ढ़ीठ बना देती है बच्चों को पिटाई
आज बच्चा अढ़ाई से तीन साल का हुआ नहीं कि उसे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने के लिए डाल दिया जाता है। स्कूल में बच्चे को होमवर्क भी मिलता है जो अधिकतर माता-पिता द्वारा ही कराया जाता है। बच्चा जब ठीक ढंग से होमवर्क नहीं कर पाता तो माता-पिता उसकी पिटाई करने से नहीं चूकते।
ऐसा बच्चा शायद ही कोई मिले जिसकी बचपन में माता-पिता से कभी पिटाई न हुई हो। अगर यह प्रश्न उठे कि माता-पिता बच्चों की पिटाई क्यों करते हैं तो इसके अनेक कारण सामने आएंगे।
वर्तमान समय में आर्थिक एवं सामाजिक परिवेश तेजी से बदल रहे हैं। अधिकांश माता-पिता नौकरीपेशा होते हैं। जब तक बच्चे नहीं होते, वे पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं परन्तु बच्चा पैदा होने के बाद उनकी स्वतंत्रता में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। इसके बाद उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं। जब माता-पिता दफ्तर से थके हारे घर आते हैं तो वे चाहते हैं कि कुछ देर शांति के साथ रहा जाये।
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दिन भर दफ्तर का कामकाज और उस पर महानगरों की यातायात व्यवस्था, जिसके कारण आदमी का स्वभाव चिड़चिड़ा होना स्वाभाविक ही होता है। ऐसे में बच्चा जब किसी तरह की शैतानी या जिद्द करने लगता है या कोई गलती करता है तो सारे दिन की खीझ बच्चे पर ही उतर जाती है।
जब से एकल परिवार का चलन बढ़ा है, तब से यह समस्या और बढ़ गयी है। माता-पिता को नौकरी पर जाते समय बच्चे को क्र ेच में छोड़ना पड़ता है। इससे माता-पिता और बच्चे के बीच की आत्मीयता कम होने लगती है, क्योंकि क्रेच में बच्चे को वह माहौल नहीं मिल पाता जो माता-पिता के साथ बच्चे को मिलता है।
एक शौक यह भी प्रचलित हो गया है कि आज बच्चा अढ़ाई से तीन साल का हुआ नहीं कि उसे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने के लिए डाल दिया जाता है। बच्चा भले ही अपना नाम-पता भी नहीं बता पाता किंतु अंग्रेजी स्कूल के बस्ते के बोझ को उठाने के लिए वह मजबूर हो जाता है। स्कूल में बच्चे को होमवर्क भी मिलता है जो अधिकतर माता-पिता द्वारा ही कराया जाता है। बच्चा जब ठीक ढंग से होमवर्क नहीं कर पाता तो माता-पिता उसकी पिटाई करने से नहीं चूकते।
माता-पिता प्राय: यह नहीं समझते हैं कि बच्चा पिटाई से बिगड़ता ही है, सुधरता नहीं है। पढ़ाते समय बच्चे को पीटने की बजाय प्यार से समझाना चाहिए। इससे बच्चा जल्दी सीखता है।
माता-पिता यह नहीं सोचते कि सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं। किसी का स्वभाव चंचल होता है तो कोई शांत। बचपन में तो सभी बच्चे शैतानी करते ही हैं। उन्हें जिन बातों के लिए मना किया जाएगा, वे जानबूझकर उसे ही करते हैं। माता-पिता को यह सोचना चाहिए कि क्या उन्होंने बचपन में शैतानी नहीं की थी?
लगातार पिटते रहने से बच्चा डरा और सहमा-सहमा रहने लगता है और वह माता-पिता से कटता रहता है। माता-पिता के बुलाने पर भी वह उनके पास जाना नहीं चाहता। उसके मन में यही घर कर जाता है कि उनके फंस जाने पर उसकी पिटाई होगी। वह बच्चा माता-पिता को खौफनाक समझने लगता है और अपनी समस्या, परेशानी, जिज्ञासा आदि को माता-पिता से व्यक्त नहीं कर पाता है।
कई बार तो अधिक पिटाई के कारण उसके मन में प्रतिशोध की भावना तक पनपने लगती है जो उसके विकास में बाधक बनती है। अधिक पिटाई होते रहने से बच्चा ढ़ीठ बन जाता है और वह यह सोचने लगता है कि ज्यादा से ज्यादा दो-चार थप्पड़ लग जाएंगे, इससे ज्यादा और क्या होगा?
बच्चों की आदतों में शुरू से ही सुधार करना आवश्यक है क्योंकि बच्चे कच्चे घड़े की तरह होते हैं। बच्चों की फरमाइश स्वाभाविक है। बच्चों की सभी फरमाइशों को पूरा भी नहीं किया जा सकता। अगर बच्चे को प्यार से अपनी मजबूरी बतायी जाये तो वे अवश्य ही उन बातों को समझ जाएंगे।
बाल विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे की बेवजह पिटाई किये जाते रहने से उसका शारीरिक व मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। फलस्वरूप वह मंदबुद्धि व हठीला बन जाता है। बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाना चाहिए जिससे वह माता-पिता को अपना मित्र समझकर खुलकर बात कर सके।
-पूनम दिनकर