ब्लॅड कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के उपचार में भी कारगर स्टेम सेल थेरेपी
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पूज्य गुरू जी भी दे रहे स्टेम सैल और डीएनए शोध पर बल
स्टेम सेल से बीमारियों का इलाज करने के साथ-साथ डीएनए तक ठीक किया जा सकता है। यह कहना है डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का। पूज्य गुरू जी का मानना है कि मौजूदा समय में बढ़ रही बीमारियों और कमजोर हो रही इम्यूनिटी को दुरूस्त करने के लिए स्टेम सेल उपचार आवश्यक हो गया है। यदि इन्सान के डीएनए को ठीक कर लिया जाए तो पूरी बॉडी की बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। पूज्य गुरु जी पिछले एक दशक से स्टेम सेल और डीएनए संबंधी शोध और इलाज पर बल दे रहे हैं। इस मामले में काफी हद तक संस्था के डॉक्टर साहिबानों ने भी काम किया और 2016 में स्टेम सेल से एक 9 वर्षीय बच्ची की आंखों की रोशनी लौटाने में सफलता प्राप्त की।
ब्लॅड कैंसर के मरीजों में से महज 30 प्रतिशत मरीज ही ऐसे होते हैं, जिन्हें ट्रांसप्लांट के लिए अपने परिवारों के भीतर ही डोनर मिल जाते हैं। बाकी 70 प्रतिशत मरीजों को बाहरी व मैचिंग प्रोफाइल वाले लोगों पर डोनेशन के लिए निर्भर रहना पड़ता है, जो एक बड़ी चुनौती है। आंकड़े के मुताबिक, भारत में हर साल तकरीबन 70,000 लोग ब्लड कैंसर के चलते अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि स्टेम सेल डोनरों की संख्या लगभग 0.04 प्रतिशत ही है।
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राजीव गांधी कैंसर अस्पताल एवं शोध संस्थान में हेमाटोआॅन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. नरेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि भारत में ब्लड कैंसर एक बड़े खतरे के रूप में सामने आया है, जिससे बड़ी तादाद में लोगों की जिंदगियां प्रभावित हो रहीं हैं। ऐसे में इस घातक बीमारी का प्रभावी ढंग से इलाज करना बेहद जरूरी है। डोनरों का अभाव एक बड़ी चिंता का विषय है और पूरी तरह से मैच होने वाले डोनरों का अनुपात भी 1/10 लाख है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर के इलाज में एक बेहद प्रभावी किस्म का उपाचार है।
फायदेमंद है यह थेरेपी
मेडिकल साइंस का दावा है कि डिमेंशिया, आॅटिजम, मल्टिपल स्क्लेरोसिस और सेरेब्रल पालसी जैसी बीमारियों का इलाज स्टेम सेल थेरेपी से संभव है, यह इलाज थोड़ा महंगा है। स्टेम कोशिका या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को विकसित करने की क्षमता होती है. इसके साथ ही ये शरीर की दूसरी कोशिका के रूप में भी खुद को ढाल सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
कोशिकाओं की बीमारियों के इलाज के लिए इन्हें लैब में भी विकसित किया जा सकता है।
अभी तक दो तरह की स्टेम कोशिकाओं पर ही रिसर्च की जा रही है, एम्ब्रयोनिक या भ्रूण कोशिका और अडल्ट भ्रूण स्टेम कोशिका उसी समय निकाल ली जाती है, जब बच्चा पेट में बन रहा होता है. लेकिन इसे अनैतिक माना जा रहा है. जबकि वयस्क स्टेम कोशिकाओं से खास तरह की कोशिकाएं ही विकसित की जा सकती हैं और इनकी संख्या बहुत कम होती है।
ब्लड कैंसर, लिम्फोमा, मेलोमा जैसे कैंसर के इलाज के लिए स्टेम कोशिका थेरेपी पहले से ही अमल में लाई जा चुकी है। लिम्फोमा यानी ऐसा कैंसर जो बीमारियों से लड़ने वाली कोशिकाओं को खत्म करता है, मेलोमा यानि ऐसा ब्लड कैंसर जिसमें प्लाज्मा कोशिकाएं बढ़ जाती हैं।
स्टेम सेल थेरेपी से और भी कई तरह की बीमारियां ठीक की जा सकेंगी, इसके लिए बड़े पैमाने पर रिसर्च जारी है और बहुत से देशों में ये थेरेपी शुरू भी की जा चुकी है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को लेकर जिस बड़े पैमाने पर रिसर्च की जा रही है उससे ना सिर्फ रिसर्चरों में बल्कि मरीजों में भी उम्मीद जगी है. उम्मीद है कि आज नहीं तो कल ऐसा रास्ता जरूर निकलेगा कि अभी तक लाइलाज कही जाने वाली बीमारियां भी स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से ठीक हो जाएंगी और इन्सान की औसत आयु भी बढ़ जाएगी।
स्टेम सेल डोनेशन को बढ़ावा देने की जरुरत
भारत में ब्लड कैंसर से पीड़ित लोगों को इलाज के रूप में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासकर स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले मरीजों को आसानी से मैचिंग डोनर नहीं मिल पाते। करीब10 लाख लोगों में से एक शख़्स ही ऐसा निकलता है, जो मैचिंग डोनर के तौर पर सामने आकर मरीज की मदद कर पाता है। इस ट्रीटमेंट से मरीज की हालत में आमूलचूल बदलाव आ सकता है, मगर एक मैचिंग डोनर का मिलना सबसे कठिन काम होता है।
ऐसे में मेडिकल समुदाय से जुड़े लोगों द्वारा भारत में स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को लेकर आम जनता में और अधिक जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है। ब्लड कैंसर के खिलाफ संघर्षरत एक गैर-सरकारी संगठन डीकेएमएस बीएमएसटी फाउंडेशन इंडिया भारत में स्वेच्छा से स्टेम सेल डोनेशन की संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है।