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ईश्वरीय वरदान को शत्-शत् नमन् -सम्पादकीय

पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी (पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के आदरणीय बापू जी) एक महान व्यक्तित्व के मालिक थे। दुनिया में रोजाना लाखों लोग जन्म लेते हैं और लगभग इसी अनुपात से प्रतिदिन यहां से हमेशा के लिए विदा ले जाते हैं।

उनमें ज्यादातर लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका कोई नाम तक भी नहीं जानता और समय के अनुसार यह भी भुला दिया जाता है कि वह कभी यहां आया था, लेकिन उन असंख्यों में कुछ लोग, बहुत कम लोग, हालांकि सदियां गुजर गई हैं उन्हें यहां से विदा लिए, पर उनका नाम आज भी लोगों के दिलो-जिगर में छाया हुआ है और जुबान उनका यशोगान करती नहीं थकती।

वे लोगों की श्रद्धा के पात्र या तो योद्धा, शूरवीर, बहादुर हुए हैं या सच्चे समाज सुधारक या फिर रूहानी पीर-फकीर, सच्चे संत, गुरु, पीर-पैगम्बर हैं या वो महान आत्मा, सच्चे पुरुष जो इन्सानियत की भी मिसाल होते हैं रूहानी संतों, पीर-पैगम्बरों के जन्मदाता हैं। वो महान पुरुष, महान आत्मा, मालिक की याद तथा इन्सानियत की सेवा में अपने आपको समर्पित करते हुए अपना निश्चित समय पूरा करके इस संसार से विदा ले लेते हैं। उनका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहता है। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के आदरणीय जन्मदाता नम्बरदार मग्घर सिंह जी का नाम युगों-युग तक याद रहेगा।

पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी इन्सानियत की बहुत ऊंची मिसाल थे और वहीं रूहानियत, सूफियत में भी उन्हें बहुत ही ऊंचा रुतबा हासिल था। रूहानी पीर-फकीरों के अनुसार जब कोई ऐसा महापुरुष इस संसार से विदायगी लेता है, तो वह अकेला नहीं जाता, बल्कि रूहानी मंडलों पर युगों से अटकी ईश्वर की याद में तड़पती हुई रूहों को भी अपने साथ धुरधाम ईश्वर की गोद में ले जाता है। उनके वो आदरणीय माता-पिता भी धन्य-धन्य कहने के योग्य हैं, जो अपने ऐसे लाल को जन्म देते हैं। वे अपनी कुलों का भी उद्धार कर जाते हैं।

पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी उन्हीं महान हस्तियों में एक थे। आप जी गांव श्री गुरुसर मोडिया जिला श्री गंगानगर, राजस्थान के रहने वाले एक अत्यंत सच्चे, नेक दिल व महापवित्र व्यक्तित्व के स्वामी थे। बचपन में ही आप जी के अंदर ईश्वर की ज्योति प्रकट थी। परमपिता परमात्मा में आप जी का अटूट विश्वास था। आप जी परमपिता परमेश्वर को हमेशा अपने अंग-संग देखते थे। आप जी दया-रहम के पुंज व त्याग की एक बेमिसाल मिसाल थे।

आप जी का अपने परमपिता परमात्मा के प्रति अद्भुत त्याग अवर्णनीय है। 18 वर्ष के लंबे इंतजार और औलाद के प्रति तड़प के आप जी ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपनी इकलौती संतान, अपने वारिस के रूप में पाया और जब वे 23 वर्ष की भरी जवानी में थे, अपने मुर्शिदे-कामिल पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के एक इशारे, एक वचन पर हंसते-हंसते हुए उनके अर्पण कर दिया और क्या अर्ज की कि पिता जी, हमारा ये सब कुछ जमीन-जायदाद भी आप जी ले लो, सब आपका ही है, हमें तो यहां दरबार में एक कमरा दे देना।

हम आपके दर्शन कर लिया करेंगे, सेवा-सुमिरन कर लेंगे और इन्हें (पूज्य गुरु जी को) भी देख लिया करेंगे। अपनी जान, अपना एकमात्र लाडला पूरी नौजवान अवस्था में, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, अपने सतगुरु के प्रति न्यौछावर कर देना, रूहानियत में इससे बड़ी मिसाल कोई हो नहीं सकती। पूजनीय परमपिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूज्य गुरु जी को डेरा सच्चा सौदा में अपना उत्तराधिकारी बनाकर गद्दीनशीन किया। इस प्रकार पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी ने अपने इस महान त्याग के द्वारा दोनों जहानों में कुल मालिक की रहमत का जो यश प्राप्त किया है, उसकी उपमा का वर्णन किया नहीं जा सकता। पूजनीय बापू जी 5 अक्तूबर 2004 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर कुल-मालिक परमपिता परमात्मा की गोद में सचखंड जा विराजे।

पूजनीय बापू जी का समूचा जीवन मानवीय चेतना का प्रकाश था, जिससे ज्ञान, आत्म चिंतन, सर्वधर्म के रूहानी प्रकाश से सराबोर नूरी किरणें केवल परमार्थ के जिज्ञासुओं को ही नहीं, बल्कि कुल दुनिया को जब तक चांद-सूरज रहेंगे, अपने नूरी प्रकाश, अपनी पाक-पवित्र प्रेरणाओं से उनका मार्ग-दर्शन करती रहेंगी।
-सम्पादक

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