January 25 Avatar Day -sachi shiksha hindi

रूहानी रहबर आए रूहों का करने उद्धार 25 जनवरी अवतार दिवस पर विशेष
जब से जीव-सृष्टि की रचना हुई है, सच्चे रूहानी पीर-फकीर, संत महापुरुष भी तब से अपनी रूहों के उद्धार का उद्देश्य लेकर ही आते हैं और अपना पूरा जीवन मानवता-सृष्टि की सेवा में लगा देते हैं। बेशक वो यहां पर आम इन्सानों की तरह खाते-पीते, उठते-बैठते और सब कार्य-व्यवहार करते हैं लेकिन उनका पवित्र जीवन दुनियावी इच्छाओं और विषय-वासनाओं से रहित रूहानियत से भरपूर होता है।

उनमें व आम लोगों में यह फर्क है कि वे इस मृत्युलोक में जन-सामान्य की तरह जूनियों में नहीं आते, बल्कि वो धुरधाम के वासी परम पिता परमात्मा का ईलाही स्वरूप होते हैं और रूहों के उद्धार के लिए इस धरा पर अवतार धारण करते हैं। संत-जन लोगों को आजीवन धर्माें की शिक्षाओं पर चलकर इन्सान बनने की प्रेरणा देते रहते हैं। वो समाज में फैले नशों, सामाजिक बुराइयों, पाखण्डों तथा कुरीतियों में से जीव को निकालने में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं। वास्तव में वो जीते ही परमार्थ के लिए हैं और ऐसा ही पाक-पवित्र जीवन सच्चे पीरो-मुर्शिद परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का है। आप जी का परोपकारी जीवन दुनिया के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।

जन्म व प्रारम्भिक जीवन:-

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज खुद करन-करावनहार परम पिता परमात्मा स्वरूप धुरधाम से सृष्टि पर अवतरित हुए। आप जी के आदरणीय पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता जी का नाम माता आसकौर जी था। आप जी गांव श्री जलालआणा साहिब, तहसील डबवाली जिला सरसा (हरियाणा) के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी गांव के बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक और पूज्य दादा हीरा सिंह जी गांव के जैलदार साहिब थे। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। आप जी का पहला शुभ नाम सरदार हरबंस सिंह जी था।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने रहमो-करम से आप जी को ‘सतनाम’ बना दिया और आप जी का नाम सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया। आप जी के पूजनीय माता-पिता जी साधु-फकीरों की अत्याधिक सेवा किया करते थे और मालिक की भक्ति में लीन रहते थे। पूजनीय पिता जी के यहां दुनियावी पदार्थों की कोई कमी नहीं थी लेकिन संतान प्राप्ति की कामना पूज्य माता-पिता को हर समय सताए रहती थी। गांव में एक मस्त रब्बी फकीर का आगमन हुआ। जितने दिन वह फकीर बाबा श्री जलालआणा साहिब में रहा, भोजन-पानी सरदार वरियाम सिंह जी के घर पर ही आकर किया करता था।

एक दिन उस फकीर-बाबा ने खुश होकर कहा, ‘भाई भगतो! आप की सेवा से हम बहुत खुश हैं। आप की सेवा भगवान को मंजूर है। वो आपकी सच्ची मनो-कामना को अवश्य पूरी करेगा। आपके घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। ’ इस प्रकार ईश्वर की कृपा और उस सच्चे सार्इं बाबा की सच्ची दुआ से मालिक स्वरूप पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। पूज्य माता-पिता जी की खुशी का कोई पारावार न रहा जिनके यहां करीब 18 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद पुत्र रत्न के रूप में इतने बड़े खानदान के वारिस, संतान प्राप्ति की प्रबल इच्छा पूरी हुÞई। पूरे गांव में घर-घर में थाल भर भर कर समय के रीति-रिवाज के अनुसार गुड़, शक्कर, मिठाइयां बांटी गई और गरीब जरूरतमंद जो भी दरवाजे पर आया सब की झोलियां, अनाज, गुड़ आदि मिठाइयों से भर दी गई।

सारी प्रकृति खुशी में झूम उठी। सच्चे दातार के शुभ आगमन, अवतार धारण करने पर वह फकीर-बाबा भी लंबी यात्रा करके पूज्य माता-पिता जी को बधाई देने श्री जलालआणा साहिब में पहुंचा। उस बाबा ने पूज्य माता-पिता जी को ढेर सारी बधाई दी और यह भी कहा भाई भक्तो! आपके घर में खुद ‘रब्बी-जोत’ प्रकट हुई है, इन्हें पूर्ण स्नेह से रखना है। यह आपके यहां ज्यादा समय तक नहीं रहेंगे। यह 40 वर्ष के बाद उसी मालिक के पास अपने उद्देश्य, जीव-मानवता उद्धार के लिए चले जाएंगे जिसके लिए ये आए हैं।

नूरानी बचपन के नूरानी खेल:-

बचपन से ही आप जी का अलौकिक नूरानी स्वरूप इतना सुंदर था, जो भी देखता बस देखता ही चला जाता। परम पिता परमात्मा का ईलाही नूर आप जी के नूरानी मुखड़े से ऐसे झलकता जैसे सूर्य का सुनहरी प्रकाश हो। गांव का एक झींवर भाई घर में पीने का पानी भरने आया करता था। एक दिन पूजनीय माता जी ने उसे अपने लाल के पालने के पास टकटकी लगाए आप जी को निहारते हुए देख लिया। माता का हृदय बहुत कोमल होता है। पूजनीय माता जी ने उस भाई से कहा कि तू यहां खड़ा इतनी देर से क्या देख रहा है, अपना काम कर ले।

पूजनीय माता जी के मन में आया कि कहीं मेरे लाल को कोई बुरी नजर ही न लग जाए। पूजनीय माता जी ने समाज में प्रचलित काला टिक्का अपने लाल के चेहरे पर एक साइड में लगा दिया। उस भाई ने पूज्य माता जी से विनम्र भाव से कहा, माता जी, मेरे अंदर कोई ऐसी बुरी भावना या बुरी नजर के ख्याल नहीं हैं। आप के लाल में मुझे हमारे पूजनीय महापुरुषों के दर्शन होते हैं। इसलिए मेरा नजर हटाने को दिल नहीं करता। पूजनीय माता जी ने अपने लाल को तुरंत अपने आंचल में छिपा लिया।

आप जी अभी चार-पांच वर्ष के थे, जब आप जी के पूज्य पिता जी मालिक की गोद में सचखण्ड जा समाए। आप जी का पालन-पोषण आप जी की पूज्य माता तथा आप जी के पूज्य मामा सरदार वीर सिंह जी के उत्तम आदर्शाें के आधार पर हुआ। पूजनीय माता जी के भक्ति भाव तथा परोपकारी संस्कार बचपन से ही आप जी के अंदर भरपूर थे। आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान थे।
आप जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से पूरी हुई। उसके बाद की शिक्षा आप जी ने मण्डी कालांवाली के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। आप जी अपने सहपाठियों के प्रति हमेशा विनम्रता व हमदर्दी के भाव रखते और गरीब बच्चों की हर संभव मदद करते। एक बार स्कूल में आप जी के एक सहपाठी को बुखार हो गया। आप जी ने उसे डॉक्टर से दवाई दिलाई और अपनी साईकिल पर बैठाकर उसे उसके घर पर छोड़कर आए। दूसरों के प्रति आपजी की हमदर्दी की भावना से हर कोई परिचित था।

लड़की की शादी में मदद:-

एक बार एक गरीब परिवार पूजनीय माता जी के पास कुछ रुपयों की मदद के लिए आया। उनकी लड़की की शादी थी। कहीं भी और से प्रबंध नहीं हो पाया था। शादी का दिन नजदीक था। वे लोग बड़ी मुश्किल में थे। जब वो मदद की फरियाद लेकर आए, आप जी भी उस समय अपनी पूज्य माता जी के पास बैठै हुए थे। आप जी ने पूज्य माता जी से कहा, माता जी, इनको अगर सौ रुपये की जरूरत है तो दो सौ दे देना और इनसे वापिस भी नहीं लेना। ये समझ लेना कि यह मेरी अपनी बहन की शादी है। आप जी के बालमुख से ऐसी परोपकारी भावना को सुनकर पूज्य माता जी का दिल भाव-विभोर हो गया। आप जी के दर पर आया कोई भी सवाली कभी खाली नहीं गया। जरूरत से ज्यादा पाकर हर कोई आप जी को धन्य-धन्य कहता जाता।

जीव-जन्तुओं के प्रति हमदर्दी:-

पढ़ाई के बाद आप जी खेती कार्याें में रूचि लेने लगे। आप जी ने केवल इन्सानों पर ही नहीं, जीव-जंतुओं पर भी अपना रहमो-करम बरसाया। आपजी ने कभी किसी पशु को भी अपने खेत में फसल चरते को बाहर नहीं निकाला था। पशु है पेट तो इसने भरना ही है, अपने भाग्य का खा रहा है। ऐसे उत्तम संस्कारों के धनी थे आप। एक झोटा आप जी की मौजूदगी में खेत से फसल चरता रहता, लेकिन आप जी उसे न हटाते। उन दिनों खेत में चनों की फसल लहलहा रही थी।

किसी ने पूज्य माता जी से जाकर शिकायत कर दी कि हरबंस सिंह जी फसल की रखवाली क्या करते हैं, झोटा उनके सामने फसल चर रहा है और वो उसे बाहर नहीं निकालते। अगले दिन जब वह झोटा फसल चर रहा था तो आप जी ने उसकी पीठ को थप-थपाते हुए कहा, भगता, अब तो अपनी शिकायत हो गई है, अब तू हिस्से आता चर लिया कर। उस प्राणी ने आप जी (पूज्य सतगुरु जी) के वचन को सिर-माथे सत्यवचन कहकर माना, और उस दिन के बाद, गांववासी भी इस हकीकत के गवाह हैं कि जब तक वह जीवित रहा कभी किसी के खेत में एक जगह खड़े होकर फसल नहीं चरी थी, चलते-चलते ही चरता था।

लोक भलाई कार्यों में रूचि:-

जैसे-जैसे आप जी बड़े हुए, आप जी की करुणा, दया-मेहर, स्वभाव की दयालुता का दायरा और विशाल हो गया। आप जी गांव के सर्व-सांझे तथा समाज भलाई के कार्याें में रूचि लेने लगे। आप जी की पावन कोशिशों की बदौलत ही गांव में श्री गुरुद्वारा साहिब स्थापित हुआ। आप जी ने उस पवित्र कार्य में अपना बढ़-चढ़कर सहयोग किया। आज वोही गुरुद्वारा साहिब गांव के बीचों-बीच है और पूरे गांव के मस्तक पर चांद की मानिंद अनोखी शान है। इसी तरह गांव के हर सांझे व लोक भलाई कार्योें में आप जी अग्रणी भूमिका निभाते।

सच की तलाश:-

आप जी के भक्तिमय मन में कुल मालिक परम पिता परमात्मा, उस सच से मिलाप की प्रबल तड़प थी। आप जी नितनेम, सुबह-शाम का पाठ करते। आप जी बाणी की इस पवित्र पंक्ति पर गहनता से विचार करते कि वो धुर की बाणी कौन सी है जो सकल चिंताओं से मुक्त करती है। आप जी ने अनेक साधु-महात्माओं से मिलाप किया, उनके विचार जाने, उनके आचार-व्यवहार को परखा पर कहीं से भी तसल्ली नहीं हुई और आप जी की खोज बराबर जारी रही।

पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज का मिलाप:-

इसी दौरान आप जी का मिलाप डेरा सच्चा सौदा के पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से हुआ। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा और पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज के बारे जो सुन रखा था, पूज्य सार्इं जी के रूहानी सत्संग को सुनकर और हर सच्चाई को परख कर आप जी उसी पल से पूज्य सार्इं जी को अपना तन-मन अर्पित करके उनके मुरीद हो गए। जिस सच्चाई की आप को तलाश थी, सब कुछ आप जी के रू-ब-रू था।

अंदर-बाहर से आप जी की पूरी तसल्ली हो गई थी। आप जी तीन साल तक लगातार पूज्य सार्इं जी का सत्संग सुनते रहे। हालांकि आप जी ने इस दौरान नाम-शब्द लेने की भी बहुत बार कोशिश की, परन्तु बेपरवाह सार्इं जी हर बार यह कह कर आप जी को नाम-शब्द लेने वालों से उठा दिया करते कि ‘अभी आप को नाम लेने का हुक्म नहीं है, जब समय आया खुद बुलाकर, आवाज देकर नाम देंगे, तब तक आप सत्संग करते रहो, संगत में आते रहो। आप को काल नहीं बुलाएगा। हम आपके खुद जिम्मेवार हैं।’

खुदाई निशानियां:-

ये रब्ब की पैड़ है:- एक बार सार्इं मस्ताना जी महाराज ने एक पैड़ (पांव के निशान) को अपनी डंगोरी से घेरा बनाकर अपने साथ चल रहे सेवादारों से कहा, ‘आओ भई, तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।’ उन दिनों सार्इं जी सत्संग के लिए गदराना में पधारे हुए थे। उनमें गदराना निवासी एक सेवादार भाई ने कहा (वह जानता था कि पांव का यह निशान पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का है) ये पैड़ तो श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता जी का बचपन का नाम) की है। इस पर सार्इं मस्ताना जी महाराज ने डंगोरी को जमीन पर ठोक कर कहा कि ‘असीं किसी जैलदार को नहीं जानते, असीं तो ये जानते हैं कि ये पैड़ रब्ब की है।’

जिन्दाराम (रूहानियत) का लीडर:-

पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को घूकांवाली दरबार में सत्संग फरमाया। सत्संग के बाद पूज्य सार्इं जी ने आप जी को आवाज लगाई, बुलाकर फरमाया कि ‘आज आप जी को नाम-शब्द लेने का हुक्म हुआ है। आप अंदर चलकर हमारे मूढे के पास बैठो, हम भी अभी आ रहे हैं।’ आप जी ने अंदर जाकर देखा, नाम लेने वाले काफी जीव थे और मूढे के पास भी जगह नहीं थी, आप जी नाम-शब्द लेने वालों में पीछे ही बैठ गए।

पूज्य सार्इं जी जब अंदर आए और आप जी को बुलाकर अपने पास बिठाया। पूज्य सार्इं जी ने फरमाया कि ‘आप को इसलिए पास बैठाकर नाम देते हंै कि आप से कोई काम लेना है। आपको जिन्दाराम (रूहानियत) का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ पूज्य सार्इं बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने घूकांवाली में नाम-शब्द के बहाने मालिक की असल सच्चाई को जाहिर किया कि आप जी (पूजनीय परम पिता जी) स्वयं कुलमालिक, खुद-खुदा के रूप में जीव-सृष्टि के उद्धार के लिए मानवता का सहारा बनकर धरत पर आए हैं।

कठिन परीक्षा:-

पूजनीय परम पिता जी जब से पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज की पावन दृष्टि में आए, उसी दिन से ही बेपरवाह सार्इं जी आप जी की परीक्षा पर परीक्षा भी साथ-साथ लेते रहे। इन्हीं रूहानी परीक्षाओं के चलते एक बार पूजनीय सार्इं जी लगातार 18 दिन तक श्री जलालआणा साहिब दरबार में रहे। अपने लम्बे प्रवास के दौरान कभी गदराना का डेरा गिरवा दिया और कभी चोरमार का डेरा गिरवा कर उसका मलबा लकड़, बाला, शतीर, लोहे के गार्डर, जंगले, दरवाजे आदि सामान श्री जलालआणा साहिब डेरा में इकट्ठा करने का हुक्म फरमाया।

पूज्य सार्इं जी ने आप जी की ड्यूटि गदराना डेरे का मलबा ढोने की लगाई हुई थी। इधर गिराए गए डेरों का मलबा ढोया जा रहा था, तो उधर इक्ट्ठा किया गया सामान घूकांवाली के सेवादारों के द्वारा घूकांवाली डेरे में भिजवा दिया। आप जी अभी गदराना डेरा का मलबा ढोने में लगे हुए थे कि इसी दौरान सार्इं जी ने गदराना का डेरा फिर से बनाने की वहां के सेवादारों को मंजूरी दे दी। कुल मालिक का यह अजब-गजब खेल आम इन्सान की समझ से बाहर की बात थी। कुल मालिक का यह अलौकिक खेल वास्तव में आप जी की परीक्षाओं में ही शुमार था, आप जी की ही परीक्षा थी।

लेकिन आप जी तो पहले दिन से ही अपने-आप को पूर्ण तौर पर अपने पीरो-मुर्शिद को अर्पण कर चुके थे। आप जी ने अपने मुर्शिद प्यारे के हर हुक्म को सत्यवचन कह कर माना। इस तरह इन परीक्षाओं की लड़ी के द्वारा पूज्य सार्इं जी ने आप जी को हर तरह से योग्य पाकर एक दिन वास्तविकता को सेवादारों में प्रकट करते हुए फरमाया, ‘असीं सरदार हरबंस सिंह जी का इम्तिहान लिया पर उन्हें पता तक नहीं चलने दिया।’

और सख्त परीक्षा, हवेली को गिराने का हुक्म:-

और फिर एक दिन पूज्य बेपरवाह सार्इं जी ने आप जी के लिए अपनी हवेली नुमा मकान को तोड़ने और घर का सारा सामान छोटी सी सूई से लेकर बड़ी से बड़ी चीज तक दरबार में लाने का आदेश फरमाया। बाहरी निगाह, दुनियादारी के हिसाब से बेशक यह बहुत सख्त आदेश, सख्त इम्तिहान, कड़ी से कड़ी परीक्षा थी, लेकिन आप जी ने अपने रहबर खुद-खुदा सार्इं मस्ताना जी महाराज के वचन पर फूल चढ़ाते हुए अपनी हवेली को स्वयं अपने हाथों से तोड़ दिया, र्इंट-र्इंट कर दिया और बेपरवाही हुक्मानुसार हवेली का सारा मलबा और घर का सारा सामान ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर अपने प्यारे खुदा की पावन हजूरी में डेरा सच्चा सौदा सरसा में लाकर रख दिया।

दरबार में महावारी सत्संग का दिन था। शनिवार आधी रात को पूज्य सार्इं जी बाहर आए, सामान का बहुत बड़ा ढेर दरबार में देखकर हुक्म फरमाया, ‘ये सामान किस का है? अभी बाहर निकालो। कोई हम से आकर पूछे तो असीं क्या जवाब देंगे? जिसका भी ये सामान है, अपने सामान की आप ही रखवाली करे।’

सख्त सर्दी का मौसम था, ऊपर से बूंदा-बांदी और ठंडी शीतलहर भी चल रही थी। आप जी अपने प्यारे सतगुरु-खुदा के हुक्म में पूरी रात-भर खुले आसमान के नीचे अपने सामान के पास बैठ के बेपरवाही अलौकिक खेल का लुत्फ लेते रहे। सुबह होते ही सारा सामान एक-एक करके आई हुई संगत में अपने हाथोें से बांट दिया और अपने मुर्शिद प्यारे की पावन हजूरी में आकर बैठ गए और शहनशाही खुशियों को हासिल किया।

गुरगद्दी बख्शिश:-

सतनाम कुल मालिक बनाया :- 28 फरवरी 1960 को पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार आप जी को सिर से पैरों तक नए-नए नोटों के लंबे-लंबे हार पहनाए गए। आप जी को एक बहुत ही सुंदर सजी जीप में सवार करके पूरे सरसा शहर में शहनशाही जुलूस निकाला गया जिसमें आश्रम का बच्चा-बच्चा शामिल था। ताकि दुनिया को भी पता चले कि पूज्य सार्इं जी ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) को अपना उत्तराधिकारी बना लिया है।

शाही जुलूस शाम को वापस अभी आश्रम के मुख्य गेट पर ही पहुंचा था कि पूज्य सार्इं जी ने स्वयं आप जी का स्वागत किया। पूज्य बेपरवाह जी ने शरेआम साध-संगत में वचन फरमाया, ‘आज से सरदार हरबंस सिंह जी को सतनाम-कुल मालिक आत्मा से परमात्मा कर दिया है। ये वोही सतनाम है जिसके सहारे सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं।’ पूज्य सार्इं जी ने आप जी को स्वयं अपने हाथों से अनामी गुफा तेरावास में विराजमान किया जो कि विशेष तौर पर आप जी की हवेली के सामान (लक्कड़-बाला, शतीर, गार्डर, र्इंटों आदि) से तैयार की गई थी।

इधर शाही स्टेज सजाई गई थी। पूज्य सार्इं जी ने आप जी को अनामी गुफा से अपने दस सेवादारों के द्वारा बुलवा कर अपने साथ शाही स्टेज पर विराजमान किया। और संगत में अपने पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘आज से असीं सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) को अपना स्वरूप बना लिया है। ये वोही सतनाम है जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई। असीं इन्हें अपने दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बैठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा वो नर्कों में नहीं जाएगा। उसका भी उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे।’

डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही:-

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही 28 फरवरी 1960 को विराजमान हुए। आप जी ने 30-31 वर्ष तक डेरा सच्चा सौदा रूपी फुलवाड़ी को अपने अंतर-हृदय का बेइन्तहा प्यार बख्शा। आप जी के अपार रहमो-करम के अमृत का पान करके साध-संगत तन-मन-धन से डेरा सच्चा सौदा की पावन शिक्षाओं को समर्पित है। जो साध-संगत पहले सैकड़ों में थी, आपजी के अपार प्यार को पाकर बढ़कर हजारों तथा हजारों से बढ़कर लाखों में डेरा सच्चा सौदा में आने लगी।

आप जी ने अपना अपार रहमो-करम बख्शते हुए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में दिन-रात एक करते हुए गांव-गांव, शहर-शहर और कस्बों में हजारों सत्संग लगाए। आप जी की रहमत से राम-नाम का जिक्र घर-घर में होने लगा। आप जी ने 11 लाख से ज्यादा लोगों को नशों आदि बुराईयों से मुक्त कर मालिक के दर्श-दीदार के काबिल बनाया। आप जी ने अति सरल भाषा में सैकड़ों भजन-शब्दों और अनेक ग्रंथों की रचना की, जो आज भी साध-संगत को आप जी की पावन शिक्षाओं से जोड़े हुए हैं।

अपार रहमो करम बरसाया:-

पूजनीय परम पिता जी ने 23 सितंबर 1990 को पूजनीय मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गुरगद्दी पर विराजमान किया। आप जी का यह अपार रहमो-करम साध-संगत कभी भुला नहीं सकती। आप जी की पावन शिक्षाओं का प्रसार करते हुए पूज्य हजूर पिता जी ने रूहानियत के साथ-साथ समाज व मानवता भलाई के कार्याें से डेरा सच्चा सौदा को बुलंदियों पर पहुंचाया। पूज्य गुरु जी की पावन परमार्थी शिक्षाओं को आज देश व दुनिया के करोड़ों (छ: करोड़ से ज्यादा) श्रद्धालु अपना उच्च ध्येय मानते हैं।

आप जी ने डेरा सच्चा सौदा में मानवता व समाज भलाई के 147 कार्य चलाए हुए हैं। आप जी द्वारा स्थापित शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत के सहयोग से तन-मन धन से समर्पित हैं। साध-संगत व ये सेवादार इन पवित्र कार्यांे के माध्यम से दीन-दुखियों की मदद करने में लगे हुए हैं। पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणाओं से डेरा सच्चा सौदा का नाम आज पूरे विश्व भर में जाना जाता है।
104वें पावन अवतार दिवस 25 जनवरी की लख-लख बधाई हो जी।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!