Sanjeev Kumar martyr - sachi shiksha hindi

जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही देश के लिए शहीद हुए थे संजीव कुमार

बचपन का वो बंदूकों से खेलने का शौक और मां से कहना कि मैं बड़ा होकर फौज में भर्ती होऊंगा और सीमा पर देश की सेवा करूंगा। यही सपना कुरुक्षेत्र जिला के गांव कौलापुर के संजीव कुमार ने उस वक्त संजोया था, जब वह गांव के ही मिडल स्कूल में पढ़ता था।

वहीं मां पार्वती ने भी अपने बेटे व चार बहनों के इकलौते भाई संजीव कुमार को देश सेवा के उद्देश्य से 24 फरवरी, 1998 को फौज में भर्ती करवा दिया। लेकिन उसे यह कतई अंदेशा नहीं था कि उसका बेटा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही परिवार को अकेला छोड़कर देश की राह में अपनी जान कुर्बान कर देगा। 10 अप्रैल 1979 को माता पार्वती की कोख से जन्म लेकर व पिता रणजीत सिंह की गोद में पले बड़े संजीव कुमार के अंदर शुरू से ही देश सेवा के भाव थे, शायद इसीलिए चार बहनों का इकलौता भाई होने के बावजूद 24 फरवरी, 1998 को सेना में भर्ती हो गए।

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लगभग 18 वर्ष की उम्र में जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि मन में देश सेवा का जज्बा लिए संजीव कुमार फौज में भर्ती होने के मात्र सवा साल के बाद कारगिल की जंग में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए मैदान में उतर गए। फौज के उच्चाधिकारियों ने संजीव कुमार वाली बटालियन को कारगिल क्षेत्र के द्रास में तैनात कर दिया। 6 जुलाई, 1999 का वह दिन जब संजीव कुमार व अन्य साथियों की दुश्मनों से जंग चल रही थी तो दुश्मनों से लोहा मनवाते हुए मर कर भी हमेशा के लिए अमर हो गए और भारत माता के चरणों में प्राण न्यौछावर कर देश के इतिहास में अपना और अपने परिवार का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख गए।

गांव मे जैसे ही संजीव कुमार के शहीद होने का समाचार पहुंचा था तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरे गांव के हर घर का चूल्हा ही ठंडा हो गया हो। इस घड़ी में गांव की मिट्टी भी अपने आप को गौरवांवित महसूस कर रही थी कि उसने ऐसे सपूत को जन्म दिया जो देश सेवा के लिए काम आया है। शहीद की अंतिम यात्रा के समय पूरा गांव व बाहर के हजारों लोगों ने नम आंखों से शहीद को अंतिम विदाई दी। संजीव कुमार के पिता ने अपने बेटे की याद में गांव में शहीद स्मारक बनवाया और उसमें संजीव कुमार की प्रतिमा लगवाई जो आज भी युवाओं में देश सेवा का जज्बा भर रही है।

गांव का स्कूल है शहीद के नाम पर

गांव कौलापुर में सरकारी स्कूल शहीद संजीव कुमार के नाम पर है। इस गांव के बच्चे रोजाना स्कूल में आते-जाते वक्त शहीद का नाम पढ़कर अपने अंदर राष्ट्रभक्ति की भावना को पैदा कर रहे हैं। वहीं गांव की एक सड़क का नाम भी शहीद संजीव कुमार के नाम पर रखा गया है।

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