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बात निराली इन फूलों की

भारत में हिमालय की तराई से लेकर तटीय क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से बहुत से फूल और पौधे औषधीय उपयोग में भी आते हैं। एक विशेष वातावरण और भौगोलिक स्थितियों के कारण ये यहां पाए जाते हैं।

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इनमें से कुछ फूलों की छटा बहुत ही निराली होती है।

ब्लू सैज:

हिमालय का यह फूल गुलशाम के नाम से प्रसिद्ध है। तमिल में इसे नालामुल्ली और केरल में नालंबारमू कहते हैं। 3 से 6 इंच का यह नीला फूल प्रसिद्ध बगीचे में उगाने वाला पौधा है। बिना फूल के भी यह औषधीय पौधा बहुत सुंदर लगता है। यह 6 फुट तक ऊंचा होता है।

जाइंट हिमालयन लिली:

हिमालय का यह पौधा 2 से 3 फुट तक लंबा होता है। इसमें 20 सेंटीमीटर लंबी तुरही की तरह के फूल लगते हैं। इस फूल की कलियां तने पर सीधी लगी रहती हैं लेकिन फूल बाद में लटक जाते हैं। इस औषधीय फूल की सुगंध बड़ी मनमोहक होती है।

आइसी हिमालयन डैफने:

आइसी हिमालयन डैफने को पेपर डैफने भी कहते हैं। यह पौधा हिमालय की 2 हजार से 3 हजार फुट की ऊंचाई पर पश्चिम नेपाल से सिक्किम व पश्चिम बंगाल तक पाया जाता है। गुलाबी-बैगनी रंग के इसके फूल में मखमली सी चार अंडाकार पंखुड़ियां होती हैं। बीच का भाग पीला-नारंगी होता है। यह फूल गुच्छे में होता है। यह नवंबर से अप्रैल तक खिलता है।

एग मंगोलिया:

भारत में हिम चंपा के नाम से प्रसिद्ध इस फूल का पेड़ मध्यम आकार का होता है। इसकी कली अंडाकार होती है। फूल चार-पांच इंच का होता है। भारत में यह उत्तर-पूर्व के राज्य असम, मणिपुर और सिक्किम आदि में पाया जाता है। इसकी सुगंध बड़ी मनमोहक होती है। यह सजावटी पेड़ों की श्रेणी में आता है।

शूबटन अर्दिसिया:

शूबटन अर्दिसिया को हिंदी में बिसी, कन्नड़ में बुगाड़ी और बांग्ला में बंजाम कहते हैं। इसकी झाड़ी 4 मीटर तक लंबी होती है। फूल का आकार 2 सेंटीमीटर तक होता है, जो एक डंडी के सहारे फैलता है। यह हिमालय की 1100 मीटर तक की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसके अलावा भारत में यह अनेक स्थानों पर भी पाया जाता है।

अगैपिटीज:

हिमालय घाटी, म्यांमार और थाईलैंड में पाए जाने वाले इस पौधे का ग्रीक में अर्थ है प्रिय। यह सदाबहार झाड़ी किसी दूसरे पेड़ या चट्टान पर चढ़कर फैल जाती है। इसका फूल गुलाबी-लाल होता है। इस पौधे को हैंगिंग बास्केट में भी लगाया जा सकता है।

बर्ड आॅफ पैराडाइज:

स्वर्ग के पक्षी की कल्पना के अनुरूप अफ्रीकी मूल का यह पौधा कई वर्षों तक रहता है। स्ट्रेलिट्जिया वंश के इस पौधे की 5 उपजातियां हैं। इस फूल की पत्तियां भी केले के पेड़ की तरह बड़ी होती हैं। एक छोटी सी चिड़िया ‘सनबर्ड‘ के द्वारा इसका परागण होता है।

ब्लू वांडा:

उत्तर-पूर्व भारतीय मूल का यह पौधा हिमालय की ढाई से 4 हजार फुट की ऊंचाई पर पाया जाता है। संस्कृत में इसे वंदार कहते हैं। इसी से इसका यह नाम पड़ा है। यह एशिया का सबसे प्रमुख आॅर्किड है। इसके बड़े आकार के नीले-बैगनी फूलों की बड़ी डिमांड है जो काफी समय तक सुरक्षित रहते हैं। इस फूल की झाड़ी की शोभा बड़ी निराली होती है।

मंकी आॅर्किड:

इस फूल पर बंदर के मुख की तरह आकृति दिखाई देती है। इसीलिए यह मंकी आॅर्किड कहलाता है। इस फूल का भीतरी हिस्सा हरा-पीला सा होता है, जिस पर यह आकृति होती है। बाहरी भाग भूरा-गुलाबी होता है। इस दुर्लभ पौधे के पत्ते पतझड़ में झड़ जाते हैं।
(उर्वशी)

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