teach the child - sachi shiksha hindi

बच्चे को समझना भी सिखाएं

अधिकतर यह देखा जाता है कि माताएं अपने बच्चे के मुकाबले पड़ोसी के बच्चे को ज्यादा बोलते देखकर चिंतित हो जाती हैं कि आखिर उनका बच्चा क्यों नहीं इतना बोलता? उनका बच्चा इतना चंचल और स्मार्ट क्यों नहीं है? वह दो-तीन शब्दों से ज्यादा क्यों नहीं बोल पाता है? पड़ोसी का बच्चा सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। उनका बच्चा ऐसा क्यों नहीं है? ये सब बातें निराधार हैं।

बच्चों को ये शब्द सीखने की क्षमता आनुवंशिक रूप से नहीं मिलती, बल्कि उनके आसपास का वातावरण (जिसमें लोग आपस में बातें करते हैं) शब्दों और वाक्यों को सीखने के लिए प्रेरित करता है। शुरू-शुरू में उसका बोलना जरूर उसके जींस पर आधारित होता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि यदि आप मित्रों और रिश्तेदारों के बीच में ज्यादा बोलते हैं तो आपका बच्चा भी ऐसा ही बनेगा।

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जब आपका बच्चा शब्द बोलना शुरू करे तो आपको उसका अधिक ध्यान रखना चाहिए। वह क्या कह रहा है? क्या कहना चाह रहा है? आपसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। जब वह कुछ कहना चाह रहा है और उससे मिलता-जुलता दूसरा शब्द कह देता है तो आपको उसे शाबाशी देनी चाहिए न कि उसे ‘नहीं-नहीं’ कहकर चुप करा देना चाहिए। बच्चे को यह एहसास दिलाएं कि उसने कुछ बोलकर बहुत अच्छा काम किया है। आपकी यह प्रतिक्रिया उसे और शब्द बोलने के लिए प्रेरित करेगी। धीरे-धीरे आपको यह महसूस होगा कि आपके लाडले के द्वारा बोले शब्द और वाक्य आपके रोजमर्रा के कामों से मेल खाते हैं।

बच्चा जब एक वर्ष का होता है तो उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों की संख्या तीन-चार ही होती है। धीरे-धीरे वह बड़ा होता जाता है और उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों की संख्या भी बढ़ती जाती है। आपने देखा होगा कि बच्चा शुरूआत में वही शब्द उच्चारित करता है जो उसकी जरूरतों से संबंधित होते हैं। जैसे मां, दूध या किसी मनपसंद खिलौने का नाम आदि।

बच्चे को बोलना सिखाने एवं उसके शब्द भंडार में वृद्धि करने के लिए आप कई उपाय कर सकते हैं। जैसे उसे छोटी-छोटी कविता एवं गाने सुना सकती हैं। उसे रंगीन चित्र दिखाकर पढ़ा सकती हैं। इस तरह से उसे आप शब्दों का भंडार दे सकती हैं। शुरू-शुरू में बच्चा जब बोलना सीखे तो उसे प्रतिक्रि या के रूप में सीखने के अवसर दें। बच्चे से आप लगातार बोलती रहें। पापा कहां हैं, तुम्हारा खिलौना कहां रखा है, दूध कहां पिओगे आदि प्रश्न बच्चे से करती रहें। मगर इतना भी ध्यान रखें कि लगातार बोलते रहना भी अच्छी बात नहीं है।

समस्या माता-पिता की बच्चे से बोलने की नहीं होती बल्कि बच्चे की दूसरों से कम बोलने की होती है। आप स्वयं महसूस कर सकते हैं कि यदि कोई लगातार आपके सामने बोलता ही चला जाएगा तो आपको कैसा महसूस होगा? ठीक इसी तरह बच्चे के स्वभाव को भी ध्यान में रखें। कहीं आपका लगातार बोलना बच्चे के मन में बोलने के प्रति अरूचि न पैदा कर दे। और वह कम बोलने वाला बन जाए। इसलिए उसे ज्यादा बोलने के बजाय समझने के लिए प्रेरित करें। -शिखा चौधरी

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