Remembrance Day -sachi shiksha hindi

खुद भेद बता के टुर चलेया -पावन स्मृति दिवस विशेष (18 अप्रैल)

जीवसृष्टि का सौभाग्य है कि हर युग में संत-महापुरुष सृष्टि-जीवों के मध्य विराजमान रहते हैं। सृष्टि कभी भी संतों से खाली नहीं होती। संत न आते जगत में जल मरता संसार। संत सृष्टि-जीवों का सहारा हैं। सृष्टि संतों के आसरे कायम है। संत परोपकारी होते हैं। सृष्टि संतों के आसरे कायम है। संत परोपकारी होते हैं। संसार में आने का उनका मकसद जीवों को जीआदान, नाम, गुरुमंत्र देकर कुल मालिक परम पिता परमात्मा से मिलाने का होता है। वो परमपिता परमात्मा की दरगाह से जीवों के लिए जीआ-दान लेकर सृष्टि-जगत में आते हैं।

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महान परोपकारी संत-महापुरुषों का सृष्टि नमित परोपकार केवल इस जगत तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि लोक, परलोक और उससे भी ऊपर दोनों जहां तक उनका नाता जीवों से होता है। सच्चे संत-महापुरुष स्वयं सच्चाई से जुड़े होते हैं और वे लोगों को भी हमेशा सद्मार्ग, अच्छाई, भलाई के साथ जुडेÞ रहने का उपदेश देते हैं। वे परोपकारी-जन सच के पुरोधा होते हैं। वे समाज में फैले झूठ, कपट, कुरीतियों, पाखण्डों का डटकर विरोध करते हैं। उनका पवित्र जीवन पूरी दुनिया के लिए मिसाल साबित होता है।

ऐसे ही महान परोपकारी परम संत पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने संसार पर अवतरित होकर समूची जीव-सृष्टि के उद्धार का महान करम फरमाया है। ऐसे महान परोपकारी रूहानियत के सच्चे रहबर, पूर्ण रब्बी फकीर परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज को कोटि-कोटि नमन, लख-लख सजदा करते हैं।

संक्षिप्त जीवन परिचय:-

पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने सन् 1891 (संवत् 1948) की कार्तिक पूर्णिमा को पूज्य पिता श्री पिल्लामल जी के घर पूजनीय माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया था। आप जी मौजूदा पाकिस्तान के गांव कोटड़ा तहसील गंधेय, रियासत कलायत-बिलोचिस्तान के रहने वाले थे। पूजनीय माता-पिता के यहां चार बेटियां ही थी। बेटे की ख्वाहिश उन्हें हर पल बेचैन रखती थी। एक बार पूज्य माता-पिता जी का मिलाप एक सच्चे फकीर से हुआ। वह फकीर कोई करनी वाला (परमपिता परमात्मा का फरिश्ता) था। उस फकीर बाबा ने पूजनीय माता-पिता जी की सच्ची तड़प को देखते हुए कहा कि बेटा तो आपके यहां जन्म ले लेगा, लेकिन वह आपके काम नहीं आएगा। अगर ऐसा मंजूर है तो बोलो? पूज्य माता-पिता जी ने तुरंत अपनी सहमति दी कि हमें ऐसा ही मंजूर है।

परमपिता परमेश्वर की दया और उस फकीर की दुआ से पूज्य माता-पिता जी को पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। आप जी खत्री वंश से संबंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी का नामकरण श्री खेमामल जी के नाम से किया। लेकिन जब आप जी अपने सतगुरु मुर्शिद हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के पवित्र चरणों से जुडेÞ तो पूजनीय बाबा जी, आप जी की सतगुरु प्रेम की सच्ची मस्ती, ईश्वर की सच्ची भक्ति पर खुश होकर आप जी को मस्ताना जी बिलोचिस्तानी ही कहा करते। इस प्रकार आप जी मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी के नाम से ही जाने जाते थे। आप जी ने अपने सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज को पहले दिन से ही परमपिता परमात्मा के रूप में निहारा था।

अपने सतगुरु प्यारे के प्रति आपजी की अगाध श्रद्धा, दृढ़-विश्वास, सच्ची भक्ति, सच्चे पे्रम को देखकर पूज्य हजूर बाबा जी आप जी पर बहुत प्रसन्न व मेहरबान थे। पूज्य बाबा जी ने पहले ही दिन नाम-शब्द, गुरुमंत्र के रूप में आप जी को अपनी अपार दया-मेहर प्रदान की। पूज्य बाबा जी ने वचन फरमाया कि हम तुझे अपनी दया-मेहर देते हैं जो तुम्हारे सारे काम करेगी। डटकर भजन-सुमिरन और गुरु का यश करो।

आप जी ने अपने सतगुरु-मुर्शिद के हुक्मानुसार सिंध, बिलोचिस्तान, पश्चिमी पंजाब आदि इलाकों में जगह-जगह सत्संग करके गुरु के यशोगान के द्वारा अनके नए जीवों को ब्यास में साथ लाकर अपने सतगुरु बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम-शब्द, गुरुमंत्र दिलाकर उनकी आत्मा का उद्धार करवाया। आप जिसे भी नाम-शब्द के लिए लेकर आते पूज्य बाबा जी उसे बिना छंंटनी किए नामदान बख्श देते। पूज्य बाबा जी ने इसके उपरांत आप जी को अपनी अपार रहमतें, अथाह खुशियां, अपार बख्शिशें प्रदान करते हुए अपनी भरपूर रूहानी ताकत देकर सरसा में भेज दिया कि जा मस्ताना शाह, जा बागड़ को तार। तुझे बागड़ का बादशाह बनाया, बागड़ तुम्हारे सुपुर्द किया।

जा सरसा में कुटिया, आश्रम बना और सत्संग लगा, रूहों का उद्धार कर। तू जिसको भी नाम देगा उसकी इक लत इत्थे ते दूजी सचखण्ड विच होवेगी। पूज्य बाबा जी ने आप जी का सहयोग करने के लिए अपने कुछ सत्संगी सेवादारों (सरसा निवासियों) की भी ड्यूटी लगाई। तो इस प्रकार आप जी ने अपने सतगुरु-मुर्शिद-ए-कामिल के हुक्मानुसार बेगू रोड (शाह सतनाम जी मार्ग) पर 29 अपै्रल 1948 को डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम की स्थापना की। आप जी ने दिन-रात गुरुयश, रूहानी सत्संग लगाकर नाम शब्द-गुरुमंत्र देकर रूहों का भवसागर से पार उतारा करने का पुण्य कार्य आरम्भ किया।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, आज कुछ, कल कुछ और अगले दिन उससे भी बढ़कर लोग सच्चा सौदा में आप जी की पवित्र शरण में आने लगे और इस प्रकार आप जी की दया-मेहर रहमत का प्रचार व प्रसार दूर-दूर तक फैलने लगा। आप जी के द्वारा लगाया सच्चा सौदा रूपी रूहानी बाग, राम-नाम का बीज अंकुरित होकर दिन-रात फलने-फूलने लगा, यह रूहानी बाग आप जी के प्यार-मुहब्बत की महक से महकने लगा।

आप जी ने सन् 1948 से 1960 तक मात्र 12 वर्षाें में हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों के अनेक गांवों, शहरों कस्बों में जगह-जगह अपने रूहानी सत्संगों के द्वारा हजारों लोगों को नाम-शब्द, गुरुमंत्र देकर उन्हें नशों आदि बुराइयों तथा पाखण्डों व कुरीतियों से मुक्त किया।

‘हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सभी हैं भाई-भाई’ का प्रैक्टीकली स्वरूप आप जी द्वारा स्थापित सर्व-धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा में आज भी ज्यों का त्यों देखा जा सकता है। कोई राम कहे या कोई अल्लाह, वाहेगुरु कहे या कोई गॉड-गॉड कहे, सभी एक ही जगह पर इकट्ठे बैठकर अपने-अपने धर्म व तरीके से उस परमपिता परमात्मा का नाम ले सकते हैं। कोई रोक-टोक नहीं, कोई धर्म-जात का अंतर नहीं किया जाता। सभी धर्माें को बराबर सत्कार, सम्मान दिया जाता है। कोई ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है। इस प्रकार समाज में जीवोद्धार का यह सच का कारवां दिन दोगुनी व रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा, फलने-फूलने लगा।

इह बाग सजा के टुर चलेगा:-

वर्णनीय है कि ऋषि-मुनि, संत, गुरु, पीर-फकीर, बड़े-बड़े औलिया, महापुरुष जो भी संसार में आए, उन्होंने अपने-अपने समय में तत्कालीन समय व परिस्थितियों के अनुरूप उपरोक्त अनुसार समाज में रहते हुए बढ़-चढ़कर परमार्थी कार्य किए और समय-अवधि पूरी होने पर यहां से विदा ले गए।

‘शाह मस्ताना पिता प्यारा जी,
इह बाग सजा के टुर चलेआ।
भवसागर ’च डुबदी बेड़ी नूं,
कंडे पार लंघा के टुर चलेया।’

प्रकृति के इसी विधान के अनुसार पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने भी संसार से विदाई लेने का निश्चय कर लिया।

आप जी ने अपने अंतिम समय के बारे में काफी समय पहले ही इशारा कर दिया था। एक दिन महमदपुर रोही दरबार में साध-संगत में बात की कि ताकत का चोला छुड़ाएं तो तुम सिख लोग तो दाग लगाओगे (संस्कार करोगे) और तुम बिश्नोई लोग दफनाओगे (धरती में दबाओगे)। पूजनीय बेपरवाह जी ने अपनी हजूरी में बैठे प्रेमी प्रताप सिंह, रुपा राम बिश्नोई आदि सेवादारों से पूछा, बात की। फिर स्वयं ही फरमाया कि ‘यहां तो रौला पड़ जाएगा। यहां पर चोला नहीं छोड़ेंगे।’ इसी प्रकार रानियां दरबार में भी बात की कि ‘शो(चोला छोड़ना, जनाजा निकालना) रानियां से निकालें या दिल्ली से?’ फिर स्वयं ही फरमाया कि ‘दिल्ली से ठीक रहेगा।’

आप जी ने 28 फरवरी 1960 को, यानि अपने जाने से करीब 2 महीने पहले ही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को बतौर दूसरे पातशाह डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्ी पर गद्दीनशीन किया। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा और साध-संगत की सेवा व संभाल की तमाम जिम्मेदारियां भी उसी दिन अपने उत्तराधिकारी पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सौंपते हुए साध-संगत में वचन फरमाया कि ‘ये वोही सतनाम है जिसे दुनिया जपदी-जपदी (लभदी-लभदी) मर गई।

असीं अपने दाता सावण शाह सार्इं जी के हुक्म से इन्हें (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की तरफ उंगली का इशारा करके) अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो कोई पीठ पीछे से भी दर्शन करेगा, इनका नाम उच्चारण करेगा (सतनाम कहेगा) नर्कों में, नहीं जाएगा। ये अपनी दया-मेहर से उसका पार-उतारा करेंगे।’ पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपने एक भजन में भी फरमाते हैं:-

दुनिया रब्ब नूं ढूंढण जाए जी,
सतनाम नूं लभ असीं लिआए जी।
इहदा भेद की दुनिया पाए जी,
खुद भेद बता के टुर चलेया।
शाह मस्ताना पिता प्यारा जी,
इह बाग सजा के टुर चलेया।

इस प्रकार सच्चे पातशाह शाह मस्ताना जी महाराज अपने सतगुरु कुल मालिक द्वारा सौंपे जीवोद्धार के परोपकारी कार्याें को पूर्ण मर्यादापूर्वक पूरा करते हुए 18 अप्रैल 1960 को अपना पंच तत्व का भौतिक शरीर त्याग कर कुल मालिक की अखण्ड ज्योति में ज्योति-जोत समा गए।

मानवता की सेवा में समर्पित:-

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के इस पाक-पवित्र दिन (18 अपै्रल पावन स्मृति) को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मानवता की सेवा में समर्पित करते हुए डेरा सच्चा सौदा में ‘याद-ए-मुर्शिद’ नि:शुल्क पोलियो व अपंगता (नि:शक्तता/ विकलांगता) निवारण कंैप का आयोजन शुरू करवाया है। पूज्य गुरु जी की प्रेरणा अनुसार डेरा सच्चा सौदा में हर साल 18 अप्रैल को इस परमार्थी कैंप के माध्यम से पोलियो पीड़ितों की नि:शुल्क जांच की जाती है और चयनित मरीजों के आॅप्रेशन से लेकर फिजियोथैरेपी जैसी तमाम चिकित्सा सुविधाएं मुफ्त प्रदान की जाती हैं। जरूरतमंद मरीजों को कैलीपर भी मुफ्त दिए जाते हैं।

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