सोच-विचार कर ही नौकरी छोड़े
हफ्ते की शुरूआत के साथ ही अनन्या के लिए उबाऊ रूटीन शुरू हो जाता है। वह नौकरी, जिसे प्राप्त कर एक समय वो खुशी से फूली नहीं समाती थी, अब उसके लिए बोझिल बन गई है। कहीं आप भी इसी स्थिति से तो नहीं गुजर रही हैं? अगर ऐसा है तो तमाम चिंताएं छोड़कर स्वयं को व्यवस्थित करें। नौकरी छोड़ने का विचार मन में कभी न लाएं।
नौकरी छोड़ना जितना आसान है उसे पाना उतना ही कठिन है। इसलिए कभी भी भावुकतावश नौकरी न छोड़ें। पहले ठंडे दिमाग से अच्छी तरह उसके नफे-नुकसान पर जरूर गौर कर लें। अक्सर देखा गया है कि व्यक्तिगत-जीवन में तनाव या समस्याएं आने पर पलायनवादी मन वर्तमान से पलायन चाहता है और बगैर सोचे यह कदम उठा लेता है लेकिन उसका बाद का असर अनावश्यक परेशानियां ला सकता है। तब शायद आप कहें कि हाय! मैंने अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। समस्याएं सुलझने पर ही आप सही निर्णय लेने के काबिल बनेंगी।
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कार्यालय से दूर रहकर मान लीजिए आप कहीं रिश्तेदारी में शादी ब्याह के मौके, मातमपुर्सी या कहीं घूमने-फिरने गए हैं, तो आप नौकरी छोड़ने या बदलने का निर्णय कभी न लें, क्योंकि कार्य करते हुए ही आप कार्य के बारे में ठीक से निर्णय ले सकते हैं। तब सच्चाई आपके करीब होती है। डाक्टर मीना अच्छी-भली सरकारी अस्पताल में कार्यरत थी। चूंकि वहां रहकर वह प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकती थीं, इसलिए उन्होंने वहां से नौकरी छोड़कर अपने दोस्त अशोक के नर्सिंग होम में उसके कहने पर कार्य करना शुरू कर दिया।
दरअसल सरकारी अस्पताल में कई सीनियर डाक्टर्स के कारण मीना को लगता था कि उसका महत्त्व वहां कम है, सो नौकरी छोड़ने का यह भी एक कारण था। लेकिन हुआ क्या? न मीना की प्राइवेट प्रैक्टिस जमी और न ही नर्सिंग होम में उसे कार्य से संतुष्टि मिली। कैरियर विशेषज्ञों का मानना है कि नौकरी बदलने से पहले अपनी आकांक्षाओं को भली-भांति परख लेना चाहिए। साथ ही अपनी योग्यता को ज्यादा या कम नहीं आंकना चाहिए। सही मूल्यांकन जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक है। इसी के साथ यह भी जांच लें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘फेमिलियरिटी ब्रीडस कंटेंप्ट’ वाली कहावत आपके कार्य के साथ भी चरितार्थ हो रही है।
अनजाने का आकर्षण हकीकत में कई बार मोहभंग करता है जैसा कि डाक्टर मीना के केस में हुआ। लेकिन यहां मंतव्य या सलाह यह नहीं है कि महज, ओल्ड इज गोल्ड, मानकर आप अपनी पुरानी नौकरी से ही चिपक रहें, चाहे वह आपके उज्ज्वल भविष्य और शानदार कैरियर में बाधा ही क्यों न हो।
कुछ गौरतलब बातें हैं जिनकोे परखने पर आप यह निर्णय ले पाएंगे कि नौकरी में बदलाव लाने की जरूरत है या नहीं:-
- वेतन नौकरी के लिए सबसे प्रथम और महत्त्वपूर्ण इंसेंटिव (प्रेरणा) है। जहां ज्यादा वेतन मिल रहा हो और कुल सुविधाएं मिलाकर आपको ज्यादा आर्थिक लाभ दिखाई दे, उस कार्य पर गौर किया जा सकता है।
- आपकी योग्यता का भरपूर उपयोग न हो रहा हो, आगे सीखने को न मिल रहा हो, एक जड़ता की स्थिति या स्टैगनेशन सा आ गया हो, और जो आपके अन्दर कार्य के प्रति ऊब भर रहा हो।
- आपके कार्य की प्रशंसा न करके बॉस आपकी हर समय आलोचना कर आपका मनोबल तोड़ने पर आमादा हो जिसके परिणामस्वरूप आपके पास भी आॅफिस को लेकर सिर्फ नकारात्मक बातें ही रह जाएं और ये सब आपके व्यक्तित्व को प्रभावित कर रही हों, जिसका असर आपके पारिवारिक जीवन पर भी पड़ रहा हो।
- कार्यालय में परिवर्तन किये गये हों जिससे आपका विभाग महत्त्वहीन बनकर रह गया हो।
जाहिर है ऐसी स्थिति आने पर जब तक कि कोई खास ही मजबूरी न हो, तो आपको कोई ठोेस व सकारात्मक कदम उठाना ही होगा। अपनी जिंदगी संवारना आपका अपने प्रति और अपने परिवार के प्रति नैतिक दायित्व है। प्रतिकूल परिस्थितियां कार्यशक्ति को और जीवन को धीरे-धीरे निरुत्साहित करने लगती हैं।
अपना आत्मविश्वास न खोयें। जहां और भी हैं। आसमां और भी हैं। एक नौकरी जीवन का अंत नहीं हो सकती। आपको अपनी मनपंसद नौकरी शीघ्र मिल जाए और तब आप खुश होकर अपने को शाबाशी देते हुए कहें, ‘अच्छा किया तूने हिम्मत कर वो सड़ी नौकरी छोड़ दी। रोज की खिट-खिट तथा तनाव व परेशानियों से छुटकारा मिल गया है।’
-उषा जैन शीरीं