सतगुरु ने दर्शनों की तड़प की पूरी -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता प्र्रकाश इन्सां पत्नी सचखंडवासी गुरमुख इन्सां कल्याण नगर, सरसा पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से मांगी मुराद पूरी होने का वर्णन इस तरह करती है:-
सन् 1960 से पहले की बात है, उस समय मैं मंडी डबवाली में अपने सुसराल में रहती थी। मेरे मायके सरसा में ही हैं। मेरा मायका परिवार काफी समय से डेरा सच्चा सौदा सरसा से जुड़ा हुआ है। मैंने बचपन में ही अपने मां-बाप के साथ डेरा सच्चा सौदा में जाकर पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से नाम ले लिया था। मेरे पति ने भी पूज्य सार्इं मस्ताना जी से नाम ले लिया था। परंतु परिवार के अन्य सभी सदस्य बिना नाम के थे। उन दिनों में पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने मंडी डबवाली का सत्संग मंजूर कर दिया।
सत्संग से कुछ दिन पहले डेरा सच्चा सौदा के कुछ जीएसएम भाई व सेवादार आश्रम की सब्जी बेचने के लिए डबवाली मंडी में आए। मंडी की संगत ने भी उनका सहयोग किया। उन्होंने गली-गली जाकर सच्चा सौदा की सब्जी बेची, गली-गली में रामनाम की चर्चा की और शहनशाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग के बारे में भी बताया। जब वह हमारी गली में आए तो मेरी सास ने घर का दरवाजा बंद कर लिया और मुझे डांटने लगी कि बाहर सच्चा सौदा की संगत में नहीं जाना। मैं तेरे को बाबा मस्ताना जी की सत्संग में नहीं जाने दूंगी। मैं रो-धोकर चुप कर गई। परंतु अंदर ही अंदर अपने सतगुरु पूज्य मस्ताना जी के चरणों में अरदास की कि हे सच्चे पातशाह, मुझे सत्संग में जरूर लेकर जाना।
उन दिनों में अचानक एक घटना घटी, सरसा से हिसार जाने वाली एक बस सिकंदरपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उसमें मेरी सास तथा नौ अन्य लोगों की मृत्यु हो गई। जिस दिन डबवाली में सत्संग था, उसी दिन मेरी सास का अंतिम क्रियाक्रम यानि अंतिम अरदास थी। उस दिन घर में रिश्तेदारों तथा जात-बिरादरी के लोगों ने आना था। इस तरह उस दिन सत्संग पर नहीं जा सकती थी। परंतु मेरी अंदरुनी भावना थी कि मैंने सत्संग में जाना है। अब सतगुरु का खेल देखो कि वह किस तरह अपना खेल रचता है। सत्संग से एक दिन पहले अचानक किसी चोट या गिरने से मेरे बच्चे की बाजू टूट गई। उस समय उस इलाके में जो टूटी हड्डियों को बांधता था, उसका नाम जंगीर सिंह था।
वह डबवाली का रहने वाला था। उस प्रेमी के घर पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज का उतारा था। मेरा जेठ, मुझे और मेरे पति व बच्चे को साथ लेकर जंगीर सिंह के घर पहुंच गया। वहां संगत बैठी हुई थी। शब्द-वाणी चल रही थी। शहनशाह मस्ताना जी अभी स्टेज पर नहींं आए थे। हमने वहां जंगीर सिंह को बच्चे की बाजू दिखाई। वह बाजू देखकर बोला कि इस पर तेल का हलवा बनाकर बांध लो, बाजू कल को बांधेंगे। इतनी देर में शहनशाह जी साध-संगत को दर्शन देने के लिए स्टेज पर आ गए। मैंने शहनशाह जी के जीभर दर्शन किए, सत्संग सुना और बापिस घर आ गए। फिर दूसरे दिन बच्चे की बाजू दिखाने के लिए हम दोनों पति-पत्नी जंगीर सिंह के पास गए।
जंगीर सिंह सत्संग के कार्यक्रम में व्यस्त थे। उसने कहा कि सत्संग सुनो, फिर देखेंगे। हमने सत्संग सुनी और जी-भर कर शहनशाह जी के दर्शन किए। जब हम बाजू बंधवा कर अपने घर पहुंचे तो सभी रिश्तेदार घर में ही थे। भोग का कार्यक्रम सम्पन्न हो चुका था। सतगुरु जी ने मुझे जो खुशी दी उसका वर्णन ही नहीं हो सकता। बच्चे की बाजू कुछ ही दिनों में ठीक हो गई।
सतगुरु जी ने बच्चे की बाजू की चोट के बहाने अपने रूहानी सत्संग और पवित्र दर्शनों की तड़प को पूरा किया। मैं अपने सच्चे सतगुरु जी की दया-मेहर का ऋण कभी भी नहीं उतार सकती। आज उन्हीं के प्रत्यक्ष स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां हमारी पल-पल संभाल कर रहे हैं।