8th pass Murugesan earning crores of rupees from banana waste

केले के कचरे से करोड़ों रुपये कमा रहे 8वीं पास मुरुगेसन
आवश्यकता को आविष्कार की जननी कहा जाता है। तमिलनाडु के मदुरई के मेलाक्कल गांव के रहने वाले 57 वर्षीय पीएम मुरुगेसन ने बात को चरितार्थ किया है। मुरुगेसन केले के फाइबर से रस्सी बनाकर इससे तरह-तरह के उत्पाद बनाकर आज दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं।

उनके इको फ्रेंडली उत्पाद के उत्पादन के लिए उन्हें भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के दूसरे देशों में भी जाना जाता है। लोग उनसे विदेशों से भी इन सामानों की खरीदारी करने आते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके मुरुगेसन अपने उत्पाद के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुके हैं। मुरुगेसन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना कारोबार चलाते हैं। उनका आविष्कार ही उनके उत्पादन में काम आता है और उसे वह बेहद आसानी से प्रभावी और आकर्षक उत्पादों का निर्माण करते हैं। अपने इस आविष्कार के दम पर उन्होंने अपना व्यवसाय तो खड़ा किया ही है साथ ही अपने गांव के लोगों को भी बड़े स्तर पर रोजगार दिया है।

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पीएम के जिंदगी की बात करें तो उनकी जिंदगी काफी कठिनाइयों भरी रही है। खेती में अपने पिता की मदद करने के लिए उन्हें आठवीं में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। परिवार आर्थिक मंदी से गुजर रहा था और घर में खाने के भी पैसे नहीं थे। ऐसे में उनकी पढ़ाई के खर्च उठाना परिवार की आर्थिक स्थिति के ऊपर बोझ बन रहा था। मुरुगेसन ने पढ़ाई छोड़ कर पिता के साथ उनके काम में हाथ बंटाना शुरू किया।

इस पल में बदली जिंदगी

मुरुगेसन कृषि परिवार से हैं, तो उन्होंने बचपन से ही इस क्षेत्र में असफलताएं ही देखी थी। उनका कहना है कि राज्य के कृषि विभाग की मदद के बावजूद भी खेती में कुछ खास कमाई नहीं हो पाती थी। ऐसे में जब अपने आसपास कोई मौका तलाशने की कोशिश करते तो उन्हें हमेशा निराशा ही हाथ लगती, लेकिन एक दिन उन्होंने अपने गांव में किसी को फूलों की माला बनाते समय धागे की जगह केले के फाइबर का इस्तेमाल करते हुए देखा। यही क्षण था जिसने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी।

कचरे से मिली पहचान

उन्होंने इसी समय फैसला किया कि वह केले के कचरे से बनाए गए उत्पादों का व्यवसाय शुरू करेंगे। यह बात तो आप जानते ही हैं कि केले के पेड़ के पत्ते और फल आदि सभी कुछ इस्तेमाल में आते हैं, लेकिन इनसे उतरने वाली सबसे बाहरी छाल कचरे में जाती है। इन्हें किसान या तो जला देते हैं या लैंडफिल के लिए भेज देते है। हालांकि मुरुगेसन को केले के इसी फाइबर ने उनकी पहचान दिलाई। दुनिया भर में इसी कचरे के चलते वह अपनी एक अलग छवि खड़ी कर पाए।

शुरूआत में आई कई परेशानियां

साल 2008 में मुरुगेसन ने केले के फाइबर से रस्सी बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने केले के फाइबर का इस्तेमाल करते हुए पहली बार फूलों की माला बनाते समय देखा था। वहीं से उन्हें इस बात की प्रेरणा मिली थी। इस बारे में उन्होंने अपने परिवार के साथ चर्चा की और इसके बाद कड़ी मेहनत और परिश्रम के साथ इस काम का आगाज किया। शुरूआत में यह काम बहुत ही ज्यादा मुश्किल था। वह सब कुछ अपने हाथ से ही कर रहे थे। ऐसे में वक्त भी काफी लगता था

और फाइबर से रस्सी बनाते समय यह कई बार अलग भी हो जाती थी, जोकि उनके लिए काफी परेशानी खड़ी कर दी थी। इसलिए उन्होंने नारियल की छाल से रस्सी बनाने वाली मशीन पर इसका सबसे पहला ट्रायल किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने नारियल की छाल को प्रोसेस करने वाली मशीन पर केले के फाइबर की प्रोसेसिंग का ट्रायल किया। यह भी काम नहीं आया, लेकिन इस दौरान उन्हें एक आईडिया मिल गया। मुरुगेसन ने फाइबर की मशीन बनाने के लिए कई ट्रायल किए और आखिरकार उन्होंने पुरानी साइकिल की रिंग और पुल्ली का इस्तेमाल करके एक डिवाइस बनाई। यह काफी कम पैसों में और उनके काफी कामगर भी साबित हुई।

मशीन को मिला सम्मान

मुरुगेसन का कहना है कि फाइबर की प्रोसेसिंग के बाद इससे जो भी उत्पाद बना रहे थे वह बाजार के अनुकूल थे। इसलिए उन्होंने रस्सी की गुणवत्ता पर काम करना शुरू किया और लगातार इस क्षेत्र में काम करते रहे। इस दौरान उनकी पहली मशीन करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत से तैयार हुई। इस मशीन के लिए उन्हें पेटेंट भी मिल गया। मशीन के बाद बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंट काउंसलिंग से उन्होंने संपर्क किया। उन्होंने अपनी डिवाइस को दिखाया और वहां भी उन्हें काफी मदद मिली।

इसके बाद वह गांव आकर मशीन देख कर गए और उनके इस आइडिए को पसंद भी किया। उन्होंने इलाके के दूसरे किसानों को भी इस मशीन का इस्तेमाल सिखाया और अपने केले के कचरे का काम शुरू किया। ऐसे में उन्होंने साल 2017 में रस्सी बनाने के लिए एक आॅटोमेटिक मशीन भी बनाई। इस मशीन की खासियत यह थी कि यह रस्सी बनाने के साथ ही 2 रस्सियो को आपस में जोड़ देती थी।

कई सम्मानों से किया गया सम्मानित

इस मशीन पर काम करने के लिए एक साथ 5 लोगों की जरूरत होती थी, जिससे ढाई हजार मीटर लंबी रस्सी बन सकती थी। ऐसे में इससे काम भी जल्दी होने लगा। अपने इस आविष्कार और कारोबार के लिए मुरुगेसन को अब तक 7 राष्ट्रीय और कई राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें सरकार से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा पीएमईजीपी सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्रालय में राष्ट्रीय किसान वैज्ञानिक पुरस्कार और जबलपुर में कृषि विज्ञान केंद्र से सर्वश्रेष्ठ उद्यमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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