की बेटियों की शादी-विवाह के समय अपना आर्थिक सहयोग देकर उनके उस पवित्र कारज को सम्पन्न करवाया। इसके अतिरिक्त आपजी ने भूखे-प्यासे परिवारों को उनके घर में राशन सामग्री दी तथा उनके भूखे-प्यासे पशुओं के लिए नीरा-चारा दिया और वह भी बिना किसी कीमत के।
पूजनीय बापू जी गांव के बहुत बड़े लैंडलॉर्ड (जमींदार) थे। खेत में बहाईदार या उनके नौकर-चाकर आदि जो भी होते, पूजनीय बापूजी उनको कभी नौकर-चाकर नहीं समझते थे, बल्कि उन्हें अपने परिवार के सदस्य, अपनी औलाद की तरह ही मानते थे। कभी भी उनके साथ भेदभाव नहीं किया था और न ही उन्हें जरूरत का सामान सामग्री ले जाने से कभी मना किया, बल्कि फसल आने पर खुद ही उन्हें कह देते कि ‘जितनी जरूरत है ले जाओ, हम तो अपना काम चला लेंगे।’ पूजनीय बापू जी के ऐसे आदर्श, बेमिसाल जीवन से हर इन्सान नत्मस्तक हो जाता।
आप जी अपने गांव में हर जरूरतमंद की एक आशा थे और ऐसी आशा कि जहां पर आशा से भी कहीं अधिक मिलने की संभावना होती है। जब तक लेने वाले की झोली भर न जाती, आप जी अपना हाथ पीछे न हटाते। पूजनीय बापू जी जैसा दरियादिल, नेक इन्सान, उच्च कोटि का भक्त व आदर्श पुरुष और इन अलौकिक गुणों से भरपूर इन्सान आज के युग में मिलना असंभव है।
अद्वितीय पिता प्यार:-
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी एक अति पाक-पवित्र आत्मा और बहुत ऊंचे संस्कारों के धनी थे। आपजी परमपिता परमात्मा के एक सच्चे व उच्च कोटि के भक्त थे। यही सब कारण हो सकते हैं जिसके फलस्वरूप स्वयं ईश्वरीय स्वरूप पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने आपजी के घर आपकी संतान के रूप में अवतार धारण किया।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपने पूजनीय माता-पिता जी की इकलौती संतान हैं। आपजी ने पूजनीय पिता नम्बरदार मग्घर सिंह जी के घर अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से 15 अगस्त 1967 को गांव श्री गुरुसर मोडिया, जिला श्री गंगानगर (राजस्थान) में अवतार धारण किया। पूजनीय बापूजी के घर किसी भी दुनियावी वस्तु की कमी नहीं थी। इतने बड़े घराने में हर वस्तु भरपूर थी। विवाह को 18 वर्ष बीत रहे थे, कमी थी तो अपने वारिस की। संतान प्राप्ति की चिंता उन्हें हर समय सताए रहती।
गांव के आदरणीय संत-बाबा त्रिवैणी दास जी से आपका बहुत प्रेम था। जब भी आपजी बहुत ज्यादा उदास हो जाते तो अपने अंदर की सच्ची भावना उनके सामने प्रकट करते। संत-बाबा उन्हें बहुत धैर्य बंधाते और आश्वासन देते कि आप धैर्य रखें, आपके घर कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं, खुद ईश्वरीय स्वरूप आएगा। इस प्रकार संत-बाबा की दुआ व परमपिता परमात्मा की कृपा से पूजनीय बापू जी के घर उनके वारिस के रूप में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अवतार धारण किया। संत-बाबा ने पूजनीय बापू जी को यह भी कहा कि ये (पूज्य गुरु जी) आपके पास केवल 23 वर्ष तक ही रहेंगे, उसके बाद समाज व जीवोद्धार के अपने मकसद के लिए उन्हीं के पास चले जाएंगे जिन्होंने आपजी के पास इन्हें आपकी संतान के रूप में भेजा है। संत-बाबा ने यह भी कहा कि आपके बहुत ऊंचे भाग्य हैं जो आपजी के घर खुद परमेश्वर स्वरूप ने अवतार लिया है। इन्हें बहुत ही प्यार से रखना है।
पूजनीय बापू जी का अपने लाडले से बहुत अधिक प्यार था। आपजी अपने दिल के टुकड़े को हर समय अपनी आंखों के सामने रखते और कहीं दूर जाने पर उनके इंतजार में बिन पानी के मछली की तरह तड़प जाते। अपने लाडले को अपने हाथों से चूरी खिलाना, खेत में अपने साथ अपने कंधों पर बिठाकर घूमाने ले जाना, रिश्तेदारी आदि में जहां भी जाना अपने साथ ही लेकर जाना यानि आपजी हर समय अपने दुलारे को निहारते रहते। पूजनीय बापू जी को संत-बाबा की कही यह बात कि ये (पूज्य गुरु जी) सिर्फ 23 साल तक ही रहेंगे, पक्के तौर पर दिल में बस गई थी। पूजनीय बापू जी ने पूज्य गुरु जी की ईश्वरीय शक्ति को भली-भांति महसूस कर लिया था।
पूज्य गुरु जी 13-14 साल के हुए। दूर-दूर तक टूर्नामेंट भी खेल आते, लेकिन खेत जाना है तो पूजनीय बापू जी उन्हें अपने कंधों पर बैठा कर ही ले जाते। वास्तव में पूजनीय बापू जी, अपने लाडले को कोई तकलीफ नहीं देना चाहते थे, हालांकि पूज्य गुरु जी बार-बार कहते कि अब हम बड़े हो गए हैं, हमें कंधों पर बैठे शर्म आती है। परंतु नहीं, पूजनीय बापू जी कंधों पर ही बैठाकर ले जाते। कंधों पर बैठे पूज्य गुरु जी के पांव पूजनीय बापू जी के घुटनों तक पहुंच जाते। लोग बाप-बेटे के इस अद्वितीय प्यार भरे नजारे को देखते ही रह जाते। पिता-पुत्र के प्यार का यह अद्भुत दृÞश्य पूजनीय बापू जी की पहचान बन गई थी। जब भी कोई गांव में आकर नंबरदार के बारे में पूछता तो लोग पूजनीय बापू जी की यही पहचान बताते कि उनके एक हाथ में ऊंटनी की रस्सी होगी और कंधे पर उनका बेटा बैठा होगा तो जान लेना कि यही श्री गुरूसर मोडिया के नम्बरदार मग्घर सिंह जी हैं। वाकई ऐसा बेमिसाल प्यार पूजनीय बापू जी का अपने लाडले के प्रति था।
त्याग की प्रतिमूर्ति:-
एक बाप को अपने बेटे से हद से बढ़कर प्रेम हो, जो उसकी एक पल की भी जुदाई सहन न कर सके, जिसके अंदर उसकी जान, उसकी आत्मा उसके प्राण हों, जब उससे वही चीज मांग ली जाए तो सोचो, उसके दिल पर क्या गुजरेगी। ऐसा ही समय पूजनीय बापू जी पर भी आया, जो उनकी शायद परीक्षा की घड़ी ही कही जा सकती है। परंतु धन्य-धन्य कहें पूजनीय बापू जी को, जिन्होंने इस सख्त परीक्षा की घड़ी में अपना सब कुछ देने में जरा भी विलम्ब नहीं किया। पूज्य गुरु जी तब 23 वें वर्ष में थे।
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूजनीय बापू जी व पूजनीय माता जी से उनके अति लाडले इकलौते पुत्र (पूज्य गुरु जी) को डेरा सच्चा सौदा के लिए, इन्सानियत के लिए सौंपने का उन्हें वचन फरमाया। पूजनीय बापू जी को संत-बाबा त्रिवैणी दास जी की कही बात भली-भांति याद थी। पूजनीय बापू जी अब जान गए थे कि अपने लाडले से बिछुड़ने का समय आ गया है। पूजनीय माता-पिता जी ने अपने सतगुरु प्यारे, अपने मुर्शिदे-कामिल पूजनीय परमपिता जी के वचनों पर उसी पल बिना कोई हिचकिचाहट के हंसते-हंसते फूल चढ़ाए।
उन्होंने अपने पूजनीय सतगुरु प्यारे के वचन को सत्वचन कहते हुए अपने दिल के टुकड़े, अपने अत्यंत लाडले सुपुत्र को अपने सतगुरू जी को अर्पण कर दिया और जुबां से उफ तक नहीं निकली। बल्कि पूजनीय माता-पिता जी ने अपने सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल से यही विनती की, हे सतगुरु जी, हमारा सब कुछ भी ले लो, हमारी जमीन-जायदाद भी आपजी ले लो। सब आपजी का ही है, हमें तो बस यहां दरबार में एक कमरा दे दो ताकि यहां रहकर हम सुमिरन सेवा करते रहेंगे। आपजी के दर्शन कर लिया करेंगे और इन्हें (पूज्य गुरु जी को) भी देख लिया करेंगे। पूजनीय परमपिता जी ने वचन किए, ‘बेटा हम आपसे कुछ लेंगे नहीं, दो जहानों की दौलत इनकी झोली में डाल दी।’
यह समय था 23 सितंबर 1990 से एक दिन पहले, यानि 22 सितंबर की यह बात है। पूजनीय परमपिता जी ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को 23 सितंबर 1990 को डेरा सच्चा सौदा की पावन गुरगद्दी पर विराजमान कर अपना उत्तराधिकारी बनाया। वाकई पूजनीय माता-पिता जी के त्याग की यह एक अद्वितीय मिसाल है। उनके इस महान त्याग का कोई मोल नहीं चुकाया जा सकता। यह अद्वितीय घटना इन्सान की कल्पना से परे है। अपने सतगुरु प्यारे के हुक्म को सिर-माथे मानते हुए पूजनीय बापू जी ने अपने 23 वर्ष के नौजवान इकलौते अति लाडले सुपुत्र को, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, समाज व मानवता भलाई तथा सृष्टि के उद्धार के नमित डेरा सच्चा सौदा में अपने सतगुरु प्यारे पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के पवित्र चरण कमलों में हमेशा के लिए अर्पित कर दिया। उनका ऐसा महान त्याग हमेशा अमर रहेगा।
बेशक पूजनीय बापू जी शारीरिक तौर पर आज हमारे बीच नहीं हैं। पूजनीय बापू जी 5 अक्तूबर 2004 को सदा के लिए परमपिता परमात्मा की गोद में सचखंड जा विराजे। परंतु उनके आदर्श, उनके उत्तम संस्कार आज भी हमें मानवता के लिए सब अर्पित कर देने के लिए प्रेरित करते हैं और करते रहेंगे।
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी का समस्त जीवन त्याग की अमर गाथा है। उनकी ऐसी महान कुर्बानी बेमिसाल है। पूजनीय बापू जी का जितना भी शुक्राना करें वो कम है। धन्य-धन्य ही कह सकते हैं, पूजनीय बापू जी को शत्-शत् नमन्। उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि है।
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी की पुण्य तिथि हर साल 5 अक्तूबर को डेरा सच्चा सौदा में परमार्थी दिवस के रूप में मनाई जाती है। आज के दिन साध-संगत व शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार पूजनीय बापू जी की याद में रक्तदान कैंप आयोजित करके रक्तदान करते हैं और पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई के 159 कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।