सतगुरु जी के वचनों से भयानक कर्म कट गया -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
प्रेमी गुरमुख इन्सां पुत्र श्री राम सिंह कल्याण नगर, सरसा से अपने ऊपर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार लिखित रूप में करता है:-
सन् 1976 की बात है। हम सरसा शहर से कल्याण नगर में आकर बस गए। उस समय वहां पांच-छ: घर थे। उन दिनों मुझे एक अजीब किस्म का बुखार चढ़ा जो उतरने का नाम ही नहीं लेता था। मैं दवाई लेता तो ज्यादा चढ़ जाता। डाक्टर बदल-बदल कर दवाई ली पर कोई फायदा न हुआ। मैं इतना कमजोर हो गया था कि मुझसे चला नहीं जाता था। धीरे-धीरे मेरा खाना-पीना भी छूट गया। हालत इतनी बिगड़ गई थी कि बैठा भी नहीं जाता था। जब बैठने की कोशिश करता तो आंखों के आगे अंधेरा आ जाता। कमजोरी से मेरी आवाज भी बंद हो गई।
मैंने शहनशाह मस्ताना जी महाराज से नाम लिया हुआ है। पहले मैं नाम जपा करता था, पर बीमारी व कमजोरी के कारण तब नाम भी जपा नहीं जा रहा था। मैंने सोचा, चलो ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारे का सुमिरन करता हूं। मैंने मुश्किल से आधा घण्टा सुमिरन किया कि मुझे मालिक ने एक दृष्टांत दिखाया। मैंने देखा हमारे घर के छोटे से आंगन में एक छोटा-सा हैलीकाप्टर उतरा। उसमें से शहनशाह मस्ताना जी महाराज तथा उनके दूसरे स्वरूप पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज बाहर आए। दोनों पूज्य सतगुरु जी के आकार बिल्कुल छोटे-छोटे थे, पर स्वरूप हू-ब-हू था। जब मेरी तरफ आए तो उनका आकार पूरा सही हो गया।
इतने में परम पिता जी ने एक तरफ हाथ से इशारा किया तो उधर स्टेज लग गई। परम पिता जी स्टेज पर विराजमान हो गए। शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने हाथ में लिए एक छोटी अटैची में से बड़ी सीरिंज व टीका निकाला।शहनशाह जी की कृपा से मुझमें ताकत आई। मैंने ऊंची आवाज में अपने बच्चों को कहा कि सार्इं जी के लिए सुंदर कुर्सी व गद्दा लाओ। मेरी बात पर किसी ने अमल नहीं किया। मेरी पत्नी ने कहा कि सार्इं मस्ताना जी उन्हें लेने आ गए हैं। मेरी पत्नी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि सब ने ही जाना है, क्या हो गया अगर लेने आ गए है। उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया कि मेरी बात किसी ने नहीं सुनी, जबकि मेरे सतगुरु जी मेरे पास खड़े थे।
जब मुझे गुस्सा आया, उसी समय शहनशाह जी अलोप हो गए। मैंने गुस्से में आकर यहां तक कह दिया कि मैं तुम्हारा घर छोड़ दूंगा, घर से निकल जाऊंगा। अगले दिन सुबह पांच बजे डेंरा सच्चा सौदा में गद्दीनशीन बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दूसरे स्वरूप पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अचानक कल्याण नगर में पधारे। कई सत्संगियों के घरों में होते हुए शहनशाह जी जगदीश फोरमैन (बिजली वाले) के घर आ गए। उनका घर बिल्कुल मेरे पड़ोस में है। मेरी पत्नी तथा बच्चे भी परम पिता जी के दर्शन करने के लिए प्रेमी जगदीश जी के घर चले गए।
मुझे भी सब पता चल गया। सतगुरु जी की दया से मैं भी हिम्मत करके दीवारों को हाथ लगाता हुआ जगदीश के घर चला गया। पूज्य परमपिता जी ने वहीं दूर से इशारा करते हुए पूछा, ‘भाई! गुरुमुख ढीला-मट्ठा है! ’ मैंं इतना कमजोर था कि मेरी आवाज ही नहीं निकली, प्रेमी जगदीश ने कहा कि हां जी पिता जी, ढीला है। दयालु सतगुरु परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘भाई! गुरमुख को चाय पिलाओ।’ मैंने जगदीश को इशारे से कहा कि न बनाना। मुझ से पी नहीं जाएगी। पर जगदीश कहने लगा कि पहले तो एक कप पिलाना था, अब परम पिता जी के वचनानुसार दो कप पिलाऊंगा।
मैंने इशारे से इन्कार किया तो वह पशुओं को देने वाली नाल की तरफ इशारा करके बोला कि उस नाल में डालकर तेरे अन्दर पहुंचा दूंगा। मुझे बहुत हंसी आई। मैंने दो कप चाय पी ली। चाय पीते ही मुझे ऐसे लगा कि मैं ठीक हो गया। घर आकर फिर चाय पी। बुखार का नामोनिशान भी मिट गया। मैं उसी दिन से तंदुरुस्त हो गया। इस प्रकार बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शनों तथा उन्हीं के स्वरूप परम पिता जी के वचनों से मेरा भारी असाध्य रोग अर्थात मौत जैसा भयानक कर्म कट गया। मैं पूज्य सतगुरु जी के उपकारों का बदला किसी तरह से भी नहीं चुका सकता।
मैंने सतगुरु जी के तीनों बाडियों की सोहबत की है और उन्हीं के रहमो-करम से कर रहा हूं। तीनों बाडियां एक ही सतगुरु का नूर हैं। मेरी पूज्य हजूर पिता जी के चरणों में यही विनती है कि हे पिता जी! मेरी ओड़ निभा देना जी।