इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा…गणतंत्र दिवस
‘‘भारतीय होने का करिये मान,
मिलकर करें गणतंत्र का सम्मान।
वतन है मेरा सबसे महान,
पे्रम सौहार्द का दूजा नाम॥’’
गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस Republic day हर वर्ष बड़े जोर-शोर से आता है और शाम ढलते-ढलते थक जाता है। यह दिन थक जाता है अपने मुल्क के वाशिंदों की अकर्मण्यता देखकर। पिछले 8-10 वर्षाें में भारतीय युवाओं में परिवर्तन की बयार आई है। एक आकर्षक आत्मविश्वास के साथ भारतीय युवा चमक रहा है या यूँ कहें, उसके जोश व जुनून को सही तरीके से अभिव्यक्त करने का अवसर प्राप्त हो रहा है।
74वर्ष पहले 26 जनवरी 1950 को हमारे देश को पूर्ण स्वायत्त गणराज्य घोषित किया गया था और इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था और स्वतंत्र भारत में एक नए युग का सूत्रपात हुआ था। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को भारत का गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, चूंकि यह दिन किसी विशेष धर्म, जाति या सम्प्रदाय से न जुड़कर राष्टÑीयता से जुड़ा है, इसलिए देश का हर वाशिंदा इसे राष्टÑीय पर्व के तौर पर मनाता है।
भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहेब अम्बेडकर भारतीय महापुरूषों में अकेली ऐसी विभूति है, जिन्हें हर पार्टी अपने नारों में जगह देती है। इसकी वजह साफ है समाज का बहुसंख्यक तबका जिसमें दलित व पिछड़े शामिल हैं। इसके अलावा जो भी प्रगतिशील विचार के लोग हैं जो भी संविधान को मानने वाले लोग हैं वे स्वाभाविक तौर पर अम्बेडकर के निकट दिखते हैं।
यह अम्बेडकर की दूरदृष्टि थी कि जिन मुद्दों को भारतीय राजनीति में जगह पाने में दशकों लग गए, अम्बेडकर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही प्रमुखता से उठा रहे थे। उनके परिनिर्वाण के बाद हालात और भी खराब हो गए हैं। भारतीय राजनीति अपनी विसंगतियों को कम करने की कोशिश तो नहीं कर रही वरन् अम्बेडकर को अपने बता खोखली राजनीति कर रही है। जब हम गणतंत्र दिवस की बात करते हैं तो प्रश्न उठता है कि संविधान के रचयिता कैसा राष्टÑ चाहते थे।
हमारे संविधान के रचयिता बाबा साहेब का सपना था कि भारत जाति मुक्त हो, फूड सरप्लस हो, औधोगिक राष्टÑ बने, पूरी तरह शहरी होकर समृद्धशाली हो, सदैव लोकतांत्रिक रहे। यहां पर दलित, स्त्रियां, पिछड़े, वंचित, मजदूर, किसान, आदिवासी सब सुरक्षित रहें सबके लिए प्रगति में समान अवसर रहे। अम्बेडकर एक मात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने दलितों के साथ-साथ युवाओं से जुड़े सभी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। इसी क्रम में उन्होंने अमानवीयता की धज्जियां उड़ाकर रख दी थीं।
सामाजिक न्याय के पक्षधर अम्बेडकर हमेशा धर्म और जातीय जकड़बंदी से मुक्त भारत बनाना चाहते थे। संविधान आज भी वही है, लेकिन अम्बेडकर की वह आशंका मूर्तरूप में हमारे सामने है उन्हें आशंका थी कि ‘‘ हमारा संविधान कैसा है यह इस पर निर्भर करता है कि इसे लागू करने वाले कैसे होंगे। ’’ संविधान के जरिये अम्बेडकर का सपना था एक ऐसा समाज जहां समानता व भाईचारा हो, सबके लिए समान अवसर हों, जहां सबको आर्थिक सुरक्षा हो, जहां जाति, धर्म के नाम पर कोई छोटा या बड़ा न हो, पवित्र या अपवित्र ना हो।
ऐसा नहीं है कि परिस्थितियां बदली नहीं हैं, मगर अम्बेडकर की कल्पना का भारत अभी भी बहुत दूर दिखाई दे रहा है। राजनीतिक रूप से स्वतंत्र भारत के नागरिक होना पर्याप्त नहीं है जब तक प्रत्येक नागरिक के पास विकसित होने के समान अवसर न हों। समय तेजी से बदलाव का है। दुनिया की भावना से हम एक राष्टÑ हैं और हम सब इस महानतम भ्रम की देखभाल कर रहे हैं। हजारों जातियों में विभाजित हमारा देश अखंड राष्टÑ कैसे हो सकता है।
जीवन में कुछ करना और नई उमंग व सोच के साथ करना दो अलग-अलग बातें हैं। कुछ करना तो साधारण सी बात है लेकिन अलग करना प्रेरणादायक होने के साथ-साथ नई पहचान बनाने का प्रतीक होता है। नई राह मुश्किलों और कांटों से भरी होती है। लेकिन उसकी मंजिल सुखद और प्रतिभाशाली होती है। ऐसी राहें ही नई दिशा उद्दीप्त करती हैं, जिस तरह सोना तपकर कुंदन बनकर जेवर चमकाता है, शेर अलग राह पर चलकर जंगल का राजा कहलाता है।
ऐसी सोच कुछ अलग कर दूसरों को भी प्रोत्साहित करती है। इसमें अद्भुत शक्ति होती है जो देश को बदलने की क्षमता रखती है। इतिहास गवाह है नई सोच के साथ पूरी तत्परता के साथ कार्य करते हैं, तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है। हालांकि यदि समाज में अलग हटकर किसी कार्य को शुरू करते हैं तो हमारा विरोध होता है, लेकिन हमें लगन, दृढ़निश्चय और विश्वास पर भरोसा रखकर कार्य शुरू करना होगा।
हमारे राष्टÑ का संविधान परिपक्व हो रहा है लेकिन उसकी राजनीति, प्रशासनिक व्यवस्थाएं, सुरक्षा व्यवस्था व न्यायपालिकाओं में जिस गति से गंभीरता के साथ परिपक्वता आनी चाहिए, पर अफसोस, वह नहीं आ सकी। यह दिवस राष्टÑ के गौरवगान का दिन है।
गणतंत्र दिवस का मुख्य रंगारंग कार्यक्रम 26 जनवरी को राजपथ पर होता है। अल सुबह से राजपथ के दोनों ओर लोग जुड़ने लगते हैं। आस पास के गाँव से आने वाले लोग इसे एक बहुत बड़े मेले के रूप में लेते हैं। तीनों सेनाओं की टुकड़ियां परेड में शामिल होती हैं। राजपथ पर महामहिम राष्टÑपति परेड की सलामी लेते हैं। राष्टÑपति द्वारा शौर्य व वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं। परेड में आधुनिकतम तकनीक के सैन्य उपकरण जैसे टैंक, मशीनें, तोपों आदि का प्रदर्शन किया जाता है।
उसके पश्चात स्कूलों के बच्चों द्वारा रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति होती है। प्रति वर्ष कोई न कोई विदेशी मेहमान इस परेड का मुख्य अतिथि होता है। सबसे अंत में सभी प्रदेशों की झांकियां निकलती हैं। जनवरी को इस परेड की फुल ड्रेस रिहर्सल होती है। सभी राष्टÑीय पुरस्कार जैसे, भारत रत्न, पदम् विभूषण, पदम् श्री व अन्य सैन्य पुरस्कार जैसे, अशोक चक्र आदि भी प्रदान किये जाते हैं।
यदि युवाओं को स्वयं को अभिव्यक्त करने का स्पेस दिया जाए उन पर विश्वास करने का जोखिम उठाया जाए तो कोई वजह नहीं है कि उनमें शिथिलता के लक्षण भी नजर आएं या न आएं। यह भारतीय युवा के कुशल मस्तिष्क की तारीफ है कि वैश्विक स्तर पर उस पर विश्वास किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां उसे सौंपी जा रही हैं उन्हीं युवाओं के मजबूत कंधों पर हमें देश में उन्नति और प्रगति को लाना है। यह सर्वमान्य सत्य है कि आने वाली सदी की संरचना मिसाइलों से नहीं वरन् मानव की प्रखर बुद्घि से होगी। हमारे संविधान में देश के हर व्यक्ति को समान अधिकार दिए हैं मगर इन अधिकारों के साथ-2 कुछ कर्तव्य भी हर नागरिक को पूर्ण करने पड़ेंगे।
अपना हित से पहले राष्टÑहित के लिए सोचना पड़ेगा। जाति व भाषाओं के नाम पर अब देश का विभाजन बंद कर अखंड भारत की स्थापना में सहयोग प्रदान करना होगा। संविधान के रचनाकारों की भावनाओं को समझकर मानवता को हमारी भाषा और राष्टÑधर्म को ही अपना धर्म स्वीकार करना होगा। ‘‘सर्वेभवन्तु सुखिन: सर्वेसन्तु निरामया:’’ की अवधारणा को अंगीकार कर इस बार गणतंत्र दिवस पर हम सभी के मुख से यही स्वर गूंजना चाहिए कि ‘‘इन्सान का इन्सांन से हो भाईचारा यही संदेश हमारा।’’ मतलब, राष्टÑ के इस गणतंत्र दिवस का यही संदेश सब कहीं पहुंचे।
-विनिता मोहता