Experiences of satsangis -sachi shiksha hindi

बेटा! हम तेरे लिए यहीं पर आ गए -सत्संगियों के अनुभव

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का रहमो-करम

सेवादार गुरदास इन्सां पुत्र राम कुमार इन्सां निवासी बड़ौत जिला बागपत, उत्तर प्रदेश हाल आबाद शाह सतनाम जी पुरा जिला सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-

दिसंबर 1991 की बात है, बड़ौत से साध-संगत ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तथा पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के दर्शनों के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा आना था। साध-संगत में बहुत उत्साह था। उस समय मैं करीब ग्यारह वर्ष का था, उस समय भी मुझे सतगुरु जी से अत्यंत प्रेम था। अन्य साध-संगत की तरह मुझे भी सतगुरु जी के नए स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी के दर्शनों की प्रबल तड़प थी।

मैं भी साध-संगत के साथ डेरा सच्चा सौदा सरसा आना चाहता था। आने वालों में मैंने अपना नाम भी लिखवा दिया था, परंतु उन दिनों में हमारे घर मकान की मुरम्मत का कार्य चल रहा था। इसलिए मेरे पापा जी ने मुझे सरसा आने की आज्ञा नहीं दी। उनका कहना था कि थोड़े दिन ठहर कर चले जाना, तब तक अपने मकान का कार्य पूरा हो जाएगा। परंतु मैं जिद्द करने लगा, क्योंकि मेरा सतगुरु से बेइंतहा प्रेम है। मेरे दिल में था कि कैसे न कैसे उड़कर पिता जी के पास चला जाऊं। जब मैं नहीं माना तो मेरे पापा जी ने मुझे थप्पड़ जड़ दिया। मैं रो-धो कर चुप कर गया। परंतु मुझे सतगुरु जी के दर्शनों की अत्यधिक तड़प थी।

मैं अगले दिन सुबह तैयार होकर पढ़ने के लिए स्कूल गया तो वहां पूजनीय हजूर पिता जी के मुझे प्रत्यक्ष दर्शन हुए। पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे आशीर्वाद दिया तथा फरमाया, ‘बेटा ! तेरे पापा ने तेरे को नहीं आने दिया, कोई बात नहीं। बेटा! हम तेरे लिए यहीं पर आ गए।’ उस समय मुझे इतनी खुशी हुई कि जिसका वर्णन ही नहीं हो सकता। मेरे पांव जमीं पर नहीं लग रहे थे। मेरी गमी अचानक खुशी में बदल गई। उधर मेरे माँ-बाप पछताने लगे कि हमने बेटे को सरसा जाने से क्यों रोका। इस बात के तीन-चार दिन बाद पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपना पांच तत्व का भौतिक शरीर त्याग दिया। यह खबर सारी दुनिया में आग की तरह फैल गई।

सुनकर बड़ा दु:ख हुआ। इस बात ने तो सबके दिलों को हिलाकर रख दिया। उसके बाद मैं सतगुरु जी की रहमत से डेरा सच्चा सौदा में नि:स्वार्थ सेवा करने लगा और कुछ समय बाद मैंने मानवता की सेवा हित में अपने आप को समर्पित कर दिया। उस दिन पूजनीय हजूर पिता जी ने मुझसे मेरा नाम पूछा तो मैंने बताया कि पिता जी, मेरा नाम गुरुदास है जो पूजनीय परमपिता जी ने रखा है। सर्व सामर्थ सतगुरु पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया, ‘हमने तो यह नाम नहीं रखा, हमने तो गुरदास रखा था।’ पूज्य हजूर पिता जी ने वो ही वचन कर दिए जो पूजनीय परमपिता जी ने किए थे। पूज्य हजूर पिता जी ने इन वचनों से यह दर्शा दिया कि वे स्वयं परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ही हैं।

मेरे माता-पिता ने स्कूल में मेरा नाम गुरुदास लिखवाया था और सभी लोग मुझे गुरुदास ही कहते थे, जो पूज्य हजूर पिता जी ने वचन करके मेरा नाम ठीक करवा दिया। उसके बाद मेरा नाम गुरदास ही कर दिया गया। सतगुरु हर जायज मांग पूरी करता है। वह जीव के आगे-पीछे की सब जानता है जैसा कि उपरोक्त करिश्मे से स्पष्ट है।

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