Experiences of satsangis पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी के पावन वचन हुबहू पूरे हुए – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
प्रेमी केवल इन्सां पुत्र श्री चंद मिढ़ा श्रीगंगानगर से पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
एक बार मेरा ताऊ मोहरी लाल पुत्र श्री नत्थु राम डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में आया हुआ था। उस समय सरसा दरबार शाह मस्ताना जी धाम का मेन गेट दरबार के पिछली साइड यानि उत्तर-पूर्व दिशा में था। उधर से ही आने-जाने का रास्ता था। जब वर्तमान समय में मौजूद गेट बनना था तो शहनशाह मस्ताना जी महाराज मिस्त्री भाई को बताने लगे कि गेट इतना बड़ा तैयार करना है। अपनी डंगोरी से निशान लगाने लगे तो एक सेवादार बीच में ही बोल पड़ा कि साई जी! संगत तो थोड़ी सी है, इतना बड़ा गेट!!
शहनशाह जी वहीं पर ही रुक गए और फरमाया:-
हमें तो इतना नजर आ रहा है कि सरसा शहर से दरबार तक इतनी संगत है, थाली फेंके तो जमीन पर नहीं गिरेगी, संगत के सिर पर ही रहेगी, पर काल बीच में ही बोल पड़ा। आज शाह सतनाम जी धाम का बड़ा गेट शहनशाह मस्ताना जी के वचनों की गवाही भर रहा है।
पूज्य सार्इं जी के समय दरबार की साइड में आवाजाही के साधन बहुत कम थे। जो संगत दरबार में आती थी, दरबार में ही रुक जाती थी। महीनेवार सत्संग के बाद सोमवार को सुबह पांच बजे शहनशाह मस्ताना जी के हुक्म अनुसार सेवादारों ने संगत को कहा कि अपने-अपने घर जाओ और अपना काम धंधा करो। जब कुछ संगत ने यह हुक्म नहीं माना तो सेवादारों ने संगत को दरबार से बाहर निकालकर गेट गंद कर दिया। सेवादारों को मजबूर होकर यह वचन मानना पड़ा। उसी दरमियान शहनशाह मस्ताना जी वहां आ गए और वचन फरमाए- ऐसा समां आएगा, बहुत संगत आया करेगी, अपने आप वापिस चली जाया करेगी। आज लाखों की तादाद में संगत आती है और आज्ञा मिलने के बाद अपने आप वापिस चली जाती है।
उस दिन ताया मोहन लाल मासिक सत्संग पर सरसा दरबार में आया था। सत्संग सुना तो उनके मन को सुकून मिला, आत्मा बड़ी खुश हुई। उनमें रूहानी दर्शनों की तड़प और बढ़ गई। महीनेवार सत्संग के बाद यदि समय होता तो पूजनीय शहनशाह जी भजनमंडली को गांवों-शहरों में नाम चर्चा करने के लिए भेज देते थे। मेरे ताया जी ने शहनशाह जी की हजूरी में अर्ज की कि हमारे शहर श्री गंगानगर में भी भजन मंडली भेजो जी।
पूजनीय शहनशाह जी ने उसी समय भजन मंडली को अपने पास बुलाया और पूछा कि तुम लोग नामचर्चा करने के लिए कहां पर जाओगे? उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा कि सार्इं जी! जहां का आपजी हुक्म करोगे, हम वहीं जाएंगे। यह सुनकर पूज्य सार्इं जी बहुत प्रसन्न हुए। शहनशाह जी ने फिर फरमाया- सरसा दा प्रेम चार आने, डबवाली दा आठ आने, मलोट दा बारह आने ते श्रीगंगानगर दा सोलह आने प्रेम है। इस पर भजनमंडली के सदस्यों ने हाथ जोड़कर कहा कि सार्इं जी, हमें श्री गंगानगर भेज देयो जी।
फिर पूज्य सार्इं जी ने प्रेमी मोहरी लाल को कहा कि इनको सादी दाल-रोटी देनी है। अच्छा खाना खिलाकर इनको धुक्कड़मल मत बना देना। उस समय इस भजनमंडली में तीन बहनें व चार भाई थे। शहनशाह जी ने भजन मंडली को आदेश फरमाया कि तुमने रात को नामचर्चा करनी है और दिन में सब्जी बेचनी है। जब वे सब्जी बेचने के लिए जाते तो प्रेमी केवल सिंह इन्सां प्रेमियों के घर बताने के लिए साथ जाते। कई बार सब्जी वाली टोकरी भी उठा लेते। इस प्रकार सात-आठ दिन तक श्री गंगानगर शहर में जिंदाराम का खूब यश गाया गया। शहनशाह जी की रहमत से श्रीगंगानगर का भाग्य बना और आने वाले समय में यहां की अनेक रूहें नामशब्द लेकर मालिक सतगुरु से जुड़ गई। इस प्रकार पूजनीय बेपरवाह जी के वचन पूरे हुए।